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दर्जा आदर्श अस्पताल का, व्यवस्था पीएचसी से बदतर

सदर अस्पताल में एक चिकित्सक के भरोसे हर रोज चार से पांच सौ लोगों का हो रहा इलाज केशव कुमार सिंह औरंगाबाद : एक तरफ सदर अस्पताल को भारत सरकार द्वारा आदर्श अस्पताल के रूप में विकसित करने के लिये चयनित किया गया है, तो दूसरी ओर इस अस्पताल में सुविधा नाम की कोई चीज […]

सदर अस्पताल में एक चिकित्सक के भरोसे हर रोज चार से पांच सौ लोगों का हो रहा इलाज
केशव कुमार सिंह
औरंगाबाद : एक तरफ सदर अस्पताल को भारत सरकार द्वारा आदर्श अस्पताल के रूप में विकसित करने के लिये चयनित किया गया है, तो दूसरी ओर इस अस्पताल में सुविधा नाम की कोई चीज नहीं है. न तो रोस्टर के अनुसार सभी दवाएं उपलब्ध हैं और न ही इलाज करने के लिये कोई विशेषज्ञ चिकित्सक. सदर अस्पताल में फिल्हाल 6 चिकित्सक कार्यरत हैं.
इनमें एक हड्डी रोग विशेषज्ञ, एक नेत्र रोग विशेषज्ञ शामिल हैं. केवल चार चिकित्सकों के भरोसे सदर अस्पताल में 1000 से 1200 मरीजों का उपचार प्रतिदिन किया जाता है. सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक 800 से 900 मरीज ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों से उपचार कराने के लिये पहुंचते हैं. अस्पताल प्रबंधन द्वारा दो चिकित्सकों को जेनरल ओपीडी में डयूटी के लिये लगाया जाता है. इस प्रकार एक चिकित्सक छह घंटे में चार से पांच सौ मरीजों का इलाज करता है. नतीजा यह है कि, मरीजों का सही तरीके से इलाज नहीं हो पाता है और परिजन हंगामा करते हैं. इसके अलावे एक चिकित्सक दोपहर दो बजे से रात्रि 9 बजे तक और एक चिकित्सक रात्रि 9 बजे से सुबह 8 बजे तक ड्यूटी करते हैं.
ओपीडी में ड्यूटी करने वाले एक चिकित्सक को पुलिस केस वाले मामलों की इंज्यूरी रिपोर्ट भी लिखनी पड़ती है, तो रात्रि में ड्यूटी करने वाले चिकित्सक को पोस्टमार्टम भी करना पड़ता है. इन्हीं चारो चिकित्सकों में यदि कोई एक चिकित्सक कोर्ट में गवाही देने के लिये चल जाते हैं या फिर छुटटी पर चले जाते हैं तो उस परिस्थित में इलाज कर पाना काफी कठिन होता है. हालांकि उपाधीक्षक डाॅ राजकुमार प्रसाद स्वयं भी मरीजों का इलाज करते हैं. कई बार उपाधीक्षक ने चिकित्सकों की संख्या बढ़ाने के लिये सिविल सर्जन से आग्रह किया, लेकिन एक भी चिकित्सक की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई. यहां तक कि स्थानीय विधायक आनंद शंकर सिंह, डीएम कंवल तनुज ने भी चिकित्सकों की संख्या में बढ़ोतरी करने की बात पूर्व में कही थी. फिर भी, स्थिति जस की तस बनी हुई है.
इस परिस्थिति में अस्पताल में हंगामा होना लगभग तय है और इसका शिकार छोटे कर्मचारी व मरीज होते हैं. इधर, अस्पताल प्रबंधन द्वारा पुरुष वार्ड को समाप्त कर आइसीयू वार्ड के रूप में विकसित किया जा रहा है और पुरुष वार्ड को रूम नंबर एक, दो, तीन में शिफ्ट किया गया है, इसको लेकर भी आने वाले दिनों में हंगामा हो सकता है.

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