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जिस चैनल से ला रहे पानी, उससे टकरा रही हथिया नाला की गंदगी

भागलपुर : पिछले एक माह से शहर में पानी के लिए हाय-तोबा मची है. पहले जलापूर्ति बंद, फिर चैनल बना कर जलापूर्ति, लेकिन शहरवासियों को अब तक साफ पानी नसीब नहीं हो पाया है. नगर विकास मंत्री के निर्देश पर टीम भी बनी, निरीक्षण हुआ, लेकिन जनता को साफ पानी पिलाने को लेकर अब तक […]

भागलपुर : पिछले एक माह से शहर में पानी के लिए हाय-तोबा मची है. पहले जलापूर्ति बंद, फिर चैनल बना कर जलापूर्ति, लेकिन शहरवासियों को अब तक साफ पानी नसीब नहीं हो पाया है.
नगर विकास मंत्री के निर्देश पर टीम भी बनी, निरीक्षण हुआ, लेकिन जनता को साफ पानी पिलाने को लेकर अब तक कोई ठोस उपाय नहीं हो पाया है. पानी की जांच-जांच का खेल जारी है, पर शहरवासियों को शुद्ध पानी कैसे मिले और इसकी व्यवस्था यथाशीघ्र हो, इसके लिए बेचैनी नहीं दिखती. अधिकतर पार्षद भी शांत हैं. क्या है कारण इसको लेकर प्रभात खबर की टीम ने रविवार को बरारी वाटर वर्क्स, चैनल और वार्डों की स्थिति की पड़ताल की. प्रभात खबर कार्यालय में शहर के आठ वार्ड के पार्षदों को बुला कर यह जानने की कोशिश की गयी कि सच क्या है. प्रस्तुत है ग्राउंड रिपोर्ट.
प्लास्टिक के भरोसे सुरक्षा : शहर का हनुमान घाट. वाटर वर्क्स का इलाका. रविवार को सबकुछ शांत था. वाटर वर्क्स की मशीन चल रही थीं, जबकि घाट से नीचे उतरने पर वहां लगे तीन मोटरों में एक सन्नाटे को तोड़ते हुए लगातार चल रही थी. गंगा के छाड़न से मोटर के माध्यम से चैनल (नाला) में पानी गिराने का काम जारी था. यह पानी वाटर वर्क्स के दोनों संप तक पहुंचाया जा रहा था.
इस दौरान वहां कुछ लोगों ने बताया पिछले कुछ दिनों से वहां तीन मोटर लगाये गये हैं. एक बार में एक मोटर चलाया जाता है. इस तरह लगातार तीनों मोटर बारी-बारी से चलते हैं.
पानी संप तक जाने के चैनल में कुछ दूर तक सुरक्षा व सफाई के दृष्टिकोण से प्लास्टिक बिछाया गया है, पर उसी चैनल में हथियानाला का मुहाना भी खुलता है. इसे बंद करने के लिए बालू भरे बोरे जरूर डाले गये हैं, पर पानी के धार का चैनल के पानी में नहीं मिल पाना संदेह खड़े करता है.
लंबी नहीं चलेगी यह व्यवस्था : तीनों मोटर के लिए अलग से बिजली की व्यवस्था की गयी है. मोटर के आसपास बैठे दियारा के लोगों का कहना था कि छाड़न का पानी भी लंबा नहीं चलेगा. गरमी बढ़ रही है. इस वजह से जल्द ही यह समाप्त होगा और फिर दिक्कत होगी. उनके अनुसार पुल घाट के पास ही अब गंगा मइया हैं, वहीं पर जाने पर होगा सबका भला.
निगम को नहीं है मतलब
गंगा को गंदा करने या उसमें गंदगी गिराने से रोकने के लिए निगम ने आज तक कुछ नहीं किया. कभी-कभी घोषणाएं जरूर हुईं, टीम का गठन भी किया गया, पर इसके बाद सबकुछ ठंडे बस्ते में. यही कारण है कि गंगा में गंदगी गिराने की होड़ है, नदी किनारे सफर के दौरान यह महसूस हुअा कि जो गंदगी गिरा रहा वो शर्मिंदा नहीं, बल्कि जो नहीं गिरा रहे उनको इसका मलाल है कि उन्होंने क्यों नहीं गंदगी गिराया.
अधूरा पड़ा है ट्रीटमेंट प्लांट गंदगी जा रही गंगा में
हनुमान घाट पर ही अधूरा पड़ा है एक ट्रीटमेंट प्लांट. निर्माण देख लगता है कि लाखों खर्च हुए होंगे, पर किसी काम नहीं अा पाया. अब यह या तो नशेड़ियों के काम आता है, या फिर बच्चे खेलते हैं. आसपास के लोगों ने बताया कि इस प्लांट का निर्माण गंदे पानी को साफ करने के लिए किया जा रहा था, पर काम अधूरा रह गया. खास बात यह कि इसे किसने बनवाया और क्यों या फिर यह क्यों नहीं पूरा हुआ यह बताने वाला कोई नहीं. निगम के जलकल अधीक्षक के अनुसार उन्हें भी नहीं पता किसने और क्यों बनवाया और क्योें नहीं पूरा हुआ.
कैसे गंदा कर रहे हम : चंपा नाला का पानी इस छाड़न में मिल रहा है. चंपानाला में जम कर केमिकल बहाया जाता है. विसर्जन के लिए कहीं कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण साल में कई बार विभिन्न धार्मिक कार्यों को लेकर हजारों प्रतिमाएं विसर्जित की जाती हैं. इनके केमिकल युक्त रंग से भी गंदगी फैलती है. अंतिम संस्कार के नाम पर यहां सिर्फ बयानबाजी हुई है, अब तक विद्युत शवदाहगृह नहीं बन सका और हालत यह है कि विभिन्न घाटों पर रोज अंतिम संस्कार के दौरान टनों गंदगी गंगा में विसर्जित हो रही.

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