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सुधार के कड़े निर्णय मंजूर, ठकुरसुहाती नहीं

जीवेश रंजन सिंह इस सप्ताह कोसी-पूर्व बिहार में दो बड़े घटनाक्रम हुए. दो दिनों से कोसी-पूर्व बिहार की लाइफ लाइन विक्रमशिला पुल पर वाहनों का परिचालन बंद है. त्योहारों व केले की कटाई की तैयारी में जुटा पूरा इलाका अस्त-व्यस्त हो गया है. गंगा के दोनों किनारों के बीच रोजी-रोटी से लेकर रिश्ते-नाते की मजबूत […]

जीवेश रंजन सिंह
इस सप्ताह कोसी-पूर्व बिहार में दो बड़े घटनाक्रम हुए. दो दिनों से कोसी-पूर्व बिहार की लाइफ लाइन विक्रमशिला पुल पर वाहनों का परिचालन बंद है. त्योहारों व केले की कटाई की तैयारी में जुटा पूरा इलाका अस्त-व्यस्त हो गया है.
गंगा के दोनों किनारों के बीच रोजी-रोटी से लेकर रिश्ते-नाते की मजबूत डोर है. रोज अरबों के कारोबार व जेएलएनएमसीएच से जीवन रक्षा के लिए हजारों लोग व वाहन इधर से ऊधर दौड़ते हैं. बावजूद इसके थोड़े बतकुच्चन व कुछ नाराजगी के साथ आम अवाम ने भी इस व्यवस्था में अपनी भागेदारी निभानी शुरू कर दी है. तभी तो देर रात अपने मरीज को टांग कर इस पार से उस पार ले जानेवाले लोग भी आक्रामक नहीं हो रहे, जबकि आम दिनों में किसी छोटे-मोटे मुद्दे पर भी वो मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं.
हालांकि यह अपेक्षा प्रशासन से जरूर है कि जिस तरह मरम्मत स्थल के दोनों ओर अॉटो की व्यवस्था है, वैसे ही एंबुलेंस की भी व्यवस्था करे. साथ ही मरम्मत कार्य में इतनी ईमानदारी जरूर बरते कि पुल मजबूत हो जाये, काम के नाम पर खानापूर्ति न हो. वहीं दूसरी ओर मुंगेर में लगातार बड़ा अभियान जारी है. अब तक 20 एके 47 जैसे खतरनाक हथियार पकड़े जा चुके हैं. छापेमारी जारी है. आरोपित पकड़े जा रहे हैं.
अन्य पर दबिश बनाने का काम जारी है. कहीं कोई विरोध नहीं. कारण साफ है सबको अपना भविष्य दिख रहा. पुल की मरम्मत हुई तो जिंदगी की रफ्तार बनी रहेगी, वरना इसी पुल की तर्ज पर बने पटना के गांधी सेतु का हाल किसी से छुपा नहीं है. लगभग डेढ़ दशक पहले की स्थिति भी लोग नहीं भूले कि नवगछिया से भागलपुर आना किसी युद्ध से कम नहीं था.
इसी प्रकार ऐतिहासिक नगरी मुंगेर की पहचान तेजी से बदलती जा रही थी. योग व दान की यह धरती बारूद की गंध से व्याकुल थी. पर इस त्याग की नगरी के लोग बदलाव चाहते हैं, लड़ना और जीतना जानते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो 1943 के भूकंप में तहस-नहस होने के बाद भी मुंगेर और खूबसूरत नहीं होता. अब बदनामी से ऊबरने की होड़ में हैं मुंगेरवासी. इसी का परिणाम है अपराधियों के खिलाफ सफलता.
ये दो उदाहरण हैं मानस के बदलाव के. जीवन व भविष्य की बेहतरी की चिंता के. अब वैसे हर कड़े निर्णय के साथ लोग खड़े हैं, जिनसे बेहतरी की आस हो, पर ठकुरसुहाती के बोल या निर्णय अब पसंद नहीं. यही कारण है कि आज अधिकतर जनप्रतिनिधि से लेकर अधिकारी सम्मान खो रहे. उनके किसी भी निर्णय को संदेह की नजर से देखने लगे हैं लोग.
इन दो उदाहरणों के गर्भ में कई संकेत छुपे हैं. मिजाज बदल रहा, व्यवस्था को भी बदलनी होगी. ऐसे में दो दिन पहले भागलपुर में जिलापरिषद की बैठक में स्वास्थ्य विभाग के एक बड़े अधिकारी का यह कहना कि चिकित्सक नहीं हैं एएनएम से काम चलाइये और एक दिन पहले मधेपुरा के एक सरकारी अस्पताल में पत्नी की मौत से शोकाकुल पति को एंबुलेंस उपलब्ध नहीं कराना और पति को गोद में पत्नी की लाश को लेकर जाना, भागलपुर में ही होटल के नाम पर सड़क के अतिक्रमणकारी के प्रति प्यार और फुटपाथी दुकानदारों की खिलाफत अब नहीं चलनेवाली. अब सुधार के कड़े निर्णय लोगों को पसंद हैं, पर ठकुरसुहाती (मक्खन लगाना) के बोल से परहेज होने लगा है.
कुछ भागलपुर नगर निगम और पथ निर्माण विभाग से : विक्रमशिला पुल पर वाहनों का परिचालन रुकने से शहर से गुजरनेवाले एनएच, कहलगांव और अन्य सड़कों पर लोड घटा है. यह मौका बार-बार नहीं मिलेगा.
इसका इस्तेमाल करें और सड़कों की मरम्मत करा लें, वरना अब यह बहाना नहीं चलेगा कि सड़क बनवाया पर ट्रकों के कारण टूट गयी. साथ ही आग्रह भागलपुर नगर सरकार के महानुभावों से त्योहारों का समय सिर पर है. अब तो कुछ रहम करें. या इस बार भी बिल बनवाने के खेल में अंतिम समय में शहर की सफाई और अन्य काम करेंगे.
अंत में आत्ममंथन करें, महात्मा गांधी ने कहा था :
आपकी मान्यताएं आपके विचार बन जाते हैं, आपके विचार आपके शब्द बन जाते हैं, आपके शब्द आपके कार्य बन जाते हैं, आपके कार्य आपकी आदत बन जाती है, आपकी आदतें आपके मूल्य बन जाते हैं, आपके मूल्य आपकी नियति बन जाती है.

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