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खूबसूरत दिखने लगा इब्राहिम हुसैन का मकबरा

भागलपुर: बंगाल के 1666-70 के आसपास गवर्नर रहे इब्राहिम हुसैन खान (फतेह जंग) का गंगा नदी के किनारे भागलपुर के झौवा कोठी स्थित मकबरा अपने मूल स्वरूप में आने लगा है. 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में निर्मित यह मकबरा भागलपुर शहर का पहला ऐतिहासिक धरोहर है. इसके संरक्षण व जीर्णोद्धार के लिए बिहार सरकार ने […]

भागलपुर: बंगाल के 1666-70 के आसपास गवर्नर रहे इब्राहिम हुसैन खान (फतेह जंग) का गंगा नदी के किनारे भागलपुर के झौवा कोठी स्थित मकबरा अपने मूल स्वरूप में आने लगा है. 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में निर्मित यह मकबरा भागलपुर शहर का पहला ऐतिहासिक धरोहर है. इसके संरक्षण व जीर्णोद्धार के लिए बिहार सरकार ने पहल की है.

पुरातत्वशास्त्री व मकबरे का जीर्णोद्धार कर रही एजेंसी के सलाहकार डॉ एसके त्यागी के मुताबिक इस मकबरा का जिक्र फ्रांसिस बुकानन की डायरी में मिलता है. बुकानन ने अपनी डायरी में लिखा है कि उत्तर मुगलकालीन स्थापत्य शैली का यह मकबरा पूर्वी भारत में सर्वोत्तम उदाहरण है. बता दें कि डॉ त्यागी तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग के शिक्षक हैं.

चूना, सुर्खी व मिट्टी के ईंट का प्रयोग

डॉ त्यागी ने बताया कि इब्राहिम खान की मृत्यु युद्ध में हुई थी. ऐसा कहा जाता है कि यहां उन्हें उनके घोड़े के साथ दफनाया गया था. कालांतर में उनके परिजनों की कब्र भी यहीं बनायी गयी. इसमें चूना, सुर्खी व कई प्रकार की मिट्टी की ईंटों का इस्तेमाल किया गया है. द्वार की चौखटें, देहरी, लिंटल, अष्टकोणीय छतरी स्तंभ आदि के निर्माण के लिए बासाल्ट (असिताश्म) पत्थर का उपयोग किया गया है.

अब बची केवल एक सीढ़ी

मकबरे के ऊपर पहुंचने के लिए दक्षिण, उत्तर व पश्चिम की ओर से सीढ़ियां बनायी गयी थी. इनमें केवल उत्तर की ओर से सीढ़ी ही बची है.

बरामदे की अनूठी है छत

बरामदे की छत एक-दूसरे से सटी हुई ईंटों के गुंबदों के माध्यम से बनायी गयी है. इस इंटरसेक्टिंग (प्रतिछेदी) गुंबदों के माध्यम से समतल छतों को बनाने का पहला नमूना मध्यकालीन भारत में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 14वीं सदी में निर्माण करायी गयी इमारत अलाई दरवाजा (कुतुबमीनार के सामने स्थित) में मिलता है. मध्य में विशाल केंद्रीय गुंबद है, जिसके अंदर कब्रें हैं.

ऐसी थी स्थापत्य योजना

इस मकबरे में वर्गाकार चबूतरा के अंदर बरामदा है. इसके अंदर वर्गाकार कब्रगाह हैं. बरामदे में प्रत्येक दिशा में इसलामिक वास्तुशास्त्र के आधार पर पांच मेहराबें इसलाम धर्म के पांच आधार स्तंभों का प्रतीक है. बाहरी चबूतरों को धरातल से तकरीबन 12 फीट ऊंचा बनाया गया है. इसके चारों कोने पर चार बुर्ज हैं. इन बुजरे के ऊपर अष्टकोणीय छतरी का निर्माण किया गया था, जो अब विद्यमान नहीं है. फ्रांसिस बुकानन द्वारा 1810 ई में किये गये इस इस मकबरे के सर्वे के दौरान ये छतरियां विद्यमान थीं.

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