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समालोचना के लिए जरूरी है वद्विता, प्रतिभा व अभ्यास : देवेंद्र झा

समालोचना के लिए जरूरी है विद्वता, प्रतिभा व अभ्यास : देवेंद्र झा-साहित्य अकादमी नयी दिल्ली व मारवाड़ी कॉलेज के मैथिली विभाग के संयुक्त तत्वावधान में परिसंवाद संवाददाता, भागलपुरप्रख्यात मैथिली साहित्यकार देवेंद्र झा ने कहा कि मैथिली साहित्य में समालोचना का उच्च स्थान है. मैथिली साहित्य में समालोचना करने के लिए प्रतिभा, विद्वता व निरंतर अभ्यास […]

समालोचना के लिए जरूरी है विद्वता, प्रतिभा व अभ्यास : देवेंद्र झा-साहित्य अकादमी नयी दिल्ली व मारवाड़ी कॉलेज के मैथिली विभाग के संयुक्त तत्वावधान में परिसंवाद संवाददाता, भागलपुरप्रख्यात मैथिली साहित्यकार देवेंद्र झा ने कहा कि मैथिली साहित्य में समालोचना का उच्च स्थान है. मैथिली साहित्य में समालोचना करने के लिए प्रतिभा, विद्वता व निरंतर अभ्यास का होना बहुत जरूरी है. समालोचना के लिए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का होना बहुत ही जरूरी है. श्री झा साहित्य अकादमी नयी दिल्ली और मारवाड़ी कॉलेज के मैथिली विभाग के संयुक्त तत्वावधान में कॉलेज के हीरक जयंती सभागार में आयोजित मैथिली साहित्य में समालोचना की स्थिति व अपेक्षा विषयक परिसंवाद का बीज भाषण कर रहे थे. उन्होंने कहा कि मैथिली साहित्य उन्हीं की है, जो इसके उत्थान के लिए कार्य करता है. मैथिली साहित्य में समालोचना के बारे में एक लाइन में कहा जाये तो हम यह कह सकते हैं कि पाठक, लेखक और प्रकाशक की त्रिवेणी गंगा, जमुना व सरस्वती की तरह है, जिसमें सरस्वती पुत्र पाठक आज की तारीख में लुप्त हो चुका है. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मारवाड़ी काॅलेज के प्राचार्य एमएसएच जॉन ने कहा कि वर्तमान में मैथिली साहित्य की तरफ छात्रों की उदासीनता चिंता का विषय है. आज की पीढ़ी मैथिली साहित्य की किताबें पढ़ना नहीं चाह रही है, लेकिन इसका इतिहास पढ़ने की चाह उनमें हैं. हमें भोजपुरी, बांग्ला, उड़िया, तमिल, तेलगु, कन्नड़ की तरह मैथिली भाषा को जनसरोकार की भाषा में तब्दील नहीं करेंगे तब तक इसके प्रति भावी पीढ़ी की उदासीनता बनी रहेगी. विशिष्ट अतिथि तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो अवध किशोर राय ने कहा कि मैथिली भाषा ही नहीं, देश की संस्कृति भी है. इसके प्रभाव में अंग क्षेत्र, नेपाल के हिमालय क्षेत्र का कुछ हिस्सा भी है. उन्होंने कहा कि लोगों में यह भ्रांति है कि यह एक वर्ग विशेष की भाषा है, जबकि यह मैथिल क्षेत्र में रहने वाले हर लोगों की भाषा है. इसके पूर्व मंचासीन अतिथियों काे बुके देकर स्वागत साहित्य अकादमी के विशेष कार्याधिकारी देवेंद्र कुमार देवेश ने की. आगतों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन कॉलेज के मारवाड़ी कॉलेज के मैथिली विभाग के अध्यक्ष डॉ शिव प्रसाद यादव ने की. मौके पर काॅलेज परिसर में मैथिली साहित्य पर आधारित पुस्तकों की प्रदर्शनी लगी. अंत में मैथिली गायक प्रभु नारायण झा व उनकी टीम ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देकर लोगों का मन माेह लिया. पाठक को भ्रमर वृत्ति बनाने के लिए हंसावृत्ति बनें समालोचक : रामसेवक सिंहमैथिली साहित्यकार रामसेवक सिंह ने विचार सत्र में समालोचनाक के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा कि बिना किसी भेद-विभेद के लेखक के साहित्य-लेख को समादृष्टि से देखे, मनन व अध्ययन के बाद विवेचना करें. इसमें समालोचक को हंसावृत्ति होना चाहिए तभी पाठक भ्रमरवृत्ति होकर उनके पाठ को पढ़कर सफल पाठक हो सकेंगे. इसी से लेखक-पाठक का निरंतर बढ़ता रहेगा. सत्र को प्रमोद पांडये व महेंद्र नारायण दास ने भी संबोधित किया, जबकि सत्र की अध्यक्षता केष्कर ठाकुर ने की. कथा पाठ से अस्मिता को टटोलापरिसंवाद का अगला पड़ाव अस्मिता था. इसमें महिला साहित्यकारों ने कथा पाठ से महिलाओं की समाज में स्थिति, पुरुषवादी सोच से लड़ती आधी आबादी के अंर्तद्वंद्व व सामाजिक संघर्षों को रेखांकित किया. इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए महिला साहित्यकार इंदिरा झा ने चरित्र प्रमाण पत्र विषयक कथा पाठ किया. उन्होंने श्रोताओं को यह दिखाने-बताने का प्रयास किया कि एड्स सिर्फ यौन संपर्क के कारण ही नहीं होता है. एड्स संक्रमित स्त्री के दर्द को साझा न कर यह समाज किस तरह उसके चरित्र पर कुठाराघात करता है और किस तरह स्त्री उनकी इस प्रवृत्ति से संघर्ष करती है, इसको बखूबी बताने में श्रीमती झा कामयाब रहीं. पन्ना झा ने विजातीय नामक कथा पाठ किया, जिसमें उन्होंने यह बताया कि किस तरह यह समाज लड़की को बोझ और लड़के को वंश वृद्धि का कारण मानती है. उन्होंने पाठ में यह बताया कि किस तरह एक युवती व उसकी मां समाज की इस सोच से संघर्ष करते हुए उनकी गलत सोच को सच्चाई के आइने से रूबरू कराती है. सिक नामक कथा का पाठ मेनका मल्लिक ने किया. उन्होंने यह बताया कि किस तरह दलित समाज की एक लड़की सामंतवादी सोच व उनकी मनमानी के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपने दादा के सपने(दारोगा बनने) को पूरा करती हैं. बिसरल-बिसरल नामक कथा पाठ के जरिये साहित्यकार सुष्मिता पाठक अपने बचपन के यादों की गलियाें में जाती है, जहां एक लड़की किस तरह पुरुषवादी सोच से टकराकर अपने ऊंचाई को हासिल करती है.

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