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दो रजिस्ट्रारपर हो सकती है कार्रवाई

भागलपुर: जिस जमीन को लेकर दिवेश सिंह की हत्या की गयी, उस जमीन की रजिस्ट्री के समय तत्कालीन रजिस्ट्रार अयाज अहमद खां और वर्तमान रजिस्ट्रार सत्यनारायण प्रसाद पर गाज गिर सकती है. तत्कालीन रजिस्ट्रार पर विधि के विरुद्ध उक्त जमीन की रजिस्ट्री करने का आरोप है तो वर्तमान रजिस्ट्रार पर पुलिस को झूठी सूचना देने […]

भागलपुर: जिस जमीन को लेकर दिवेश सिंह की हत्या की गयी, उस जमीन की रजिस्ट्री के समय तत्कालीन रजिस्ट्रार अयाज अहमद खां और वर्तमान रजिस्ट्रार सत्यनारायण प्रसाद पर गाज गिर सकती है.

तत्कालीन रजिस्ट्रार पर विधि के विरुद्ध उक्त जमीन की रजिस्ट्री करने का आरोप है तो वर्तमान रजिस्ट्रार पर पुलिस को झूठी सूचना देने का आरोप है. यह खुलासा पुलिस की जांच में हुआ है. दोनों रजिस्ट्रार की भूमिका की जांच के लिए एसएसपी राजेश कुमार ने एएसपी हर किशोर राय और सिटी डीएसपी वीणा कुमारी को जिम्मेदारी दी है. दोनों की संयुक्त जांच रिपोर्ट के मिलते ही दोनों रजिस्ट्रार के खिलाफ कार्रवाई के लिए निबंधन सचिव को लिखा जायेगा. जोनल आइजी ने भी इस आशय का आदेश एसएसपी को दिया है.

निबंधन में अधिकारी-कर्मी की संलिप्तता : विवादित जमीन की रजिस्ट्री के समय कौन रजिस्ट्रार थे, इसकी सूचना पुलिस ने निबंधन कार्यालय से मांगी थी. निबंधन कार्यालय ने अपने जवाब में कहा है कि तत्कालीन रजिस्ट्रार अयाज अहमद खां वर्तमान में एआइजी हैं और न्यू सचिवालय विकास भवन, पटना में उनका कार्यालय है. पुलिस के मुताबिक तत्कालीन रजिस्ट्रार ने विवादित जमीन की रजिस्ट्री दीपक भुवानिया के नाम से कर दी, जबकि इस जमीन पर टाइटिल शूट चल रहा था. नियमानुसार विवादित जमीन की रजिस्ट्री विधि के प्रावधानों के खिलाफ है. आइजी ने भी अपनी रिपोर्ट में निबंधन कार्यालय के अधिकारी-कर्मी की भूमिका को पूरे मामले में संदिग्ध बताया है. साथ ही कहा है कि विधि विरुद्ध निबंधन में निबंधन कार्यालय के अधिकारी-कर्मी संलिप्त हैं.

पुलिस को किया गुमराह : पुलिस ने जब उक्त जमीन की रजिस्ट्री के संबंध में निबंधन विभाग के वर्तमान रजिस्ट्रार से विधि के प्रावधानों की जानकारी मांगी तो विभाग की ओर से पुलिस को गलत सूचना उपलब्ध करा दी गयी. पुलिस द्वारा मांगी गयी सूचना के आधार पर निबंधन कार्यालय ने संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 की धारा 52 का हवाला देते हुए पुलिस को बताया कि ‘किसी जमीन का निबंधन सक्षम न्यायालय के आदेश पर ही रोका जा सकता है. यदि सक्षम न्यायालय का आदेश निबंधन पर रोक लगाने पर नहीं है तो उसका निबंधन नहीं रोका जा सकता है.’ जबकि आइजी ने नियमों का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि निबंधन विभाग का यह जबाव त्रुटिपूर्ण और पथ भ्रष्ट करने का प्रयास है. विधि के प्रावधानों में यह स्पष्ट किया गया है कि किसी अचल संपत्ति के संबंध में यदि सक्षम न्यायालय के अधिकारिता के प्रश्न पर वाद लंबित हो, तब किसी भी पक्षधर द्वारा लंबित रहने की अवधि तक किसी भी अन्य को संपत्ति का अंतरण नहीं किया जा सकता है.

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