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औरंगाबाद कार्यालय : औरंगाबाद को जिला बने 40 साल हो चुके हैं और अब तक किसी एसपी ने भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध अभियान नहीं चलाया. लेकिन, सोमवार को एसपी उपेंद्र कुमार शर्मा ने भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध अभियान की शुरुआत जिला परिवहन कार्यालय में छापेमारी कर की है. इसमें कई लोगों को मौके पर ही पकड़ा भी. […]

औरंगाबाद कार्यालय : औरंगाबाद को जिला बने 40 साल हो चुके हैं और अब तक किसी एसपी ने भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध अभियान नहीं चलाया. लेकिन, सोमवार को एसपी उपेंद्र कुमार शर्मा ने भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध अभियान की शुरुआत जिला परिवहन कार्यालय में छापेमारी कर की है. इसमें कई लोगों को मौके पर ही पकड़ा भी.

एसपी द्वारा की गयी छापेमारी पर जिले के लोगों ने प्रतिक्रिया दी है. महाराणा प्रताप सेवा संस्थान के अध्यक्ष जगदीश नारायण सिंह, पेंशनर समाज के अध्यक्ष जगन्नाथ सिंह, पेंशनर समाज के ही बालेश्वर प्रसाद, रामानंद सिंह ने कहा है कि एसपी उपेंद्र कुमार शर्मा द्वारा की गयी इस कार्रवाई से आम लोगों में खुशी है.

इस तरह की कार्रवाई आगे भी हो, तो निश्चित रूप से सरकारी कार्यालयों में जो भ्रष्टाचार व्याप्त है और दलाल व बिचौलिये हावी हैं, उस पर रोक लग सकते हैं.

2000 तक लेते थे राशि

एसपी द्वारा की गयी छापेमारी में खुलासा हुआ है कि परिवहन कार्यालय में लाइसेंस के लिए सरकार द्वारा 580 रुपया शुल्क निर्धारित किया गया है, लेकिन कार्यालय से जुड़े दलाल लाइसेंस बनाने के नाम पर 1500 से 2000 रुपये लिया करते थे. इसमें कर्मचारियों व दलालों की मिलीभगत है.

बिना पूंजी के हो रही कमाई

परिवहन कार्यालय के दलाली का धंधा पिछले एक दशक से फल फूल रहा है. इस कारोबार में वैसे तो दर्जनों लोग शामिल हैं, लेकिन दुकान खोल कर आधे दर्जन लोग बैठे हैं, जो पूरी तरह इसी धंधे पर आधारित है.

इस धंधे में शायद ही इनकी कोई पूंजी लगी हो. मतलब साफ है, लाइसेंस के फॉर्म भी सरकारी, ऑफिस भी सरकारी, ऑफिस के आदेशपाल से लेकर पदाधिकारी तक सरकारी व मुनाफा तीगुना यानी केवल कलम की स्याही खर्च करने के बाद 1500 से 2000 तक की कमाई.

एमवीआइ से ऑपरेटर तक बंधी हुई थी राशि

छापेमारी के बाद जब दलालों से पूछताछ की गयी, तो एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ. इसमें एमवीआइ साहब भी लाइसेंस के नाम पर पैसा ले रहे थे. दलालों ने एसपी को बताया कि एक लाइसेंस पर 700 रुपये ऑफिस में खर्च होते थे.

इमसें एमवीआइ साहब को 250 रुपये, प्रधान लिपिक साहब को 200 रुपये, एक और बड़ा बाबू को 50 रुपये, ऑपरेटर को 150 रुपये दिये जाते हैं और डॉक्टर को मेडिकल सर्टिफिकेट के लिए 20 से 50 रुपये, यानी 700 रुपये रिश्वत के रूप में और 50 रुपये डॉक्टर साहब के फीस के रूप में खर्च होते थे. बाकी पैसा दलालों का हो जाता था.

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