साहित्यकार का कॉलम :::: पुरस्कार वापसी संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए हैडॉ योगेंद्रअभिव्यक्ति की आजादी एक भारतीय का संवैधानिक अधिकार है. इस अधिकार पर अगर हमला होता है तो संविधान पर हमला होता है़ डेढ़ सौ मौलिक किताबों के लेखक और अकादमी पुरस्कार से सम्मानित 77 वर्षीय लेखक की हत्या इसलिए कर दी जाती है कि वे लगातार धार्मिक पाखंड के खिलाफ थे़ पूर्व में नरेंद्र दाभोलकर जैसे शीर्षस्थ चिंतक की दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी गयी़ महाराष्ट्र के समाज सुधारक और मार्क्सवादी कार्यकर्ता गोविंद पंसारे को मारा गया़ लेखकों के पुरस्कार वापसी पर लोग विवाद कर रहे है़ किसी को पुरस्कार वापसी राष्ट्र का अपमान लगता है, किसी को लगता है कि यह राष्ट्रपति का अपमान है और किसी को लगता है कि यह ज्यूरी का अपमान है़ डेढ सौ मौलिक किताबों के लेखक और अकादमी पुरस्कार प्राप्त प्रो कलबुर्गी की हत्या हो जाये तो क्या राष्ट्र अपमानित नहीं होता? पुरस्कार वापसी अगर अपमान है तो लेखकों और समाज सुधारकों की हत्या क्या राष्ट्र का सम्मान है? प्रो कलबुर्गी की हत्या के बाद भी सिलसिला रुका नहीं है़ दलित लेखक हुंचगी प्रसाद का हाथ तोड़ दिया गया़ पीं मुरूगन नामक लेखक को इतना प्रताड़ित किया गया कि उन्होंने घोषणा की कि पी मुरूगन नामक लेखक मर गया और उन्होंने लिखना बंद कर दिया़ कर्नाटक में टीपू सुल्तान को लेकर हंगामे हो रहे हैं. एक हिंदूवादी संस्थान की तरफ से टीपू सुल्तान के बारे में कई भ्रामक व विरोधी बयान आ रहे हैं. बावजूद इसके कुछ तथ्य ऐसे हैं कि जो टीपू सुल्तान के खिलाफ जाते हैं तो विरोध करनेवाले सभा करे, सम्मेलन का आयोजन करे, किताब छापे. लेकिन नहीं, वह किसी को सम्मेलन-सभा नहीं करने देगा. क्योंकि उसने तय कर रखा है कि कौन राष्ट्रभक्त है और कौन राष्ट्रद्रोही़ पुस्तक विमोचन समारोह करनेवालों के मुंह पर कालिख पोता जायेगा और कालिख पोतनेवालों को सम्मानित किया जायेगा. दूसरी तरफ जो लेखक संविधान में प्रदत्त अधिकार के लिए जब शांतिपूर्वक प्रतिरोध करेंगे तो उन्हें बीजेपी सांसद साक्षी महाराज राष्ट्रद्रोही करार देंगे. दुर्भाग्यजनक यह है कि इतना होने पर भी सरकार या तो मूक रहेगी या फिर लेखकों की पुरस्कार वापसी में राजनीति ढूंढेगी़ लेखकों के हत्यारों पर कार्रवाई भी नहीं होगी और हत्यारे अन्य लेखकों को मारने के लिए वाकायदा ट्विट करेगा़ संवैधानिक मूल्यों की हत्या के खिलाफ खड़े लेखकों की यह पहलकदमी स्वागतयोग्य है़ इतिहास के कई कंटकाकीर्ण क्षणों में लेखकों ने सत्य का साथ दिया है और मानवीय मूल्यों की रक्षा की है़ यह देश का दुर्भाग्य है कि देशभक्ति का सर्टिफिकेट उस परंपरा के लोग बांट रहे हैं जिस परंपरा ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया़ वरिष्ठ साहित्यकार व शिक्षक, टीएनबी कॉलेज, भागलपुर
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साहत्यिकार का कॉलम :::: पुरस्कार वापसी संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए है
साहित्यकार का कॉलम :::: पुरस्कार वापसी संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए हैडॉ योगेंद्रअभिव्यक्ति की आजादी एक भारतीय का संवैधानिक अधिकार है. इस अधिकार पर अगर हमला होता है तो संविधान पर हमला होता है़ डेढ़ सौ मौलिक किताबों के लेखक और अकादमी पुरस्कार से सम्मानित 77 वर्षीय लेखक की हत्या इसलिए कर दी जाती […]
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