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नहीं मिला जमीन पर कब्जा, लौटे निवेशक

नहीं मिला जमीन पर कब्जा, लौटे निवेशकप्रभात पड़ताल : दो -20 वर्ष पहले शुरू हुई थी औद्योगिक विकास के लिए किसानों से जमीन खरीद -किसानों के कब्जे में हैं बियाडा की 1020 एकड़ भूमि- भूधारियों ने कई बार चहारदीवारी तोड़ कर पुलिस प्रशासन व सरकार को दी चुनौती संवाददाता, भागलपुरजिले के कहलगांव में 20 वर्ष […]

नहीं मिला जमीन पर कब्जा, लौटे निवेशकप्रभात पड़ताल : दो -20 वर्ष पहले शुरू हुई थी औद्योगिक विकास के लिए किसानों से जमीन खरीद -किसानों के कब्जे में हैं बियाडा की 1020 एकड़ भूमि- भूधारियों ने कई बार चहारदीवारी तोड़ कर पुलिस प्रशासन व सरकार को दी चुनौती संवाददाता, भागलपुरजिले के कहलगांव में 20 वर्ष पहले शुरू हुए औद्योगिक विकास के लिए किसानों से भूमि अधिग्रहण और औद्योगिक इकाई स्थापित करने की प्रक्रिया धूमिल होती दिख रही है. निवेशकों को सरकार की ओर से न ही जमीन मिल पायी और न ही मूलभूत सुविधा उपलब्ध करा पायी. लौट कर गये निवेशक के साथ-साथ अन्य निवेशक भी हतोत्साहित हैं और इस क्षेत्र में फिर कोई उद्योग लगने से रह ही गया. उद्योग लगाने के लिए नहीं लगी एक ईंटउद्यमी प्रतिनिधि बताते हैं कि भागलपुर में बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार, बियाडा दो स्थानों पर जमीन ली गयी है. पहला वृहत औद्योगिक प्रांगण बरारी, जो 1970 में स्थापित किया गया है और दूसरा औद्योगिक विकास केंद्र, कहलगांव. बरारी में 51. 35 एकड़ भूमि है और कहलगांव में 1020 एकड़ भूमि है. इसमें बरारी में तो 37 बने-बनाये शेड हैं. बाकी लोगों को जमीन मिली है. कहलगांव में 780 एकड़ भूमि आवंटित की गयी. इस्टर्न बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष मुकुटधारी अग्रवाल ने बताया कि कहलगांव में बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार (बियाडा) की 1020 एकड़ भूमि पर उद्योग स्थापित करने के लिए घेराबंदी की गयी थी. यहां पर उद्योग स्थापित करने के लिए चहारदीवारी बनी थी, जो जगह-जगह तोड़ दी गयी. अब यहां पर खेती हो रही है और मवेशी का चारागाह बन गया है. जबकि यहां के किसानों को जमीन लेने के एवज में मुआवजा भी दिया गया था. साथ ही वर्षों तक जमीन देने के बाद भी खेती की गयी. यहां पर बियाडा की ओर से बिजली, पानी, सड़क व सुरक्षा देने का आश्वासन दिया गया था, जो पूरा नहीं किया गया. उद्योग लगाने के लिए आने वाले निवेशक सुविधा के अभाव में लौट गये. सभी निवेशकों से बियाडा की ओर से निर्धारित राशि ली गयी थी. जब उद्योग स्थापित करने के लिए भूमि पर कब्जा व सुविधा दिलाने में बियाडा विफल रहा, तो सभी निवेशकों को निर्धारित राशि लौटाना पड़ा. इस्टर्न बिहार चेंबर ऑफ काॅमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष शैलेंद्र सर्राफ का कहना है कि बिहार या किसी भी जगह पर उद्योग लगाने के लिए मूलभूत संरचना की आवश्यकता होती है. इसमें सबसे बड़ी भूमिका भूमि की है. जबतक सरकार उद्योगपतियों को उद्याेग लगाने के लिए वाजिब दाम पर जमीन उपलब्ध नहीं करा पायेगी, तो बिहार में उद्योग-धंधे लगने की परिकल्पना भी बेमानी है. इसका सबसे ताजा उदाहरण कहलगांव स्थित बियाडा का है. यहां सरकार ने जमीन उपलब्ध कराने में असमर्थता जतायी और सारे निवेशक एक के बाद एक उद्योग लगाने से विमुख हो गये. नहीं हो सकी एक भी औद्योगिक इकाई स्थापित इसकी वजह से आवंटित सारी औद्योगिक इकाइयों ने एक के एक ने अपने हाथ खींच लिये. वर्तमान में कहलगांव में एक भी औद्योगिक इकाई स्थापित नहीं हो सकी और बियाडा की जमीन पर भू स्थापितों का अभी भी कब्जा बना हुआ है. हजारों लोगों को मिलता रोजगार इसके अलावा हैंडलूम, बिजली उत्पाद, सीमेंट फैक्टरी, बिस्कुट फैक्टरी, मकई प्रसंस्करण आदि की औद्योगिक इकाई यहां नहीं लग सकी. 1500 करोड़ रुपये का पूंजी निवेश होना था, वह नहीं हो सका. उद्यमियों का यह मानना है कि यहां पर सारी परियोजना लग जाती तो लगभग 15 से 20 हजार लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता. निजी पूंजी निवेश से क्षेत्रीय आर्थिक असंतुलन समाप्त होता, लोगों की क्रय शक्ति बढ़ती. खेती को भी मिलता बढ़ावा मेगा फूड पार्क की स्थापना होती तो इस प्रक्षेत्र में उत्पादित खाद्यान फल व सब्जी के बड़े स्तर पर प्रसंस्करण संभव हो पाता. इससे जुड़ी पूरक औद्योगिक इकाई स्थापित होती और किसानों को अपने उत्पाद का लाभकर मूल्य मिल पाता. लेकिन जमीन पर कब्जा दिलाने के अभाव में ये सारी इकाइयां नहीं स्थापित हो पायी. 10 निवेशकों को हुआ था जमीन आवंटन बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार के तहत औद्योगिक विकास केंद्र, कहलगांव में 1020 एकड़ भूमि है. कहलगांव में 780 एकड़ भूमि आवंटित की गयी, जिसमें 10 निवेशकों को जमीन एलॉट किया गया. इसमें विक्रमशिला टेक्सटाइल पार्क प्राइवेट लिमिटेड को 100 एकड़ भूमि, अंग हैंडलूम पार्क को 25 एकड़, स्टार सीमेंट फैक्ट्री को 70 एकड़, गंगा एंड नैचुरल रिसोर्सेज को 40 एकड़, अमृत सीमेंट को 30 एकड़, रॉयल अशोका मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर को 25 एकड़, स्कंद ग्रीन पावर लिमिटेड को 10 एकड़, केवेंटर मेगा फूड पार्क को 80 एकड़ और गुलशन पॉलिमार लिमिटेड को 100 एकड़ भूमि परियोजना स्थापित के लिए बियाडा द्वारा आवंटित की गयी थी, लेकिन पिछले तीन वर्षों में राज्य सरकार भू स्थापित के लगातार विरोध के कारण उद्यमियों को आवंटित भूमि पर कब्जा दिलाने में विफल रही.यहां पर की गयी थी जमीन आवंटित कहलगांव के अलीपुर, हबीबपुर, लुगाई, वभनगामा, कुट्टूपुर आदि जगहों में जमीन आवंटित की गयी थी. जमीन नहीं मिलने का यह दुष्परिणाम हुआ कि बिहार में खुलने वाला प्रथम मेगा फूड पार्क यहां से वापस चला गया.कोई प्रयास नहीं आया काम भागलपुर के तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त, जिला अधिकारी, उप आरक्षी महानिरीक्षक एव वरीय पुलिस अधीक्षक आदि ने कहलगांव में भू स्थापितों के साथ और पटना में मुख्य सचिव के साथ जमीन पर कब्जा दिलाने के लिए गंभीरता से विचार किया था और यह फैसला लिया गया था कि विवाद स्थल पर अस्थायी पुलिस चौकी का निर्माण किया जाये. और पुलिस बल की देखरेख में आवंटित जमीन की घेराबंदी करा कर उद्यमी को सौंप दी जाये. लेकिन भू विस्थापितों के लगातार विरोध और तेवर को देखते हुए सरकार के सारे निर्णय कार्यान्वित नहीं हो पाये.

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