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कहीं खो न जाये उपचार की प्राचीन पद्धति

कहीं खो न जाये उपचार की प्राचीन पद्धति (ग्राफीक्स लगा देंगे)(लीड) औरंगाबाद (सदर) पूरे विश्व में आज चिकित्सा के क्षेत्र में रोज एक नये खोज व शोध किये जा रहे हैं. दिन-प्रतिदिन चिकित्सा के तरीके बदल रहे हैं. ये सर्वविदित है कि भारत में महर्षी चरक ने जहां आयुर्वेद चिकित्सा से हर वो लाइलाज रोग […]

कहीं खो न जाये उपचार की प्राचीन पद्धति (ग्राफीक्स लगा देंगे)(लीड) औरंगाबाद (सदर) पूरे विश्व में आज चिकित्सा के क्षेत्र में रोज एक नये खोज व शोध किये जा रहे हैं. दिन-प्रतिदिन चिकित्सा के तरीके बदल रहे हैं. ये सर्वविदित है कि भारत में महर्षी चरक ने जहां आयुर्वेद चिकित्सा से हर वो लाइलाज रोग का इलाज निकाला. वहीं सुश्रुत के शल्य चिकित्सा ने कॉस्मेटिक की एक नयी पद्धति को जन्म दिया था. ये दोनों प्राचीन भारत के प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्री रहे और इनकी संहिता पर आज भी शोध चल रहे हैं. साथ ही इन्हीं के ग्रंथों पर आधारित शोध चिकित्सा जगत को आज प्रगति के पथ पर इतना आगे ला खड़ा किया है, जहां हर रोज कोई न कोई आश्चर्यचकित कर देने वाले कारनामे देखने व सुनने को मिल रहे हैं. पर, इतने प्रगति के बावजूद हम प्राचिन चिकित्सा पद्धति को कहीं न कहीं भुलते जा रहे हैं. आयुर्वेद, होम्योपैथ, यूनानी व प्राकृतिक चिकित्सा को प्रभावकारी न समझ सिर्फ और सिर्फ आधुनिक चिकित्सा पद्धति यानी एलोपैथ की शरण ले रहे हैं. उपचार की प्राचीन पद्धति को न समझने के कारण ही लोग आज आधुनिक चिकित्सकों के लिए सिर्फ कमाउं ग्राहक बन रहे हैं. इनके लिए मरीज, मरीज नहीं बल्कि एक ग्राहक हैं. ऐसा इसलिए भी संभव हो रहा है क्योंकि किसी भी रोग में तुरंत राहत के लिए लोग अंगेरजी दवा को ज्यादा प्रभावकारी मानने लगे हैं. लेकिन जानकार बताते हैं कि अंगेरजी दवा का जितना सकारात्मक प्रभाव है उतना ही उसका दूष्प्रभाव भी है. देखा जाये तो चिकित्सा जगत में सरकारी स्तर पर भी प्राचीन चिकित्सा पद्धति को उपेक्षित रखा गया है. तभी तो सरकारी चिकित्सा केन्द्रों पर आयुष्य चिकित्सको की बहाली होने के बावजूद मरीजों का इलाज अंग्रेजी दवाओं से किया जाता है. सरकारी अस्पतालों में मरीजों को देने के लिये पूर्व से निर्धारित जेनरिक दवा का ही प्रयोग करने को चिकित्सकों को निर्देश भी दिया जाता है. इन्ही सब कारणों से आज उपचार की प्राचीन पद्धति लुप्त होने के कगार पर है.

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