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महिलाओं को भा रही भागलपुरी लिनेन की साड़ियां

एक साल में बढ़ा चौगुना कारोबार, दिल्ली, मुंबई कोलकाता, चेन्नई व बेगलुरु में खूब हो रही मांग भागलपुर : रेशम नगरी भागलपुर को अब लिनेन को बढ़ावा मिलने लगा है. सिल्क सूत के अभाव में बुनकरों का रुझान लिनेन की ओर बढ़ने लगा है. एक वर्ष पहले प्रयोग के तौर पर लिनेन की साड़ियाें को […]

एक साल में बढ़ा चौगुना कारोबार, दिल्ली, मुंबई कोलकाता, चेन्नई व बेगलुरु में खूब हो रही मांग

भागलपुर : रेशम नगरी भागलपुर को अब लिनेन को बढ़ावा मिलने लगा है. सिल्क सूत के अभाव में बुनकरों का रुझान लिनेन की ओर बढ़ने लगा है. एक वर्ष पहले प्रयोग के तौर पर लिनेन की साड़ियाें को तैयार करने का शुरू हुआ. एक वर्ष में महानगरों में भागलपुरी लिनेन की साड़ियों की मांग चौगुनी बढ़ गयी.
गर्म प्रदेशों की महिलाओं को आरामदायक लग रही है लिनेन की साड़ियां. बुनकर क्षेत्र से जुड़े लोगों के अनुसार सिल्क का कारोबार पहले भागलपुर से 500 से 1000 करोड़ रुपये सालाना था, जो घटकर 50 से 100 करोड़ रुपये पर आ गया. लिनेन का कारोबार 200 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. बुनकर प्रतिनिधि मो इबरार अंसारी ने बताया कि 2010 में भागलपुर में लिनेन के कपड़े का प्रचलन बढ़ा. सिल्क से सस्ता और सिल्क जैसा आनंद देने वाला कपड़ा होने पर लोगों का रुझान लिनेन की ओर बढ़ने लगा.
2017 में प्रयोग के तौर पर लिनेन की साड़ियां तैयार की गयी. अब साड़ियों की मांग दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु व चेन्नई जैसे महानगरों में बढ़ गयी. बदनाम हो रहा भागलपुर का सिल्क. गुजरात सूरत में भागलपुरी सिल्क के नाम पर पॉलिस्टर धागा से उसी स्वरूप में साड़ियां व कपड़े तैयार किये जा रहे हैं. इसे भागलपुरी सिल्क के नाम पर सस्ते में बेचा जा रहा है. इससे भागलपुरी सिल्क की बदनामी हो रही है. लोग भागलपुरी सिल्क का नाम सुनते ही परहेज करने लगे हैं.
जकार्ड पर तैयार हो रही डिजाइनर साड़ियां
महानगरों की महिलाओं को सस्ता व बेहतर लुक वाली साड़ी चाहिए. बेंगलुरु, गुजरात व मुंबई में भी लिनेन के कपड़े तैयार होते हैं, लेकिन सस्ता नहीं होता. यहां प्लेन, चेक, पल्लू बॉर्डर पर पहले साड़ी तैयार की गयी. इस बार जकार्ड पर साड़ियां तैयार की जा रही है. लिनेन की साड़ियां 1000 से 2000 रुपये तक में बेहतर है. सिल्क की साड़ियां 2200 से 5000 रुपये तक में उपलब्ध है. अभी लिनेन की साड़ियां नरगा, हसनाबाद, चंपानगर, नाथनगर क्षेत्र में बन रही है,
जबकि सिल्क की साड़ियां पुरैनी, हुसैनाबाद, दरियापुर, मिर्जाफरी आदि क्षेत्रों में बन रही है. बुनकर संघर्ष समिति के अध्यक्ष नेजाहत अंसारी ने बताया कि बुनकर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सिल्क की जगह अन्य धागे जैसे सूती, लिनेन आदि से कपड़े तैयार करने लगे हैं. 30 फीसदी बुनकर अब दूसरे के लूम चलाने को विवश हैं.

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