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जे रौले एक नठिनिया रे जान, जान बैठी गैले रे…

-भागलपुर रंग महोत्सव में नृत्य प्रतियोगिता में दिखी देश की रंग-बिरंगी संस्कृति फोटो नंबर : आशुतोष जीसंवाददाता, भागलपुर भागलपुर रंग महोत्सव के दूसरे दिन सोमवार को कला केंद्र में नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. इसमें विभिन्न राज्यों से आयी सांस्कृतिक संस्था के कलाकारों ने गोदना, पुरवइया, सरहुल, छऊ, थेमसा आदि लोक नृत्य प्रस्तुत कर […]

-भागलपुर रंग महोत्सव में नृत्य प्रतियोगिता में दिखी देश की रंग-बिरंगी संस्कृति फोटो नंबर : आशुतोष जीसंवाददाता, भागलपुर भागलपुर रंग महोत्सव के दूसरे दिन सोमवार को कला केंद्र में नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. इसमें विभिन्न राज्यों से आयी सांस्कृतिक संस्था के कलाकारों ने गोदना, पुरवइया, सरहुल, छऊ, थेमसा आदि लोक नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को बहुरंगी संस्कृति से अवगत कराया. सबसे पहले ताल एक नृत्य संस्थान की ओर से श्वेता भारती के निर्देशन में कलाकारों ने गोदना लोक नृत्य पेश किया. इसमें उत्तरा ही राज्य से जे रौले एक नठिनिया रे जान, जान बैठी गैले रे गीत पर नृत्य में अंग क्षेत्र की संस्कृति को प्रस्तुत किया. इसे दर्शकों ने सराहा. बही पुरबइया, मचल उठे दर्शकइसके बाद जय प्रेरणा संस्था, पटना की ओर से कलाकारों ने फुर-फुर बहेला पुरबइया…गीत पर पुरबी नृत्य प्रस्तुत किया. अंजीका म्यूजिकल ग्रुप ऑफ मणिपुर ने पारंपरिक युद्ध की कला को प्रस्तुत कर दर्शकों का दिल जीत लिया. इसमें कभी भाला तो कभी तलवारबाजी का करतब दिखाया. इसी दौरान भाले की नोक पर एक कलाकार ने सो कर दर्शकों को दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर दिया. कार्यक्रम में दीपांशु एंड ग्रुप, सुल्तानगंज की ओर से नृत्य प्रस्तुत किया गया. युवा नाट्य संगीत एकेडमी, रांची की ओर से सरहुल नृत्य प्रस्तुत किया गया. प्रतियोगिता के दौरान अन्य सांस्कृतिक संस्थाओं ने नृत्य की प्रस्तुति दी. लोक नृत्य व क्षेत्रीय नृत्य के निर्णायक की भूमिका में आगरा की अलका सिंह एवं सुल्तानगंज के रामजी थे.

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