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पुरुषों की जांच करतीं हैं महिला पुलिसकर्मी

जिस जगह न्याय की देवी विराजमान रहती है, जहां लोगों को इंसाफ मिलता है व खूंखार से खूंख्वार अपराधी व उग्रवादी इंसाफ के लिए न्याय की गुहार लगाते हैं, उस जगह अगर सुरक्षा व्यवस्था में खोट हो तो अन्य जगहों व आम लोगों की क्या हैसियत है. औरंगाबाद व्यवहार न्यायालय की सुरक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे […]

जिस जगह न्याय की देवी विराजमान रहती है, जहां लोगों को इंसाफ मिलता है व खूंखार से खूंख्वार अपराधी व उग्रवादी इंसाफ के लिए न्याय की गुहार लगाते हैं, उस जगह अगर सुरक्षा व्यवस्था में खोट हो तो अन्य जगहों व आम लोगों की क्या हैसियत है.
औरंगाबाद व्यवहार न्यायालय की सुरक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है. सच कहा जाये तो शिफ्ट में सुरक्षाकर्मियों की बदौलत न्यायालय के कर्मचारी व आमलोगों की सुरक्षा हो रही है. कभी अगर कोई बड़ी घटना हो जाये, तो ताज्जुब की कोई बात नहीं होगी. 25 अप्रैल, 2016 को एक हत्या के आरोपित दोषी ठहराये जाने पर न्यायालय से फरार हो गया. इससे पहले 15 मार्च, 2014 को भी हाजत तोड़ कर सात कैदी फरार हो चुके हैं. इसके कारण न्यायालय की व्यवस्था पर अंगुली उठना लाजिमी है.
औरंगाबाद (ग्रामीण) : हाल ही में छपरा न्यायालय परिसर में बम विस्फोट की घटना ने सुरक्षा व्यवस्था को तार-तार कर दिया. ठीक इस घटना के तीसरे दिन वाराणसी कोर्ट से भी एक बम बरामद हुआ. इन दोनों घटनाओं के बाद प्रशासन सक्रिय हुआ व व्यवहार न्यायालय की सुरक्षा बढ़ा दी गयी. प्रभात खबर की टीम ने सोमवार की सुबह सात बजे से औरंगाबाद व्यवहार न्यायालय की पड़ताल शुरू की. इस दौरान न्यायालय परिसर में कहीं भी सुरक्षा के कोई प्रबंध नजर नहीं आये.
सुबह 7:14 बजे व्यवहार न्यायालय के मुख्य द्वार से न्यायालय के कर्मचारी व केस के सिलसिले में पहुंचे लोग प्रवेश कर थे. मुख्य द्वार पर एक भी सुरक्षाकर्मी तैनात नहीं थे.
7:15 बजे सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताते हुए एक व्यक्ति दो झोले (बैग) के साथ प्रवेश करता है. वह भी बेरोक-टोक. एक बुजुर्ग व्यक्ति भी बड़े झोले के साथ अंदर प्रवेश करते हैं, लेकिन किसी ने भी कुछ भी नहीं पूछा.
7:17 बजे मेटल डिटेक्टर व उसके पास पुलिसकर्मियों की लगी बेंच पूरी तरह खाली थी. एक भी सुरक्षाकर्मी मौजूद नहीं थे.
7:23 बजे गमछे से मुंह बांधे दो व्यक्ति बाइक से न्यायालय परिसर में प्रवेश करते हैं. इस समय तक सुरक्षा की कहीं कोई व्यवस्था नहीं थी. 7:28 बजे एक सुरक्षाकर्मी प्रीतम प्रसाद पहुंचता है व बाइक सवारों की जांच पड़ताल शुरू कर देता है.
इस दौरान 7:30 से 7:40 बजे के बीच कई लोग बैग और झोले के साथ अंदर प्रवेश करते हैं. किसी ने भी उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की. केवल एक पुलिसकर्मी प्रीतम प्रसाद अकेले सुरक्षा व्यवस्था की कमान संभाल रखा था. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि न्यायालय की सुरक्षा कैसे हो रही है.
लाइव पड़ताल के दौरान 7:52 बजे से लेकर आठ बजे तक न्यायालय के दूसरे गेट से लोग धड़ाधड़ प्रवेश कर रहे थे. कोई पूछने वाला भी नहीं था. हालांकि, व्यवहार न्यायालय में काम से आये लोगों की भीड़ अब नजर आने लगी थी. सुरक्षा में लगे पुलिस जवान प्रीतम भी रौब में आ चुका था. अब इसे कैमरे का कमाल कहिए या उनकी जिम्मेवारी. न्यायालय परिसर में बेरोक-टोक घुस रही बाइकों पर लगाम लग गयी और जो लोग अवैध रूप से बाइक लगाये गये थे, उनकी बाइक के पहिये की हवा भी खुलनी शुरू हो गयी थी.
ठीक 8:30 की शिफ्ट की सुरक्षा व्यवस्था बदल जाती है. अब डयूटी पर प्रीतम की जगह मुरारी कुमार सुरक्षा की कमान संभाल लेते हैं. जिन महिला-पुरुष कर्मचारियों की न्यायालय में सुबह से डयूटी पर लगायी गयी थी, वे तीन घंटे देरी से पहुंचे. सुबह छह बजे से न्यायालय का काम शुरू होता है. लेकिन, सुरक्षा व्यवस्था ठीक इससे अलग. 9:30 बजे चार महिला पुलिसकर्मी पहुंचीं व गेट के समीप लगे मेटल डिटेक्टर से जांच शुरू कर दी.
9:31 बजे से न्यायालय के मुख्य द्वार से प्रवेश करनेवाले लोगों की जांच प्रारंभ हुई. यह कमाल मीडियाकर्मियों को देखे जाने के बाद ही हुई. फिर भी महिला पुलिसकर्मियों ने ऐसे जांच की जैसे उन्हें सख्त निर्देश दिया गया हो. हालांकि, यहां भी चेहरे व पहनावे देख कर ही जांच पड़ताल हुई. इस दौरान ठीक मुख्य गेट के बगल में दूसरी गेट से लोग आ-जा रहे थे. 9:32 से 9:55 तक बेधड़क प्रवेश करते रहे. यहां देखनेवाला कोई नहीं था. एक भी पुलिस के जवान दूसरे गेट पर नहीं थे. न्यायालय परिसर में शौचालय का अभाव दिखा. कई अधिवक्ताओं ने बताया कि शौचालय से अधिवक्ताओं के साथ-साथ आमलोगों को परेशानी होती है. एक शौचालय है, लेकिन उसका उपयोग बहुत कम लोग करते हैं. विधिक संघ के अध्यक्ष रसिक बिहारी सिंह ने कहा कि शौचालय का अभाव खटकता है.
कई बार शौचालय के लिए ध्यान आकृष्ट कराया गया, लेकिन इस पर ध्यान किसी ने नहीं दिया. मुख्य द्वार पर ही एक शौचालय है, लेकिन उसका कोई उपयोग नहीं करता. वह बंद व पूरी तरह जर्जर है. न्यायालय परिसर से हट कर हाजत है, जिसकी स्थिति कुछ हद तक सही है. हालांकि, पूर्व में हाजत तोड़ कर कैदी फरार भी हो चुके हैं. यहां बता दें कि 15 मार्च, 2014 को हाजत तोड़ कर राकेश गिरी सहित सात कैदी फरार हो गये थे.

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