हमरों जुबानी सुनल चांद के कहानी (कॉमरेड चंद्रशेखर की जयंती पर विशेष) तसवीर- कॉमरेड चंद्रशेखर का स्मारकतसवीर 22बेगूसराय (नगर). हमरों जुबानी सुनल चांद की कहानी ये पंक्ति कभी जनकवि चंद्रशेखर भारद्वाज ने उत्तरी बिहार में लाख सितारा के नाम से प्रख्यात जननायक कॉ चंद्रशेखर सिंह के लिए लिखा था. जिसे बीहट इप्टा ने अपनी धुन देकर पूरे देश में उनकी यादों को जीवंत किया. आज उसी कॉ चंद्रशेखर की 100 वीं जयंती उनके पैतृक गांव उनके पैतृक गांव से लेकर पटना से अजय भवन तक कई रूपों में मनाया जा रहा है. 16 दिसंबर, 1915 को बिहार के प्रथम लघु सिंचाई मंत्री सह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामचरित्र सिंह के घर उनकी धर्मपत्नी चंद्रावती की कोख से चंद्रशेखर पैदा हुए. कॉमरेड चंद्रशेखर की प्रारंभिक शिक्षा बिहार विद्यापीठ में जिनका मुख्यालय सदाकत आश्रम था. उसके बाद इनकी पढ़ाई मुजफ्फरपुर में प्रारंभ हुई. सन 1933 इ में मैट्रिक की परीक्षा पूरी कर आगे की शिक्षा के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में उनका दाखिल हुआ. बीएचयू में ही इनकी दोस्ती रूस्तम सेटिंग नामक छात्र से हो गयी. जहां उन्होंने मार्क्सवाद को पढ़ा-गढ़ा और लाल लिशानी ली. बनारस से कम्युनिस्ट की निशानी लेकर कॉमरेड चंद्रशेखर ने पटना कॉलेज आकर एमए अर्थशास्त्र विभाग में नामांकन कराया. 1938 में बिहार राज्य छात्र संघ के प्रथम सचिव चुने गये कॉमरेड चंद्रशेखर. इस प्रकार कॉमरेड 26 जनवरी को बिहार में पार्टी की स्थापना के लिए कदम आगे बढ़ा चुके थे. इसी दौरान कॉमरेड चंद्रशेखर की शादी 19 फरवरी 1940 को गोरिया कोठी की शकुंतला सिन्हा के साथ कर दी गयी. अब कॉमरेड चंद्रशेखर आम जनता मेहनतकश मजदूर की आवाज बन चुके थे. इसी बीच उन्हें हजारीबाग जेल सहित कई जेलों की यात्राएं करनी पड़ी. 1952 में उन्होंने पहला चुनाव बखरी से लड़ा जहां वह पराजित हो गये. 1956 में पहली बार बेगूसराय उत्तरी से बिहार में लाल सितारा का उदय हुआ. बिहार विधानसभा पहुंचने वाले उत्तरी बिहार से पहले विधायक हुए कॉमरेड चंद्रशेखर. 1962 से 1976 तक तेघड़ा के विधायक के रूप में लगातार जनता की आवाज बने रहे. साथ ही उन्होंने बिहार सरकार के सिंचाई और कृषि मंत्री के पद को भी सुशोभित किया. अंतत: 20 जुलाई,1976 को 61 वर्षीय कॉमरेड चंद्रशेखर सिंह का लाल सितारा का अस्त हो गया.
हमरों जुबानी सुनल चांद के कहानी (कॉमरेड चंद्रशेखर की जयंती पर विशेष)
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