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सफेद चावल धंधा काला

500 एकड़ में ही कतरनी का उत्पादन बढ़ गयी मांग, घट गया उत्पादन, खुशबू में मिलावट की बू का शुरू हुआ खेल भागलपुर : जिले में महज 500 एकड़ में ही कतरनी चावल का उत्पादन हो रहा है. भागलपुर, मुंगेर और सुल्तानगंज में कतरनी का उत्पादन सिमट चुुका है. रजौन, बांका और जगदीशपुर में ही […]

500 एकड़ में ही कतरनी का उत्पादन

बढ़ गयी मांग, घट गया उत्पादन, खुशबू में मिलावट की बू का शुरू हुआ खेल
भागलपुर : जिले में महज 500 एकड़ में ही कतरनी चावल का उत्पादन हो रहा है. भागलपुर, मुंगेर और सुल्तानगंज में कतरनी का उत्पादन सिमट चुुका है. रजौन, बांका और जगदीशपुर में ही थोड़ा बहुत उत्पादन हो रहा है. कृषि विभाग के मुताबिक प्रति एकड़ तीन से पांच क्विंटल धान का ही उत्पादन होता है. 2500 क्विंटल कतरनी का ही उत्पादन हो रहा है. बाजार में कतरनी के नाम पर इससे दोगुना अधिक चावल बेच दिये जाते हैं. यहीं से शुरू हुआ डुप्लीकेट कतरनी का खेल.
मांग बढ़ गयी, जबकि उत्पादन कम होता है. इसके बाद माफियाओं ने कतरनी से मिलते जुलते चावल सोनम में एसेंस डाल कर कतरनी बनाने का खेल शुरू किया जो धड़ल्ले से आज भी चल रहा है. खास बात तो यह है कि अधिकतर किसान खुद अपने खाने के लिए कतरनी रख लेते हैं. कुछ लोग बीज के तौर पर भी धान रख लेते हैं. फिर कतरनी चावल बाजार में आता कहां से है. यह सवाल सबको साल रहा है. जानकारों के मुताबिक कतरनी के उत्पादन सिकुड़ने के लिए जलवायु परिवर्तन जिम्मेवार है. बढ़-घट रहा तापमान ने इसे काफी नुकसान पहुंचाया है. रासायनिक खाद के अधिक प्रयोग और अच्छी वैरायटी के बीज का न होने से भी कतरनी अब कुछ गांवों में ही उजपाया जा रहा है. फिलहाल कृषि महाविद्यालय में बीज खत्म हो चुका है. जगदीशपुर के पैक्स में 50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बीज बिक रहा है.
दुनिया भर में फैलेगी खुशबू
कतरनी को अंतरराष्ट्रीय पहचान जल्द मिलने वाली है. जीआई (ज्योग्राफिकल आइडेंटीफिकेशन) का काम आखिरी चरण में है. इसके बाद कतरनी की खुशबू दुनिया भर में फैलने वाली है. आत्मा के तहत पाठशाला में किसानों को शिक्षित किया जा रहा है. कतरनी उत्पादक संघ भी बनाये गये हैं.

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