20 वर्ष बाद पुलिस को मिली बड़ी कामयाबी1996 में मथान बिगहा गांव के समीप मुठभेड़ में मारे गये थे सात नक्सलीनक्सलियों ने एक दर्जन से अधिक पुलिसकर्मियों को मार गिराया है औरंगाबाद (नगर) जिले में पुलिस व नक्सलियों के बीच लगातार मुठभेड़ होती रही है. लेकिन पुलिस को सफलता न के बराबर मिल रही थी. लंबे अरसे के बाद औरंगाबाद पुलिस को बड़ी सफलता शुक्रवार की देर शाम मिली. इसमें चार नक्सली ढेर हो गये और उनलोगों के पास से पांच हथियार बरामद किये गये. इस मुठभेड़ के पूर्व वर्ष 1994 में हसपुरा थाना क्षेत्र के गुलजार बिगहा में पुलिस-नक्सली के बीच मुठभेड़ हुआ था, उस दौरान छह नक्सली ढेर हुए थे. उस घटना के बाद से नक्सली संगठन को मजबूत बना ही रहे थे कि एक बार फिर 1996 में मदनपुर थाना क्षेत्र के मथान बिगहा गांव के समीप से पुलिस व नक्सली के बीच मुठभेड़ हुआ था, जिसमें नक्सली के शीर्ष नेता सागर चटर्जी समेत सात नक्सली मारे गये थे. उस दौरान मुठभेड़ का नेतृत्व कर रहे दारोगा रामाकांत प्रसाद को राष्ट्रपति पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया था. इस घटना के बाद नक्सली सक्रिय हो गये और जिले में कई बड़ी-बड़ी घटनाओं का अंजाम देकर नक्सली संगठन को एक मजबूत हाथ दिया. जो वर्ष 2015 तक जारी रहा. इस दौरान नक्सलियों ने एक दर्जन से ऊपर पुलिसकर्मियों को मार गिराया. दर्जनों हथियार व हजारों कारतूस भी पुलिस जवानों से लूटा. एक बार फिर वर्ष 2016 शुरू होते ही नक्सली अपने आप को मजबूत होने का एहसास पुलिस को दिला ही रहे थे कि पुलिस ने उनके मनसूबे को नाकाम करते हुए चार नक्सलियों को मार गिराया. नक्सलियों के विरुद्ध कोबरा के जवानों ने दिखाया साहस : जिस स्थान पर नक्सलियों व कोबरा जवानों के बीच मुठभेड़ की घटना हुई, उस जगह पर इंसान तो क्या परिंदा भी पर नहीं मार सकता. लेकिन कोबरा के जवानों ने अपने हौसले को बुलंद करते हुए न सिर्फ दुर्गम जंगल में सर्च ऑपरेशन चलाया. बल्कि चार नक्सलियों को मार गिराया. साथ ही जो हथियार नक्सलियों के पास थे, उन हथियारों को भी बरामद किया. नक्सलियों के पास से बरामद हथियारों में एके 47, थ्रीनट थ्री का दो राइफल, एक कारबाइन व एक देशी राइफल को बरामद करते हुए भारी मात्रा में राशन-केरोसिन, पीठू, चार्जर व अन्य नक्सली साहित्य को जब्त किया गया. यह जंगल जिला मुख्यालय से करीब 38 किलोमीटर दूर बनुआ खैरा गांव से दक्षिणी इलाके में है. यहां ग्रामीण दिन में भी जाने से कतराते हैं. क्योंकि इस जंगल में सिर्फ नक्सलियों का सम्राज्य चलता है. एक ग्रामीण ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि ‘केकरा हिम्मत हई बाबू, जंगल में जायेला, पुलिसियन तो पकड़ के जेल में डाल देव हथिन लेकिन ओहनी तो सीधे काट देव हथिन’. ग्रामीण की इस बात को सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जायें. जब हड़ियाही नहर के समीप पत्रकारों की टोली पहुंची तो भारी संख्या में कोबरा के जवान सड़क पर लोगों की तलाशी ले रहे थे. कोबरा के जवानों ने यह कहते हुए जंगल में जाने से रोक दिया कि रास्ता नहीं है, पहाड़ पर चढ़ पाना और घटनास्थल तक पहुंच पाना काफी कठिन है. बावजूद टोली बांध गोरेया जंगल में पहुंची, जब दो पहाड़ को पार कर घटनास्थल पर पहुंचने की कोशिश कर में थे कि उधर से पुलिस अधीक्षक हाथ में एके 47 लिए हुये अंगरक्षकों के साथ जंगल से बाहर की ओर आ रहे थे. पत्रकारों की टोली को देख कर एसपी ने कुछ देर के लिए स्तब्भ रह गये. फिर बोले कि आगे जाना खतरा से खाली नहीं है. कोबरा के जवान मोरचा संभाले हुए हैं. इसलिये आपलोग आगे न जाये. नक्सलियों के शव को पुलिस ने बरामद कर लिया है. आगे मत जाइये रास्ता खराब है : ढिबरा थाना क्षेत्र के बांध गोरेया जंगल में पुलिस-नक्सली के बीच हुई मुठभेड़ में मारे गये नक्सलियों की खबर का कवरेज करने के लिए शनिवार की सुबह पत्रकारों की टोली घटनास्थल के लिए रवाना हुई. जैसे ही देव प्रखंड मुख्यालय से दक्षिण जंगल की ओर बढ़े तो दतु बिगहा से ही पुलिस जवान के लोग सड़क व खेत में मोरचा संभाले हुए थे. सड़कों पर लगातार बाइक से कोबरा के जवान गश्ती कर रहे थे. बेढना नहर के समीप देव थाना के दारोगा भारी संख्या में कोबरा जवानों के साथ लैंडमांइस वाहन लेकर जांच कर रहे थे. पहले तो पुलिसकर्मियों ने परिचय पूछा, इसके बाद बताया कि आगे मत जाइये रास्ता तो खराब हैं ही साथ ही लैंडमाइंस लगा हुआ है. जान हथेली पर न ले. बावजूद कच्ची सड़क व पंगडंडी के सहारे घने व दुर्गम जंगल में तीन नदी को पार करते हुए घटनास्थल पर पहुचे. इस दौरान पुलिस पदाधिकारियों ने कहा कि इस जंगल में आम आदमी को पहुंच पाना काफी कठिन है. कोबरा के जवान लगातार जंगली इलाकों में कर रहे कैंप : जब से जिले में कोबरा के जवानों का कैंप स्थापित हुआ है तब से नक्सलियों के लगातार पसीने छूट रहे है. यही कारण है कि नक्सली घटना को अंजाम देने में विफल साबित हो रहे हैं. इसके पीछे के कारण यह है कि कोबरा के जवान लगातार जंगली इलाकों में कैंप कर रहे हैं. साथ ही नक्सलियों के विरुद्ध लगातार कांबिंग ऑपरेशन चला रहे हैं. कोबरा के कार्रवाई से घबराकर नक्सली अपने मांद में घुसने को मजबूर हुए हैं. इसी का परिणाम है कि विधानसभा चुनाव में नक्सली एक पटाखा भी नहीं छोड़ सके.सुरक्षित जगह मान कर जमा हुए थे नक्सली : नक्सली बांध गोरेया जंगल को काफी सुरक्षित जगह मानते रहे हैं. नक्सलियों को पूर्ण विश्वास रहता है कि इस जंगल में कोई पुलिस नहीं पहुंच सकते. क्योकि यहां पर न तो किसी कंपनी के मोबाइल टावर काम करता है और न ही किसी प्रकार का कोई आने-जाने का समुचित रास्ता है. जैसे तैसे लोग झाड़ी से होकर पहाड़ पर चढ़ते हैं और फिर कटीले कांटों से होकर गुजरना पड़ता है. यही मान कर सबजोनल कमांडर अभिजीत जी का दस्ता शुक्रवार को जंगल में जमा हुए थे. लेकिन इसकी सूचना कोबरा के सहायक कमांडेट चंदन कुमार, मोहम्मद गुफरान, ढिबरा थानाध्यक्ष आदित्य कुमार को मिल गयी. सूचना मिलने के बाद इन तीनों अधिकारियेां ने वरीय पुलिस पदाधिकारियेां की सूचना देते हुए कोबरा जवानों के साथ नक्सलियों को घेराबंदी करने के लिए सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया. जब नक्सलियों ने पुलिस को देखी तो जान बचा कर भागने के फिराक में गोलीबारी शुरू कर दी. लेकिन कोबरा के जवानों ने जवाबी कार्रवाई की. घंटों देर तक नक्सलियों व पुलिस के बीच मुठभेड़ हुआ. इसमें चार नक्सली मारे गये. इनके पास से पांच हथियार भी पुलिस ने बरामद किया.
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