किसान परेशान सरकारी गोदाम होता, तो 300 से 500 रुपये क्विंटल अधिक मिलती गेहूं की कीमत, कम कीमत में मकई व सब्जी बेचने को मजबूर हैं कृषक
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अनाज सड़ने का डर,बाजार उठा रहा सस्ते का फायदा
किसान परेशान सरकारी गोदाम होता, तो 300 से 500 रुपये क्विंटल अधिक मिलती गेहूं की कीमत, कम कीमत में मकई व सब्जी बेचने को मजबूर हैं कृषक भागलपुर : भागलपुर के किसान भी विभिन्न समस्याओं के कारण परेशान हैं. अभी मकई बेचने का समय है. किसानों के पास अनाज रखने की जगह नहीं है और […]
भागलपुर : भागलपुर के किसान भी विभिन्न समस्याओं के कारण परेशान हैं. अभी मकई बेचने का समय है. किसानों के पास अनाज रखने की जगह नहीं है और बाजार जम कर किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहा है. गांवों में बड़े-बड़े व्यापारियों के प्रतिनिधि पहुंचे हुए हैं और किसान औने-पौने दाम में अनाज बेचने को विवश हैं.
मकई की उपज हो चुकी है. इसकी बिक्री भी जारी है. किसान अभी मकई बेचने के मूड में बिल्कुल नहीं हैं. किसानों के मुताबिक अभी गांव पहुंच रहे व्यापारी मकई की कीमत 1100 से 1150 रुपये क्विंटल ही दे रहे हैं. दो तीन माह बाद यही मकई बेचते, तो 1300 से 1600 रुपये क्विंटल बिकता. लेकिन उनके पास इसे रखने की जगह नहीं है. बारिश का मौसम सिर पर है और मकई को रख लिया गया, तो वह सड़ जायेगा. इस कारण व्यापारी जो कीमत लगा रहे हैं, उसी पर बेचने को मजबूर हैं. सब्जी का भी यही हाल है.
सरकारी गोदाम नहीं, निजी में सब जा नहीं पाते. जिले में ऐसा कोई सरकारी गोदाम नहीं है, जहां किसान अपना अनाज सुरक्षित रख सके. सरकारी गोदाम होने से अनाज रखने का किराया भी कम लगता. लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. दूसरी ओर निजी गोदाम में अधिक किराया देना सभी किसानों के लिए संभव नहीं होता.
ऐसे होती है आनन-फानन में बिक्री. किसान कहते हैं कि हर मामले में तकलीफ किसानों को ही उठानी पड़ रही है. फसल उपजाने के लिए पहले कर्ज लेते हैं और जब उपज हो जाती है, तो सबसे बड़ी समस्या मार्केटिंग की खड़ी हो जाती है. किसान कहते हैं कि आखिर टोकरी लेकर कहां-कहां जायेंगे. आनन-फानन में कम रेट पर बेचना पड़ रहा है.
बोरिंग से जानें सरकारी योजना का हाल. किसानों का आरोप है कि सरकारी योजना कागजी है. सरकार फसल की सिंचाई के लिए बोरिंग के लिए अनुदान देती है. पदाधिकारी कहते हैं कि पहले बोरिंग करा लें, फिर अनुदान मिलेगा. दूसरी ओर किसान कहते हैं कि अगर बोरिंग कराने का पैसा रहेगा, तो सरकारी दफ्तरों के चक्कर क्यों लगाने जायेंगे. यही हाल अन्य योजनाओं का भी है. आखिरकार विभिन्न पेच में उलझ कर योजनाएं धरी रह जाती हैं.
पैदावार
धान : 1 लाख 60 हजार मीट्रिक टन
मक्का : 1 लाख 10 मीट्रिक टन
गेहूं : 58 हजार मीट्रिक टन
आम : 72 हजार मीट्रिक टन
केला : 38 हजार में मीट्रिक टन
लीची : 4 हजार मीट्रिक टन
अमरूद : 5 हजार मीट्रिक टन
आलू : 1 लाख 60 हजार मीट्रिक टन
प्याज : 52 हजार मीट्रिक टन
टमाटर : 50 हजार मीट्रिक टन
नोट : जिले में अनुमानित पैदावार
किसान का दर्द
नाथनगर प्रखंड से एक भी बोरिंग किसी किसान को नहीं मिली, जबकि परमिट मिल गयी थी. वजह यही रही कि बाद में अनुदान देने की बात कही जा रही थी. पिछले साल बाढ़ आयी. साल का 10वां महीना बीत गया. सरकार ने फसल क्षति आपूर्ति अनुदान की घोषणा की. नाथनगर प्रखंड में किसानों ने कागज जमा कर दिया.
कर्मचारी की ‘पूजा-अर्चना’ तक की. लेकिन अनुदान किसी को नहीं मिला, जबकि दूसरे साल के बाढ़ को लेकर प्रशासनिक स्तर से तैयारी की जा रही है. ऐसी तैयारी का क्या मतलब, जिसका कोई सही परिणाम ही न मिले. आज लोग औने-पौने दाम में मकई बेच रहे हैं. बावजूद इसके सरकारी गोदाम के लिए प्रयास नहीं होते.
महेश राय, किसान, रन्नूचक मकंदपुर
यह है मार्केटिंग की व्यवस्था
सब्जी बेचने के लिए छोटे किसान स्थानीय मार्केट जाते हैं, तो बड़े किसान शहर का मुख्य बाजार
अनाज के लिए व्यापारी पहुंचते हैं गांव, जो कीमत बोलते हैं, उसी पर बेचने की होती है मजबूरी
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