भागलपुर : स्वास्थ्य विभाग की फाइलों में 102 व 1099 नंबर की एंबुलेंस सेवा 24 घंटे लगातार काम कर रही है. सरकारी आंकड़ों में जिले के हर पीएचसी में कम से एक सरकारी एंबुलेंस है.
जिम्मेदार भी बोल रहे हैं कि बस एक बार 102 नंबर पर कॉल करें, एंबुलेंस सेवा आपके दरवाजे पर हाजिर होगा. लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट है. दूरस्थ ग्रामीण अंचलों से आनेवाले मरीज अपने संसाधन से हॉस्पिटल आने को मजबूर हैं. गर्भवती महिलाएं इ-रिक्शा व टेंपो से सदर हॉस्पिटल प्रसव कराने के लिए आती हैं.
जिले के 17 सरकारी हॉस्पिटलों में 26 एंबुलेंस : भागलपुर के 17 सरकारी हॉस्पिटलों में एंबुलेंस संचालन की जिम्मेदारी पशुपति नाथ कंसोर्टियम एवं सम्मान फाउंडेशन पटना को मिली है. अगस्त 2017 से इसके हाथों में एंबुलेंस संलन की कमान है. जिले के सभी 17 सरकारी हॉस्पिटल में कुल 26 एंबुलेंस 102 एवं 1099 के एंबुलेंस हैं. इनमें से एक को हैंडओवर नहीं किया गया है तो गोपालपुर पीएचसी में दूसरा एंबुलेंस खराब पड़ा है.
सदर हॉस्पिटल में 1099 नंबर सेवा का एक एंबुलेंस है जबकि 102 नंबर सेवा का दो एंबुलेंस है. इसके अलावा कहलगांव, पीरपैंती, नवगछिया, बिहपुर, नारायणपुर, सन्हौला व शाहकुंड पीएचसी में दो-दो एंबुलेंस है. इनमें से सन्हौला पीएचसी पर एक एंबुलेंस हैंडओवर न होने से खड़ा है. इसके अलावा सबौर, रंगरा, इस्माइलपुर, खरीक, सुल्तानगंज, गोराडीह, नाथनगर, गोपालपुर, जगदीशपुर में 102 नंबर सेवा का एक-एक एंबुलेंस है.
मायागंज हॉस्पिटल में चार एंबुलेंस, एक खराब : 600 से अधिक बेड वाले मायागंज हॉस्पिटल में रेफर मरीजों को उच्च हॉस्पिटल ले जाने के लिए यहां पर चार एंबुलेंस हैं. इनमें से 102 नंबर को दो एंबुलेंस है जिसमें से एक खराब है.
1099 नंबर सेवा का भी दो एंबुलेंस है. जबकि मायागंज हॉस्पिटल से हर रोज डेढ़ दर्जन मरीज बेहतर इलाज के लिए पीएमसीएच, सिलीगुड़ी या फिर कोलकाता के लिए रेफर किये जाते हैं. इसका परिणाम यह हो रहा कि मायागंज हॉस्पिटल के बाहर निजी एंबुलेंस वालों की भीड़ लगी रहती है. निजी एंबुलेंस वाले मरीजों से मोटी राशि लेते हैं.
17 हॉस्पिटलों पर सिर्फ एक शव वाहन, एक माह में सिर्फ एक लाश ढोया : शव वाहनों की बात करें तो भागलपुर में लाश ले-जाने के लिए शव वाहन व्यवस्था बहुत ही बुरी है. भागलपुर के सभी सरकारी हॉस्पिटलों (मायागंज हॉस्पिटल काे छोड़कर) की बात करें तो जिले के 17 हॉस्पिटलों के बीच महज एक ही शव वाहन है, जो कि सदर हॉस्पिटल परिसर में खड़ा है. एक माह में इस शव वाहन से लाश ले जाने के लिए सिर्फ एक ही कॉल आया. क माह के अंदर इस शव वाहन से सिर्फ एक ही लाश ढोयी गयी.
मायागंज हॉस्पिटल में एक ही शव वाहन : मायागंज हॉस्पिटल अधीक्षक डॉ आरसी मंडल बताते हैं कि हर रोज आैसतन यहां पर आठ से दस मरीजों की मौत होती है. इन लाशों को ढोने के लिए यहां पर दो शव वाहन है.
इनमें से एक शव वाहन खराब है. इसका परिणाम यह हो रहा कि दूरस्थ इलाकों में जाने वाले लोगों को लाश ले जाने के नाम पर 2200 रुपये से लेकर पांच हजार रुपये तक खर्च करना पड़ता है.