12.5 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अदिति ने सर्व प्रथम किया था सूर्य व्रत

अदिति ने सर्व प्रथम किया था सूर्य व्रत औरंगाबाद कार्यालयकश्यप ऋषि की पत्नी अदिति ने सर्वप्रथम सूर्य व्रत किया और सूर्य समान तेजस्वी पुत्र का वरदान मांगा. तदनुसार सूर्य भगवान अदिति के 12 पुत्र रूप में अवतरित हुए और आदित्य कहलाये . ये 12 आदित्य हैं- इंद्र, धाता, पर्जन्य, पूषा, तत्वाष्ट्रा, अर्यमा, भग, विवस्वान, अंशु, […]

अदिति ने सर्व प्रथम किया था सूर्य व्रत औरंगाबाद कार्यालयकश्यप ऋषि की पत्नी अदिति ने सर्वप्रथम सूर्य व्रत किया और सूर्य समान तेजस्वी पुत्र का वरदान मांगा. तदनुसार सूर्य भगवान अदिति के 12 पुत्र रूप में अवतरित हुए और आदित्य कहलाये . ये 12 आदित्य हैं- इंद्र, धाता, पर्जन्य, पूषा, तत्वाष्ट्रा, अर्यमा, भग, विवस्वान, अंशु, विष्णु, मित्र व वरुण. ये आदित्य विभिन्न देशों में वास करते हैं तथा ये द्वादश आदित्य 12 मास के स्वामी हैं. कार्तिकेय ने कार्तिक मास में किया था सूर्य की पूजा भगवान शिव के पुत्र स्वामी कार्तिकेय ने सर्वप्रथम कार्तिक मास की षष्ठी को सूर्य की विधिवत पूजा की, जिससे सूर्य षष्ठी व्रत यानी छठ आरंभ हुआ. कार्तिकेय महाराज बिना सिर के स्कंद रूप में अवतरित हुए थे, जिन्हें छह कृतिकाएं स्तनपान कराने आयी और स्कंद कुमार ने छह मुख धारण कर षष्ठी के दिन ही इनका स्तनपान किया था. षष्ठी के दिन ही स्कंद कुमार देव सेनानीद बने थे. इसलिए षष्ठी तिथि कुमार का सबसे प्रिय दिन है और इसी कारण वे सौर सम्प्रदाय के प्रवर्तक बन गये. षष्ठी व्रत करके ही प्रियव्रत की पत्नी मालिनी अपने मृत पुत्र को जिंदा कर पायी थी. भगवती षष्ठी ,जो स्कंद कुमार की शक्ति होने के कारण कौमारी कहलाती है, ने छठे दिन प्रियव्रत के कुमार रक्षा की थी. तब से छठ व्रत प्रसिद्ध हुआ. स्कंद कुमार के बाद कृष्ण पुत्र साम्ब सौर धर्म के कोढ़ हो गया था. श्री कृष्ण के निर्देशानुसार इन्होंने सूर्योपासना कर कोढ़ से मुक्ति पायी थी.सूर्य की पूजा प्रकृति पूजा के साथ आरंभ हुईसूर्य की पूजा प्रकृति पूजा के साथ आरंभ हुई, लेकिन कालांतर में पौराणिककारों ने इस देवाधिदेव का मानवीकरण कर सौर परिवार की कल्पना की. आदि में सूर्य का प्रकटीकरण ज्वाला पिंड सा बड़े अंडे के रूप में हुआ, जिससे इन्हें मार्तण्ड कहा गया. जब ये अंडे से प्रकट हुए तो विश्वकर्मा ने इनका विवाह अपनी पुत्री संज्ञा से कर दिया. इससे यम व यामी नामक दो संताने हुई, जिसमें से एक मृत्यु देव व दूसरी यमुना नदी हुई. उनकी अतिशय ताप से बेचैन हो संज्ञा अपनी छाया को पति -सेवा के लिए छोड़ कुरुक्षेत्र में अपना अश्वा रूप से तपस्या करने चली गयी. सूर्य ने छाया का भेद खुलते ही सूर्य कुरुक्षेत्र में जा सप्तमी को अश्वा रूप संज्ञा से समागम किया जिससे यमज बंधु – अश्विनी कुमार हुए. सूर्य के परिवार सौर मंडल में वास करते हैं और सूर्य विश्व की परिक्रमा किया करते हैं. रूपक रूप में सूर्य की सप्तकिरणें ही उसके रथ के साथ घोड़े हैं और वृषभानु इनके सारथी है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें