औरंगाबाद (कोर्ट): औरंगाबाद मंडल कारा के विचाराधिन बंदी अपने चरणबद्ध आंदोलन के तहत नंग-धड़ंग अवस्था में ही पेशी के लिए सिविल कोर्ट पहुंचे. सोमवार को पांच बंदियों को सुनवाई के लिए कोर्ट में पेश होना था और पूर्व में किये गये आह्वान के अनुसार ही आंदोलनरत ये बंदी नंग-धड़ंग अवस्था में कोर्ट गये.
नंग-धड़ंग अवस्था में पेशी के लिए बंदी कोर्ट में जैसे ही पहुंचे, लोगों के आकर्षण का केंद्र यही बन गये. हर कोई यह जानने की कोशिश में दिखा कि आखिर ये कैदी इस अवस्था में पेश होने के लिए कोर्ट क्यों पहुंचे. इन्हें देखने के लिए कोर्ट परिसर में भीड़ लग गयी. कोर्ट आये कैदी सिर्फ लुंगी में थे और माथे पर काली रंग की पट्टी बांध कर अपना विरोध जता रहे थे.
बंदियों का विरोध जताने का यह तरीका बेहद अलग था. शायद इसी कारण वहां मौजूद हर किसी के जुबान पर एक ही बात थी कि आखिर ये कैदी इस तरह के भेष-भूषा में कोर्ट क्यों आये. उल्लेखनीय है कि औरंगाबाद मंडल कारा के बंदी 20 सूत्री मांगों को लेकर पिछले 60 दिनों से चरणबद्ध तरीके से आंदोलन कर रहे हैं. आंदोलन के दौरान विचाराधिन बंदियों ने अलग-अलग समय में भोजन का त्याग भी किया और प्रतिदिन धरने पर भी बैठ रहे हैं. एक बंदी प्रमोद मिश्र ने रविवार से पानी व वाणी तक का त्याग कर दिया है.
इनकी मांगों में इरोम शर्मिला द्वारा जारी आमरण अनशन को सम्मानजनक वार्ता कर समाप्त कराने तथा सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफसपा) को रद करने, बिहार-झारखंड सहित सभी राज्यों में उग्रवादियों व आतंकवादियों के नाम सामाजिक, राजनीतिक व आरटीआइ कार्यकर्ताओं पर फर्जी मुकदमा दर्ज नहीं करने, देश के तमाम लंबित सिंचाई परियोजनाओं को अविलंब पूरा करने सहित अन्य शामिल है.
इधर 60वें दिन भी जारी धरना स्थल से बंदी रामाशीष दास ने कहा कि इतने लंबे समय से अनशन व आंदोलन जारी है. मगर सरकार व प्रशासन का कोई भी प्रतिनिधि सुध तक लेने नहीं पहुंचे. लेकिन देश के लोगों का यह लोकतांत्रिक अधिकार है. सभा में नथुनी मिस्त्री, मृत्युंजय मिश्र, छोटू रजक, बसंत मंडल आदि ने भी अपना वक्तव्य दिया. उन्होंने कहा कि अनशनकारी बंदी प्रमोद मिश्र की हालत बिगड़ती जा रही है, लेकिन उचित इलाज नहीं किया गया. यहां तक कि इनकी हालत जानने का प्रयास भी किसी ने नहीं की है.