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सीएम तक पहुंची महिलाओं की आवाज, बन गयी बात

औरंगाबाद : शराबियों से सबसे अधिक परेशानी अगर किसी को थी, तो वे थीं महिलाएं. जिन्हें न केवल अपने परिवार में शराब पीनेवाले से मुश्किलों का सामना करना पड़ता था, बल्कि घर से बाहर निकलने पर भी शराबियों के आतंक से इन्हें दो-चार होना पड़ता था. पूर्ण शराबबंदी लागू किये जाने पर प्रभात खबर ने […]

औरंगाबाद : शराबियों से सबसे अधिक परेशानी अगर किसी को थी, तो वे थीं महिलाएं. जिन्हें न केवल अपने परिवार में शराब पीनेवाले से मुश्किलों का सामना करना पड़ता था, बल्कि घर से बाहर निकलने पर भी शराबियों के आतंक से इन्हें दो-चार होना पड़ता था. पूर्ण शराबबंदी लागू किये जाने पर प्रभात खबर ने समाजसेवी महिला डाॅ कुसुम कुमारी से बातचीत की.
डाॅ कुसुम पिछले तीन साल से शराबबंदी को लेकर आंदोलन चला रही थीं. शराबबंदी लागू करने की सरकार की घोषणा को यह एक बड़ी जीत मानती है. डाॅ कुसुम का कहना है कि शराब से सबसे अधिक पीड़ित अगर कोई था, तो वह महिलाएं थी. लेकिन, इनकी जुबान खुल नहीं पाती थी. अगर खुलती भी थी, तो इनकी आवाज घर की चहारदीवारी में ही दुबक कर रह जाता था.
इनका आगे कहना है कि बिहार के मुखिया नीतीश कुमार ने महिलाओं की आवाज सुनी और पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी. महिलाओं के आत्मा की आवाज सुननेवाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करोड़ों महिलाओं के लिए ग्रेड-वन के हीरो बन चुके हैं. इनका यह भी कहना है कि पूरे देश में एक दिन में लोग डेढ़ सौ करोड़ का शराब पीया करते थे. अब यह पैसा, शिक्षा, स्वास्थ्य व विकास में खर्च होगा और एक नया बिहार का सृजन होनेवाला है.
बेरोजगार हो गये सेल्समैन : शराबबंदी के बाद शराब के कारोबारियों ने तो अपना बोरिया-बस्तर समेट लिया है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या है शराब की दुकानों में काम करनेवाले सेल्समैन के रोजी-रोटी की.
करीब 1000 से 1200 लोग इस जिले में शराब की दुकानों में काम करते थे. ये लोग बेरोजगार हो चुके हैं. इन्हीं लोगों में से सुखदेव राम, अविनाश सिंह, रघुवर भगत व अवनीश शर्मा से बातचीत की, तो इनका कहना था कि शराबबंदी लागू होने के बाद हम सभी लोग बेरोजगार हो चुके हैं. वे रोजगार की तलाश में घूम रहे हैं. यहां नहीं मिलने पर लुधियाना, पंजाब व दिल्ली जाकर काम करेंगे.
शराब दुकानों में अब खुल रहीं नयी दुकानें : औरंगाबाद जिले में शराब की दुकानें अक्सर मुख्य सड़कों पर ही खुली थीं. शहर के पुरानी जीटी रोड पर लगातार कई शराब दुकानें थीं. नगर थाने के समीप एक ही जगह पर चार-चार दुकानें थीं. पुरानी सब्जी मंडी, रमेश चौक व बाइपास ओवरब्रिज के समीप भी दुकानें थीं. पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद अब इन दुकानों में सोफा, बेड व हार्डवेयर की दुकानें खुल रही हैं.
शराबबंदी से थम गयी अपराध की रफ्तार : शराबबंदी लागू होने से शासन-प्रशासन को एक बड़ी राहत मिली है. औरंगाबाद जिले में शायद ही कोई ऐसा दिन हो, जब शराब को लेकर मारपीट की घटनाएं नहीं हुई थीं. औरंगाबाद शहर में तो नशे में धुत आपराधिक प्रवृत्ति के लोग अक्सर महिलाओं पर फब्तियां कसा करते थे. शहर से लेकर गांव तक शराब अड्डों पर अपराधियों का जमावड़ा लगा रहता था और वहीं पर अपराध की योजनाएं बना करती थीं.
लेकिन, जब से पूर्ण शराबबंदी लागू हुई है, मारपीट की घटना में अचानक कमी आ गयी है. महिलाओं के साथ छेड़खानी या अपशब्द कहे जाने की घटनाएं, तो पूरी तरह बंद हो गयी हैं. अपराधी भी अब शराब अड्डे पर नहीं देखे जा रहे हैं. इससे यह कहना कोई गलत नहीं होगा कि पूर्ण शराबबंदी लागू होने से आपराधिक घटनाओं पर पूर्ण विराम लग गया है.
शराब बेचनेवाले झारखंड में कर गये पलायन : औरंगाबाद जिले में सबसे अधिक शराब पीने व बेचने का काम होता था. शराब माफियाओं की नजर हमेशा इस जिले पर लगी रहती थी, जैसे ही पूर्ण शराबबंदी की घोषणा सरकार ने की, शराब बेचनेवाले झारखंड पलायन कर गये.
मिली जानकारी के अनुसार, यहां पर लगभग 25 की संख्या में शराब के बड़े व्यवसायी थे, जो समूह (सिंडिंकेट) बना कर शराब का कारोबार किया करते थे. जब शराबबंदी के बाद की स्थिति पर बात की गयी, तो नाम न छापने की शर्त पर इन लोगों ने कहा कि शराब का धंधा ऐसा है कि जो एक बार इस धंधे से जुड़ गया, वह छुटकारा नहीं पा सकता है. बिहार में तो शराबबंदी लागू हो गयी. अब यहां से हमलोग उन राज्यों में जाकर कारोबार करना चाह रहे हैं, जहां शराबबंदी लागू नहीं है. झारखंड, ओड़िशा व छतीसगढ़ में शराब का बड़ा कारोबार किया जा सकता है.
शराबबंदी को लेकर औरंगाबाद में उठती रही आवाज
शराबबंदी से पहले औरंगाबाद जिले में सबसे अधिक शराबबिक्री होने की बात कही जाती थी, लेकिन यह भी सच है कि पूर्व में शराब के विरुद्ध यहां आवाज भी बुलंद होती रही है.
जाने-माने समाजसेवी जगन्नाथ सिंह ने तो 35 वर्षों से नशामुक्ति अभियान चला रखा था. श्री सिंह ने प्रमुख रूप से शराब के विरुद्ध आंदोलन किया. शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े रहे जगन्नाथ बाबू जब गेट स्कूल में शिक्षक थे, तो वे बच्चों को पढ़ाने पहले नशा से वंचित रहने की शिक्षा जरूर दिया करते थे.
अपने गांव रिसुनपुर में अखंड कीर्तन यज्ञ का आयोजन कर लोगों को संकल्प दिलाते थे कि शराब न पीयेंगे, न पिलायेंगे. शराब के विरुद्ध आंदोलन चलानेवालों में डाॅ कुसुम कुमारी, जैसी कई महिलाएं थीं. समाजसेवी महिला गोदावरी देवी भी पिछले काफी दिनों से शराब व नशे के खिलाफ प्रयासरत रहीं. कई बार महिलाओं के साथ बैठकें कर शराब से होनेवाले नुकसान पर चर्चा की.
गोदावरी देवी बताती हैं कि शराब के खिलाफ न केवल महिलाओं को जागरूक किया, बल्कि पुरुषों को भी शराब न पीने की सलाह दी. औरंगाबाद शहर के ही महुआ शहीद मुहल्ले की रहनेवाली आशा देवी भी अपने पति से काफी परेशान थीं. उनका परेशानी यह थी कि उनका पति स्वयं तो शराब पीते नहीं थे, लेकिन पीनेवालों के साथ रहते जरूर थे. जैसे ही सरकार द्वारा पूर्ण शराबबंदी लागू की गयी, आशा देवी ने राहत की सांस ली.
शराब के विरुद्ध सबसे अधिक आंदोलनरत रहीं महिलाएं
शराबबंदी की मांग को लेकर जिले में महिलाओं ने सबसे अधिक आंदोलन किया है. पिछले वर्ष बघोईकलां में शराब की दुकान खोलने के विरोध में सैकड़ों महिलाएं सड़क पर उतर गयीं.
शराब दुकान को जला दिया और रेल ट्रैक को जाम कर दिया था. नवीनगर के तेतरिया में भी शराब दुकान खोलने के विरोध में महिलाओं ने आंदोलन किया था. जम्होर में भी शराब दुकान खोलने का विरोध महिलाएं ने किया था. इनके आंदोलन के दबाव में प्रशासन को दुकान हटानी पड़ी थी. दो वर्ष पूर्व जम्होर के पड़वा में शराब दुकान खोलने के विरोध में महिलाओं ने आंदोलन किया था.

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