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संतोष की शहादत पर गांववाले कर रहे फक्र

गर्व. जम्मू कश्मीर के पुलवामा में शहीद हुए जवान के गांव टेंगरा में पसरा मातम कश्मीर के पुलवामा जिले के पोंपोर में आतंकवादियों से लोहा लेते शहीद हुए संतोष साव के गांव टेंगरा में मातम पसरा है. सबों को संतोष के शव के आने का इंतजार है. एक बार उसका अंतिम दर्शन करना चाहते हैं. […]

गर्व. जम्मू कश्मीर के पुलवामा में शहीद हुए जवान के गांव टेंगरा में पसरा मातम
कश्मीर के पुलवामा जिले के पोंपोर में आतंकवादियों से लोहा लेते शहीद हुए संतोष साव के गांव टेंगरा में मातम पसरा है. सबों को संतोष के शव के आने का इंतजार है. एक बार उसका अंतिम दर्शन करना चाहते हैं. जितना लोगों में संतोष के खोने का गम है उतना उन पर फक्र भी कर रहे हैं.
गांववालों ने कहा, देश की हिफाजत के लिए अगर एक सौ बेटे भी कुरबान हो जायें तो गम नहीं
औरंगाबाद/बारुण : जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले के पोंपोर में आतंकवादियों से लोहा लेते शहीद हुए आठ सैनिकों में संतोष साव भी शामिल था. औरंगाबाद जिले के बारुण थाना क्षेत्र के टेंगरा गांव निवासी संतोष के शहादत के बाद गांव में मातम का माहौल है, तो गांव के लोग गौरवान्वित भी महसूस कर रहे हैं. हर कोई उस जाबांज सैनिक को जी भर कर देखना चाहता है.
बस इंतजार है तो गांव में शहीद के शव आने का. अपने जांबाज हीरो को नजदीक से देखने के लिये ग्रामीणों की आंखे खुली है. हर किसी के आंखों में एक तरफ आंसू थे तो दूसरे तरफ देशभक्ति का जुनून . क्या बच्चा ,क्या बूढ़ा हर कोई अपने लाल को शाबासी देता नजर आ रहा है. गांव के लोग कहते हैं कि देश की हिफाजत के लिए अगर एक सौ बेटा भी कुरबान हो जाये तो गम नहीं . गांव के युवा पूरे जोश व जज्बे के साथ कहते हैं कि हमें भी संतोष की तरह बनना है. तिरंगे के शान को बनाये रखने में जान भी चल जाये तो परवाह नहीं. रविवार की सुबह संतोष के गांव टेंगरा में पहुंचते ही सन्नाटा पसरा हुआ मालूम पड़ा. संतोष के घर में बिलखती आवाज यह बता रही थी कि इस परिवार ने सब कुछ खो दिया है. घर के समीप ग्रामीणों की लगी भीड़ और उनकी आंखों में आंसू दरशा रहे थे कि उन्होंने कीमती समान को खोया है.
युवकों को सेना में जाने के लिए करता था उत्साहित : संतोष के शहादत के बाद टेंगरा गांव में दुख का माहौल है तो फक्र का भी. गांव के ग्रामीण संतोष की शहादत पर अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. हर किसी ने हाथ उठा कर अपने बेटे की शहादत को सलाम किया.
ग्रामीण अमेरिका सिंह, अजय कुमार, रामजनम सिंह, उदय कुमार गुप्ता ने कहा कि देश की सेवा करते हुए हमारे गांव के बेटे ने शहादत दी है. ऐसे शहादत पर हमें गर्व है. बस दुख तो इस बात का है कि एक मां ने अपना बेटा खोया है तो एक पत्नी ने पति. बस फिक्र है तो उन तीन मासूमों का, जिनकी जिदंगी बनाने के लिए वह काम कर रहा था. संतोष जब भी गांव में आता तो वह सबसे घुल-मिल कर घर-घर जाकर बातें करता. गांव के युवाओं को सेना में नौकरी करने की सलाह देता. देशभक्ति का जुनून उसमें कूट -कूट कर
भरा था. अब वह हमारे बीच नहीं है. लेकिन सरकार उसके परिवार का ख्याल करे.
सोमवार की सुबह हो सकता है दाह-संस्कार : कश्मीर में शहीद हुए संतोष साव का अंतिम संस्कार सोमवार की सुबह होने की संभावना है. पता चला कि रविवार की दोपहर एक बजे कश्मीर से दिल्ली के लिए शव को रवाना किया गया था. दिल्ली से 6: 40 बजे पटना के लिये रवानगी थी. रात आठ बजे पटना में सलामी देने के बाद शव को औरंगाबाद के लिये रवाना किया जायेगा.
देवघर दर्शन कराने का वादा कर गया था बेटा
कश्मीर में आतंकवादी हमले के दौरान शहीद हुए संतोष साव के परिजनों का हाल बेहाल हो गया था, जैसे ही संतोष की शहादत की खबर परिजनों को हुई, वैसे ही अंजाना चीत्कार गूंज उठा. गांव में कोलाहल मच गयी. कल तक जो परिवार सावन मास की आस लगा कर बैठा था, उस परिवार में अचानक खलबली मच गयी, जिस बूढ़ी मां और पत्नी को सावन में देवघर का दर्शन कराने का वादा कर बेटा गया था, वह बेटा अचानक दुनिया से रूखस्त हो गया. बिलखते हुए मां देवंती कुंवर कह रही थी कि अब इ परिवार के कौन देखतई. जवानी में पति खो देली और बुढ़ापा में बेटा. पत्नी आशा देवी की हालत तो बद से बदतर थी.
तीन बच्चों के परवरिश और फिर उन्हें बेहतर इनसान बनाने की ख्वाहिश पाले दंपती में एक का साथ छूट गया था. कभी पत्नी अपने जांबाज पति के तसवीर को देखती तो कभी अपने छोटे-छोटे तीन बेटों को. नौ वर्ष के प्रताप, आठ वर्ष के अभिषेक और तीन वर्ष के शौर्य को यह पता नहीं था कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं है. लेकिन बिलखती मां और दादी को देख कर उनके आंखों में भी आंसू आ जा रहे थे. प्रताप थोड़ा समझदार है. लेकिन, उसके धैर्य देखते बन रही थी. पता चला कि 10 अप्रैल को संतोष अपने घर आया हुआ था. एक महीने की छुट्टी बिता कर 13 मई को कश्मीर के लिये निकला था. जाते-जाते अपने परिवार को देवघर दर्शन कराने का वादा किया था. मां की ख्वाहिश थी कि वह अपने बेटे के साथ भगवान शंकर का दर्शन करे.
बचपन में ही खोया था बाप का साथ
शहीद संतोष साव का हर कोई तारीफ करते नहीं थकता था. जब वह 14 वर्ष का था तो उसके सिर से पिता अवध साव का साया उठ गया. एकलौता व परिवार में अकेला होने के कारण उसकी जिम्मेवारी बचपन से ही बढ़ने लगी थी. देशभक्ति की सेवा का जुनून लिये सेना के कई बहालियों में भाग्य आजमाया. आखिरकार उसे सीआरपीएफ में नौकरी लग गयी.
वर्ष 2004 में झारखंड राज्य के जपला के मानखाप गांव में शादी हुई, फिर देश सेवा के लिए निकल पड़ा. परिवार में मां ,पत्नी और तीन बच्चे के अलावा कोई नहीं था. ऐसे में उसकी जिम्मेवारी बड़ी थी. संतोष का एक और लक्ष्य था कि वह नौकरी से रिटायर होने के बाद गांव में ही एक क्लिनिक खोल कर लोगों की सेवा करना.

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