भागलपुर: दमा ( सांस की बीमारी) सही इलाज नहीं होने से बढ़ता है. धीरे-धीरे मरीज की स्थिति गंभीर हो जाती है. मौत हो जाती है. दमा को पूरी तरह से ठीक तो नहीं किया जा सकता, पर उसे कंट्रोल किया जा सकता है. उक्त बातें विश्व अस्थमा दिवस पर मंगलवार को जेएलएनएमसीएच स्थित मेडिसिन विभाग के सेमिनार हॉल में डीएम डॉ वीरेंद्र प्रसाद यादव ने कही. टीबी व चेस्ट विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ डीपी सिंह ने बताया कि विश्व में 30 करोड़ दमा के मरीज हैं.
एक अनुमान के मुताबिक 2025 तक इसकी संख्या 40 करोड़ हो जायेगी. डॉ केडी मंडल ने बताया कि प्रसन्न रहें और वर्तमान में जीना सीखें. जो भविष्य के बारे में अधिक सोचते हैं, वही बीमार पड़ते हैं. डॉ एके पांडेय ने बताया कि शुरुआती दौर में लक्षण पकड़ में आने से इस पर काफी हद तक काबू किया जा सकता है. इसकी मुख्य वजह प्रदूषण है. शिशु विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ आरके सिन्हा ने बताया कि पांच वर्ष से 11 वर्ष के 10 प्रतिशत बच्चे इस बीमारी से प्रभावित होते हैं.
डॉ भारत भूषण ने बताया कि दमा के मरीजों को सिगरेट बिल्कुल नहीं पीनी चाहिए. डॉ हेम शंकर शर्मा ने कहा कि किसी भी बीमारी की अगर शुरुआती दौर में गंभीरता से इलाज शुरू हो, तो वह काफी हद तक कंट्रोल हो जाता है. सेमिनार में क्विज प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें जूनियर डॉक्टर अल्पना, सुमन, मनीषा शर्मा प्रथम स्थान पर रहे. मौके पर डॉ एमएन झा, डॉ केके सिन्हा, डॉ राजीव कुमार, डॉ मनीष, डॉ आरपी जायसवाल, डॉ विनय कुमार झा, इंद्रजीत कुमार सहित अन्य मौजूद थे.
करें बचाव
धूल, पराग कणों के अलावा पालतू कुत्ते व बिल्ली के पास न जाएं
बीपी और दर्द की दवा से परहेज करें
आंखों की दवा से भी दमा की रहती है संभावनाएं
नाक में मास्क लगा कर चलें
सिगरेट व अल्कोहल का न करें सेवन
चिकित्सक की सलाह से ही लें दवा
खास बातें
बीमारी बढ़ने पर सांस की नली में सूजन होती है और रात में नींद नहीं आती
कंप्यूटराइज्ड मशीन से फेफड़े की जांच होने से बीमारी का जल्द पता चलता है
बीमार मरीज मुंह से गोली न लें, इन्हेलर थेरेपी से अधिक लाभ
छोटे बच्चों में भी कई बार व्यायाम करने से होता है दमा
वंशानुगत बीमारी वाले मरीजों को करना चाहिए परहेज