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भागलपुर : जिले में सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का हाल

भागलपुर : जिले में सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का हाल बुरा है. बेहतरीनउदाहरण आयुष्मान भारत है. जिले के कई पीएचसी में कई योजनाएं शुरू तो हुई लेकिन बीच में ही दम तोड़ गयी. कुछ योजनाएं का ठीक ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो पाया. विभिन्न योजनाओं का यह हाल है. 2025 तक टीबी का करना है उन्मूलन, […]

भागलपुर : जिले में सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का हाल बुरा है. बेहतरीनउदाहरण आयुष्मान भारत है. जिले के कई पीएचसी में कई योजनाएं शुरू तो हुई लेकिन बीच में ही दम तोड़ गयी. कुछ योजनाएं का ठीक ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो पाया. विभिन्न योजनाओं का यह हाल है.

2025 तक टीबी का करना है उन्मूलन, सदर में चिकित्सक नहीं : केंद्र सरकार टीबी रोग से देश को मुक्त करने में लगी है. लक्ष्य है कि 2025 तक देश इस रोग से मुक्त हो जाये. ऐसे में सदर अस्पताल का हाल बुरा है. यहां पिछले डेढ़ साल से टीबी चिकित्सक ही नहीं है. जिससे मरीज आते है तो इसका काउंसलिंग भी नहीं हो पाता है.
आयुष्मान भारत योजना
प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य योजनाओं में एक आयुष्मान भारत योजना. रसदर और मायागंज अस्पताल के अलावा यह योजना बेहतर तरीके से किसी भी पीएचसी में लागू नहीं हुई है. नवगछिया के कई पीएचसी में योजना लागू नहीं है तो नाथनगर, शाहकुंड, कहलगांव, पीरपैती, सबौर सभी को मिला दे तो 50 से ज्यादा मरीजों को लाभ नहीं मिला है. योजना फेल होने की वजह संसाधन का अभाव, आयुष्मान मित्र की नियुक्ति नहीं होना बताया जा रहा है.
पुरुष नसबंदी योजना : जनसंख्या पर रोकथाम लगाने के लिए सरकार ने पुरुष नसबंदी कार्यक्रम आरंभ किया. इसे सफल बनाने का भार आशा, एएनएम समेत स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के कंधे पर दिया गया. ऐन वक्त आशा कार्यकर्ता हड़ताल पर चली गयी. इसमें आंकड़ों के रूप में देखें तो काफी कमी आयी. इस योजना को लेकर विभाग का अपना तर्क यह है कि किसी को नसबंदी के लिए जबरदस्ती नहीं लाया जा सकता है. योजना साल भर चलती है.
योजना मंद में आयी राशि को भी खर्च नहीं कर पा रहा है विभाग
सरकार विभिन्न योजना को लेकर राशि स्वास्थ्य विभाग को आवंटित करती है. समीक्षा में पाया गया है कि पीएचसी राशि को खर्च तक नहीं कर पा रहा है. परिणाम जो सुविधा मरीजों को मिलनी चाहिए वह मिल नहीं रही है. मैटरनल हेल्थ योजना की राशि को खर्च करने में चार से ज्यादा पीएचसी फेल हो गया. वहीं चाइल्ड हेल्थ प्रोग्राम का भी यही हाल है. हालांकि वित्तीय वर्ष खत्म होने में दो माह का समय बचा है.
योजना फेल होने की वजह क्या है
बताया जा रहा हैं कि योजना के फेल होने की वजह आशा कार्यकर्ताओं की हड़ताल थी. ऐन वक्त पर हड़ताल पर इनके जाने से योजना ठहर सी गयी. इसके अलावा योजना को बेहतरीन तरीके से लागू करने के लिए चिकित्सक, स्वास्थ्य कर्मी की घोर कमी है. कई पीएचसी तो आयुष चिकित्सक के दम पर चल रहा है. ऐसे में लगातार आ रही योजना मैन पावर की कमी से भी धड़ाम हो रही है. वहीं एक साथ कई योजना सरकार चलाती है जिसमें एक ही कर्मचारी लगे रहते है. जो असफलता का सबसे बड़ा कारण है.
मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना : माता पिता अपनी बेटियों का पूर्ण टीकाकरण कराएं. इसके लिए प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना आरंभ किया गया. एक साल बीतने को है अब तक मात्र 300 बच्चियों को इस योजना का लाभ दिया गया है. पूर्ण टीकाकरण के बाद बच्चियों को सरकार प्रोत्साहन राशि के रूप में दो हजार रुपया प्रदान करती है. बच्चियों को लाभ दिलाने का भार एएनएम के कंधे पर था. इस योजना को सफल करने के लिए जो प्रयास होना चाहिए था वह नहीं हुआ.
बच्चियों को नहीं मिल रही है आयोडिन की नीली गोली
अनीमिया रोकथाम के लिए सरकार स्कूल नहीं जाने वाली बच्चियों को लिए आयरन फॉलिक एसिड गोली का वितरण किया जाना है. योजना में स्वास्थ्य कार्यकर्ता को ऐसे बच्चियों के पास घर घर जाकर गोली देनी थी. साथ ही स्कूल में भी इस गोली का वितरण किया जाना था. नियम है कि आशा सेविका बच्चों को गोली खिलायेंगी. साथ ही इनको घर पर जाकर गोली देंगी. यह योजना भी दम तोड़ रही है.
बीपीओ के लिए जमीन की तलाश
भागलपुर में भी बीपीओ उद्योग के फलने फूलने की संभावनाएं बढ़ गयी है. जल्दी ही भागलपुर में भी 100 सीटों का बीपीओ शुरू हो जायेगा. बीपीओ के लिए मंजूरी मिल चुकी है. हालांकि इनके लिए जमीन तलाशने का काम अभी शुरू हुआ है. सरकार ने सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क के जरिये इंडिया बीपीओ स्कीम की शुरुआत की थी. इसके तहत बीपीओ लगाने वाली कंपनियों के एकमुश्त निवेश पर 50 फीसद सब्सिडी देने का प्रस्ताव है.

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