लापरवाही. गड्ढों में डूब कर साल भर के दौरान हो चुकी हैं आधा दर्जन मौतें
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जानलेवा हो गये नदियों में बने गड्ढे
लापरवाही. गड्ढों में डूब कर साल भर के दौरान हो चुकी हैं आधा दर्जन मौतें पिछले दिनों बालू उत्खनन को लेकर किये गये गड्ढे में डूबने से एक बच्चे की मौत हो गयी. लेकिन इस तरह की घटना आम है. नदी में अचानक बड़े गड्ढे में पैर जाने से किसी के साथ भी हादसा हो […]
पिछले दिनों बालू उत्खनन को लेकर किये गये गड्ढे में डूबने से एक बच्चे की मौत हो गयी. लेकिन इस तरह की घटना आम है. नदी में अचानक बड़े गड्ढे में पैर जाने से किसी के साथ भी हादसा हो सकता है. इस अोर ध्यान देने की आवश्यकता है.
बांका : बालू उत्खनन में जेसीबी मशीनों के इस्तेमाल की वजह से नदियों में बने कुण्डनुमा गड्ढे जानलेवा साबित हो रहे हैं. इन कुंडों में डूब कर पिछले एक साल के दौरान कम से कम आधे दर्जन बच्चों और किशोरों की मौतें हो चुकी हैं. प्रशासनिक महकमा इन स्थितियों से या तो बेखबर है या जानबूझ कर आंखें मुंदे हुए है. जिले के सैकड़ों गांव की दिनचर्या में जीवन रेखा बनी यहां की प्रमुख नदियों में ऐसे हजारों गड्ढे छोड़े गये हैं.
इन ज्यादातर गड्ढों के लिए बालू की खुदाई करने वाली जेसीबी मशीनों और उनका संचालन करने वाले ठेकेदार जिम्मेदार हैं. लेकिन जब इन गड्ढों में डूब कर किसी बच्चे या किशोर की मौत होती है तो इसे एक अकाल मृत्यु या दुर्घटना मान लिया जाता है. यही वजह है कि ऐसी दुर्घटनाओं या अकाल मौत को लेकर थानों में महज सनहा या यूडी केस दर्ज कर लिया जाता है. उनकी मौतों के लिए जिम्मेदारी किसी के ऊपर निर्धारित नहीं की जाती. फलस्वरुप नदियों में ऐसे गड्ढों की संख्या हर वर्ष बढ़ती चली जा रही है और तदनुरूप मौतों की तादाद भी.
गड्ढों में डूब कर लगातार हो रही मौतें : जिले में चांदन, ओढ़नी, बड़वा, दर्भासन, गेरुआ, चीर आदि नदियों से बालू का उठाव निरंतर जारी है. प्रशासन का तर्क है कि बालू का उठाव सरकार की मर्जी से हो रहा है. घाटों की नीलामी की गई है. इस से राज्य सरकार को हर वर्ष करोड़ों का राजस्व प्राप्त होता है. लेकिन बालू के उठाव के लिए नदियों में कुआं और खाई खोद देने की छूट क्या सरकार के स्तर से संविदा एजेंसियों को मिली है? इस बात का कोई जवाब किसी के पास नहीं है. चांदन नदी में बांका शहर से लगे यह एकोरिया से लेकर सिंहनान तक जेसीबी की वजह से बनाए गए ऐसे सैकड़ों गड्ढे मौजूद हैं. यही स्थिति बड़वा नदी मैं भी कायम है. चीर और गेरुआ नदी में भी कई हादसे बालू उठाव से बने गड्ढों की वजह से हो चुके हैं.
बौसी थाना अंतर्गत कैरी गांव के विकास कुमार नमक 10 वर्षीय छात्र की नहाने के दौरान सुखाड़िया नदी में बालू खुदाई से बने गड्ढे में डूबने से बुधवार को हो गई. उसके घर में मातम पसरा है. यह कोई पहली और आखरी घटना नहीं है. बांका शहर के पास चंदन नदी में पुल के उत्तर और दक्षिण बने ऐसे गड्ढों में डूबने से पिछले 3 बरस के दौरान आधे
दर्जन बच्चों की अकाल मौत हो चुकी है. गत वर्ष भी दो बच्चे पुल के समीप बने एक गड्ढे में डूबकर काल के गाल में समा गए थे. जेठौर के पास भी चांदन नदी में एक गड्ढे में करीब 8 माह पूर्व एक बच्चे की डूबने से मौत हो गई थी. बड़वा नदी के एक कुंड में भी कुछ माह पूर्व डूबकर एक बच्चे की मौत हो गई थी. जबकि जयपुर के पास चांदन तथा कधार नदियों में बने गड्ढों में डूबने से दो बच्चों की मौत अलग-अलग हादसों में हो गई थी.
लगातार हो रही मौतों के बाद भी नहीं खुल रही प्रशासन की नींद : यह तो एक नजीर है. यह उन घटनाओं की फेहरिस्त है जिनमें बात पुलिस तक पहुंची. भले ही पुलिस ने इन मामलों में सनहा और यूडी केस दर्ज कर हादसे की इति श्री कर दी हो. लेकिन कई मामले ऐसे भी हुए हैं जिनकी सूचना देने की बजाए अपने ऊपर टूटे गमों के पहाड़ को पीड़ित परिवारों ने ही झेल लिया. बात पुलिस तक नहीं ले जायी गयी. खनन विभाग भी इस मामले में मौन है. खनन विभाग के अधिकारी नहीं जानते की जे सी बी से बालू उठाव की क्या प्रक्रिया है. बालू सतह से उठानी है या कुआं खोदकर. अगर कुआं खोदकर बालू उठाव की अनुमति है तो फिर उस गड्ढे को भरने की जिम्मेदारी किसकी है? इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है.
बालू खनन के लिए नदियों में गड्ढे खोदने की अनुमति नहीं
नदियां हैं तो पानी होंगे ही. यह भी कौन तय करेगा की हो रही मौतें नदियों में डूब कर हो रही हैं या नदियों में बने गड्ढों में डूबने से. वैसे बालू उत्खनन के लिए किये गये गड्ढों को भरने की हिदायत तो संवेदक को नहीं है. लेकिन बेतरतीब खुदाई कर बालू उठाव के लिए नदियों में गड्ढे बनाने की भी अनुमति उन्हें नहीं है.
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