नवगछिया : बड़ी घाट ठाकुरबाड़ी के महंथ व प्रकांड विद्वान श्री श्री 1008 सीताराम शरण जी महाराज उर्फ सुधीर बाबा मंगलवार को अलसुबह ब्रह्म मुहूर्त में ब्रह्मलीन हो गये. सुधीर बाबा के ब्रह्मलीन होने की खबर नवगछिया व आसपास के इलाके में आग की तरह फैल गयी. बड़ी संख्या में श्रद्धालु उनके अंतिम दर्शन को बड़ी घाट ठाकुरबाड़ी पहुंचे. नवगछिया बाजार के व्यवसायियों ने शोक में अपनी दुकानों को बंद कर दिया.
सुधीर बाबा के प्रथम शिष्य बच्चा प्रसाद भगत के पुत्र विश्व हिंदू परिषद के नवगछिया जिला अध्यक्ष प्रवीण कुमार भगत ने बाबा के पार्थिव शरीर को तुलसी दल व गंगाजल से स्पर्श कराया. इसके बाद सुधीर बाबा की शवयात्रा निकाली गयी. कुछ देर के लिए नवगछिया स्टेशन परिसर में उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा गया फिर राष्ट्रीय राजमार्ग होते हुए बाबा के पार्थिव शरीर को बनारस के लिए रवाना किया गया.
बाबा के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार बुधवार बनारस के गंगा घाट पर ही किया जायेगा. बाबा को मुखाग्नि उनके उत्तराधिकारी सिया बल्लभ शरण जी महाराज देंगे. नवगछिया से एक बड़ा जत्था बाबा के पार्थिव शरीर के साथ बनारस रवाना हुआ है, जिसका नेतृत्व प्रसिद्ध संत परमहंस आगमानंद जी महाराज कर रहे हैं. सुधीर बाबा करीब 25 वर्षों से ठाकुरबाड़ी के महंथ थे.
धर्म-अध्यात्म व शिक्षा के क्षेत्र में बाबा का बड़ा योगदान रहा है. बाबा ने ही महंत वैदेही शरण संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना नवगछिया में की थी.वह संपूर्णानंद काशी विश्वविद्यालय में प्राध्यापक भी थे. सुधीर बाबा के देहावसान से पूरा नवगछिया शहर शोक में डूब गया है.
महात्मा रचित पुस्तकों में जीवन का सार : कई पुस्तकों की रचना कर चुके बाबा सीताराम शरणजी महाराज की पुस्तक मानें करे तो, में जीवन का सार छिपा हुआ था. उनके इस पुस्तक में दर्ज एक-एक सीख मानवता, प्रगतिशीलता और सफलता का गूढ़ रहस्य समझा जाता है.
महात्मा की बातें घर-परिवार के झंझट, वैमनस्य, असफलता, अशिक्षा जैसी समस्याओं से समाधान सिखा जाती हैं. आगमानंदजी महाराज ने इस पुस्तक का पुनप्रकाशन कराया.
महात्मा जी की कई पुस्तक व आलेखों से लोग जीवन में प्रेरणा ग्रहण करते रहे हैं. बुधवार से ठाकुरबाड़ी में उनकी कुर्सी खाली मिलेगी. शिवालय के पास स्थित उनकी कुर्सी के सामने सिर झुकाकर सजदा तो होगा, उनके टेबुल पर पुष्प अर्पण भी होगा, लेकिन आशीर्वाद लेने के लिए महात्मा जी के पांव नहीं दिखेंगे, शिष्यों के सिर पर उनका आशीर्वाद भरा हाथ नहीं होगा. नवगछिया बाजार के कई परिवार बाबा के देहावसान के बाद खुद को अनाथ समझने लगे हैं.
घर-परिवार में कहासुनी हो, पड़ोसी से विवाद हो, व्यापार में असफलता हो या फिर अन्य किसी तरह की समस्या, लोग समाधान की तलाश में बाबा के पास पहुंचते थे.