त्रजीवेश रंजन सिंहहाल के दिनों बांका में सब कुछ ठीक नहीं. बेहतर और कुछ अलग करने के लिए चर्चित बांका की चर्चा गोली-बम के कारण होने लगी है. स्नेह के रिश्ते दरकने लगे हैं. उत्साह की जगह भय ने ले ली है. लोग हर वक्त भयभीत रह रहे हैं. शाम हुई नहीं कि घर जाने की जल्दी, कहीं घर जाने में देर हुई नहीं कि घर से फोन आने का सिलसिला जारी. रात तक गुलजार रहनेवाले बांका में अब जल्द रात होने लगी है. पिछले दो दिनों में स्थिति और बिगड़ गयी है. दिन दहाड़े बैंक में हमला. सरेआम बमबाजी और फिर दो दिन बाद दिन दहाड़े बम मार कर हत्या. बांका की मिट्टी की खुशबू सोंधी है, बारूद की नहीं. पर हाल में सब बदल रहा है. कारण तलाशने जरूरी हैं. बम जेब में छुपाने की चीज नहीं. क्यों नहीं नजर में आ रहे ऐसे लोग जो खुलेआम बम लेकर घूम रहे. साफ है शासन-प्रशासन की धमक कुंद हो रही. हो भी क्यों नहीं बाहर से आनेवाले आतंक बरपा चले जा रहे और पुलिस जांच व छापेमारी की बात कहती है. कुछ दिन पहले भी बिजली के ऑफिस में लूट कर शहर में जगह-जगह बमबारी हुई थी. क्यों नहीं पकड़े जाते अपराधी? क्या बांका के बांके अब बम चलाने लगे हैं, या फिर बाहर से मिल रही मदद? अब भी समय है चेतें. यह शहर सबका है. इसकी आन बचानी है, तो शासन-प्रशासन के साथ सबको आगे आना होगा. अपने बीच की कमी दिख रही, तो उसे दूर करें. तभी बचेगी बांका की लाज. पुलिस प्रशासन के सामने भी यह चुनौती है. आम बात है कि अगर पुलिस चाह ले, तो कहीं कोई पत्ता तक नहीं हिल सकता, फिर यह तूफान क्यों? अब भी चेतें वरना शांति व सादगी के लिए प्रसिद्ध बांका के दामन में लगनेवाले इस दाग के गुनाहगार होने से खुद को बचा नहीं पायेंगे.
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ये बांका को लगी किसकी नजर
त्रजीवेश रंजन सिंहहाल के दिनों बांका में सब कुछ ठीक नहीं. बेहतर और कुछ अलग करने के लिए चर्चित बांका की चर्चा गोली-बम के कारण होने लगी है. स्नेह के रिश्ते दरकने लगे हैं. उत्साह की जगह भय ने ले ली है. लोग हर वक्त भयभीत रह रहे हैं. शाम हुई नहीं कि घर जाने […]
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