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समाज में कोढ़ बन चुकी है दहेज प्रथा, हम सब मिल कर करें दूर

औरंगाबाद कार्यालय : शारदीय नवरात्र अपने अंतिम पड़ाव पर है. नवरात्र के आठवें दिन यानी महाअष्टमी को मां भगवती की पूजा बड़े ही धूमधाम के साथ की गयी. नवमी व दशमी तिथि को भी श्रद्धालु देवी का दर्शन करेंगे. श्रद्धालु भक्ति में डूबकर मां की पूजा अर्चना कर रहे है,पर आये दिन इन्हीं माताओं के […]

औरंगाबाद कार्यालय : शारदीय नवरात्र अपने अंतिम पड़ाव पर है. नवरात्र के आठवें दिन यानी महाअष्टमी को मां भगवती की पूजा बड़े ही धूमधाम के साथ की गयी. नवमी व दशमी तिथि को भी श्रद्धालु देवी का दर्शन करेंगे. श्रद्धालु भक्ति में डूबकर मां की पूजा अर्चना कर रहे है,पर आये दिन इन्हीं माताओं के साथ समाज से प्रताड़ना की खबरें भी आती है.

लोग मां भवगती की विभिन्न स्वरूपों की पूजा तो करते है,लेकिन समाज में महिलाओं को सम्मान नहीं मिल पाता है. यूं कहे कि एक तरफ जहां मंदिरों में मां शक्ति स्वरूपा दुर्गा,सरस्वती व लक्ष्मी की पूजा होती है वही घर की लक्ष्मी और शक्ति स्वरूपा प्रताड़ना का शिकार होती है.
कभी उस शक्ति को दहेज के लिए पीटकर घर से निकाल दिया जाता है तो कभी उसकी हत्या कर दी जाती है. ऐसे में हमारे समाज में कोढ़ बन चुकी दहेज प्रथा को हमे मिलकर समाप्त करना होगा. जिस दिन हम पूरे मन से शक्ति स्वरूपा को पूजने लगेंगे उस दिन प्रताड़ना का दौर भी खत्म हो जायेगा. इस मुद्दे पर प्रभात खबर ने कई गृहिणी,कामकाजी महिला के साथ-साथ समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे महिलाओं से बात की.
महिलाओं को हर क्षेत्र में आने की पूरी आजादी होना चाहिए. बेटियों को बेटों की तरह शिक्षा दी जानी चाहिए. समाज में दहेज मुक्त विवाद को बढ़ावा मिले और समाज का हर व्यक्ति दहेज का बहिष्कार करे.अपनी बेटी, बहन ,मां हो या दूसरे की सभी को समान नजरिये से देखना चाहिए. जब तक लड़कियों के प्रति समाज की सोच नहीं बदलेगी तब तक शक्ति स्वरूपा प्रताड़ित होते रहेगी.
श्वेता गुप्ता,पूर्व मुख्य पार्षद नगर पर्षद
आज महिलाएं व बेटियां शिक्षा,राजनीति,खेलकूद सहित विभिन्न क्षेत्रों में अपने प्रतिभा का डंका बजा रही है. इसका एक उदाहरण इसरो भी है. महिलाओं के सहयोग से देश अंतरिक्ष फतह करने के दिशा में बढ़ रहा है. इसके बावजूद समाज में महिलाओं पर पुरानी और रूढिवादी परंपराएं थोपी जाती हैं.
प्रियंका राज
महिलाएं श्रृष्टि की जननी है. बिना महिला के सृष्टि का सृजन संभव नहीं है.मंदिरों में मां की पूजा के साथ-साथ घरों में भी नारी का सम्मान होना चाहिए. जब घर की महिलाओं को सम्मान मिलेगा और वह अपराध से मुक्त होगी तो खुद मां प्रसन्न होगी और जगत का कल्याण होगा.पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी आगे आना होगा.
कंचन गुप्ता,समाजसेविका
हमारे समाज में आज भी महिलाओं को कमजोर और अबला समझा जाता है. महिलाएं रूढीवादी परंपराओं की बेड़ियों में जकड़ी हुई है. बच्चियों को गर्भ में ही मार दिया जा रहा है. दिन प्रतिनिधि पुरुष की अपेक्षा महिलाओं की संख्या घट रही है. ऐसे में अगर इस पर रोक नहीं लगी तो समाज बेटियों के लिए तरसेगा.जब महिलाओं के आदर सम्मान का भाव बढ़ेगा ,तब दुर्गा की उपासना का सार्थक फल प्राप्त होगा.
डिंपी सिंह,समाजसेविका
सरकार बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ का नारा देती है.भ्रूण हत्या ,दहेज प्रथा व बाल विवाह उन्मूलन की दिशा में लगातार जागरूकता अभियान चला रही है.इसके पीछे कारण है समाज में बदलाव लाना. जब तक हम इस बदलाव की दिशा में खुद काम नहीं करेंगे तब तक नारियों का सम्मान संभव नहीं है. महिलाओं को भी अपने हक का आवाज उठाना होगा.
संजू कुमारी, मुखिया करमा पंचायत दाउदनगर
हाल के दिनों में देश की बेटियो ने अपनी शक्ति का अहसास अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया है. हिमा दास,मैरीकॉम,पीवी संधू इसके उदाहरण है. पूर्व में भी पीटी उषा,सानिया मिर्जा, सायना मेहवाल, साक्षी मल्लिक ने अपनी प्रतिभा से यह अहसास कराया है कि उन्हें संरक्षण और सम्मान की जरूरत है..
शोभा सिंह, उप मुख्य पार्षद नगर पर्षद

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