भागलपुर : रूस में खेले जा रहे फीफा वर्ल्ड कप की खुमारी अभी दुनिया भर में छायी हुई है. दुल्हन की तरह सजे मैदान में दागे जा रहे गोल पर दुनिया भर में तालियां गूंज रही हैं. वहीं भागलपुर में महिला फुटबॉल खिलाड़ियों का नैहर ममलखा उजड़ रहा है और उसे बचा लेने की दुआएं भी नहीं मांगी जा रही. राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए भागलपुर के इस गांव ने न जाने कितनी खिलाड़ियां दी. लेकिन, बदले में यहां की खिलाड़ियों
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वहां सजा फीफा का मैदान, यहां उजड़ा महिला फुटबॉलरों का नैहर
भागलपुर : रूस में खेले जा रहे फीफा वर्ल्ड कप की खुमारी अभी दुनिया भर में छायी हुई है. दुल्हन की तरह सजे मैदान में दागे जा रहे गोल पर दुनिया भर में तालियां गूंज रही हैं. वहीं भागलपुर में महिला फुटबॉल खिलाड़ियों का नैहर ममलखा उजड़ रहा है और उसे बचा लेने की दुआएं […]
वहां सजा फीफा…
को मेडल के सिवा कुछ नहीं मिला. न जीने का ही सहारा मिला और न आगे बढ़ने के लिए गांव में खेल की सुविधा. नतीजतन प्रतिभावान खिलाड़ी बेटियां ब्याहती गयीं और गांव महिला खिलाड़ियों से सूना होता
चला गया.
कुछ खिलाड़ी, जिन्होंने राज्य की नाक को ऊंचा किया : ममलखा की राज्य स्तर की खिलाड़ी सुरुचि कुमारी, दुर्गा कुमारी व करिश्मा कुमारी और जिला स्तर की खिलाड़ी सीमा कुमारी की शागिर्दगी जिस टीम में शामिल हुई, धूम मचाने के बाद ही लौटी. इसके अलावा अंजू, गुड़िया, बंटी, सोनी, प्रीति, सिंधू, प्रेमलता, ललिता, पूनम, खुशबू (सेकेंड), सोनिका, रानी ने भी कई मैचों में दमदार प्रदर्शन किया.
लेकिन, अब कोई भी खिलाड़ी नैहर में नहीं, ससुराल बस गयी
देश के विभिन्न मैदानों पर फुटबॉल के कई गोल दाग चुकी बेटियां अब ममलखा में नहीं दिखतीं. सभी समय के साथ ब्याह दी गयीं. सभी अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो चुकी हैं. सिर्फ दुर्गा पटना में रहते हुए कभी मुंगेर, तो कभी पटना टीम की ओर से खेला करती हैं. सिंधू निजी स्कूल में टीचर हैं. प्रेमलता ने भी पढ़ाई के साथ-साथ दूसरे क्षेत्र में भविष्य तलाश रही हैं. रानी की सड़क हादसे में पूर्व में मौत हो चुकी है. बाकी सभी खिलाड़ी ससुराल बस चुकी हैं.
वर्ष 1984 से राज्य को कई प्रतिभावान फुटबॉलर महिला खिलाड़ी दे चुका है ममलखा
दो खिलाड़ी बची हैं, जो चाह रहीं टीम बनाना
पुरानी टीम में सिर्फ दो खिलाड़ी बची हैं, जो चाह रही हैं कि टीम बने. लेकिन, उन्हें खिलाड़ी मिल ही नहीं रहीं. इनमें पुष्पांजलि कुमारी गरीबी में पल रही हैं और सबौर कॉलेज की छात्रा हैं. पिता प्रमोद साह हाट में कुछ सामान बेच कर परिवार चलाते हैं. उनके पास धन के नाम पर सिर्फ पुष्पांजलि है, जो अब तक कई मेडल अपने नाम कर चुकी हैं. दूसरी खिलाड़ी हैं खुशबू कुमारी. शिक्षक नंदकिशोर मंडल की बेटी. सबौर कॉलेज में बीए पार्ट थ्री में पढ़ाई करती हैं.
इस गांव में
महिला खिलाड़ियों
के बीच फुटबॉल जिंदा
रखने के लिए मेडल
के सिवा कुछ
नहीं मिला
अब अभिभावकों में नहीं रही रुचि
खिलाड़ियों के कोच रहे ममलखा के ही मनोज मंडल बताते हैं कि वर्ष 1984 से इस गांव के मैदान में ज्वाइंट स्पोर्ट्स क्लब व जय मां काली पूजा समिति की ओर से सालाना फुटबॉल प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है. शुरू में अरविंद सिंह व महेश सिंह नेतृत्व कर रहे थे. बाद में उन्होंने (मनोज मंडल) इसकी जिम्मेदारी ली. यहां से कई महिला
अब अभिभावकों में…
खिलाड़ी निकली. उनका प्रदर्शन देख अभिभावक भी खुश थे. लड़कियां अच्छा खेल तो रही थीं, पर अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पायीं. सरकार की ओर से कोई सहारा नहीं मिला. समय के साथ बेटियां ब्याह दी गयीं. अब तो कोई अपनी बेटी को फुटबॉलर बनाना नहीं चाहते. हालांकि यहां के लड़के अभी भी बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं.
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