नाथनगर : बिहार सरकार ने इस वर्ष जनवरी में बिहार रेशम व वस्त्र संस्थान, नाथनगर में फिर से बीटेक सिल्क एंड टेक्नोलॉजी के चार वर्षीय डिग्री कोर्स की पढ़ाई शुरू कराने की पहल की थी. सरकार ने इस संस्थान को आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी से संबद्ध कर दिया था. सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में संबद्धता इस शर्त पर दी गयी थी कि पाठ्यक्रमों के संचालन के लिए केंद्र सरकार के मानकों को संस्थान द्वारा पूरा कर लिया जायेगा.
अधिसूचना जारी हुए 10 माह बीत गये, लेकिन न मानक पूरा हुआ और न ही पाठ्यक्रम शुरू हो सके. अधिसूचना की कॉपी उद्योग विभाग के प्रधान सचिव, बिहार रेशम व वस्त्र संस्थान के निदेशक, आर्य भट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति, शिक्षा विभाग के मंत्री, शिक्षा विभाग के आप्त सचिव व निदेशक (उच्च शिक्षा) को उपलब्ध करायी गयी थी, लेकिन किसी भी स्तर से पाठ्यक्रम शुरू होने की दिशा में पहल नहीं हुई. अधिसूचना के बारे में संस्थान के प्राचार्य की अनुपस्थिति में प्रभारी प्राचार्य डॉ राम प्रसाद साह का कहना है कि संस्थान को इस आशय का कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है और न ही डिग्री कोर्स में एडमिशन लेने के लिए कोई काम हो रहा है.
कभी एशिया का इकलौता था यह संस्थानवर्ष 1922 में स्थापित राजकीय रेशम संस्थान नाथनगर कभी एशिया का इकलौता रेशम संस्थान हुआ करता था. संस्थान में जंग खाती बाइंडिंग, ट्विस्टिंग व टेस्टटिंग मशीने इस बात की गवाही दे रही है कि कभी यह संस्थान आबाद रहा होगा. इस संस्थान में पूरे बिहार, बंगाल सहित अन्य पड़ोसी राज्यों के छात्र पढ़ाई करने आते थे. शुरू में यहां एक वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स की पढ़ाई होती थी, जिसमें रेशम उत्पादन (सेरीकल्चर), बुनाई व रंगाई-छपाई विषयों पर आधारभूत तकनीकी जानकारी 32 छात्रों को दी जाती थी.
तत्कालीन प्राचार्य वीएसपी सिन्हा के प्रयास से 1978 में इस संस्थान को उत्क्रमित करते हुए बिहार रेशम महाविद्यालय की स्थापना कर चार वर्षीय बीएससी सिल्क टेक की डिग्री की पढ़ाई शुरू की गयी थी, लेकिन एआइसीटीई ने यहां मानक पूरा नहीं करने की वजह से डिग्री कोर्स में एडमिशन पर रोक लगा दी. 1984 में इस संस्थान का नाम बदल कर बिहार रेशम व वस्त्र संस्थान, नाथनगर कर दिया गया. फिर भी संस्थान की नहीं बदली सूरतवर्ष 2011 में शासी निकाय ने बैठक कर यहां के प्राचार्य को संस्थान को आर्य भट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय से संबंद्धता प्राप्त कराने के पहल के लिए अधिकृत किया था. उन्होंने इसके लिए एकेयू को आवेदन भेजा, जिस पर सरकार के शिक्षा विभाग ने 16 जनवरी 2015 को अधिसूचना संख्या 15/एम 1-208/2014 जारी कर आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी से संबद्ध किया.
बावजूद आज यह संस्थान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. धरातल पर नहीं उतरी घोषणाएं केंद्र व राज्य सरकार के स्तर पर यहां के दम तोड़ते इंफ्रास्टक्चर व गिरते शैक्षणिक ढांचे को सुधारने की कई बार घोषणाएं हुई, लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात साबित हुए. वर्तमान में यहां दो वर्षीय वोकेशनल कोर्स की पढ़ाई हो रही है, जिसमें 20 छात्र हैं. पढ़ाई भी भगवान भरोसे हो रही है. यहां न तो पर्याप्त शिक्षक है और न ही सीखने सीखाने के संसाधन. ऐसे में एकेयू से मान्यता मिलने के बावजूद एआइसीटीई के मानक को पूरा करना संस्थान के लिए एक सपना बना है.