औरंगाबाद कार्यालय : बिहार दिवस के अवसर पर प्रभात खबर की ओर से आयोजित शृंखलाबद्ध कार्यक्रम की कड़ी के पहले दिन शुक्रवार को ‘कैसे हासिल होगा बिहार का गौरव’ पर शहर के बुद्धिजीवियों ने खुल कर बातें कीं. परिचर्चा के दौरान उन्होंने बिहार के गौरवशाली अतीत को याद करते हुए वर्तमान में सामंजस्य बैठाने की कोशिश की.
बुद्धिजीवियों ने जहां एक ओर शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा व विक्रमशिला विश्वविद्यालय की चर्चा की, तो दूसरी ओर मौजूदा शिक्षा व्यवस्था पर तंज कसा. प्राचीन गौरव को हासिल करने के लिए एक बात पर जोर दिया कि जब तक अपनी संस्कृति, शिक्षा व सभ्यता के प्रति सकारात्मक विचार नहीं रखेंगे, तब तक इसे प्राप्त करना संभव नहीं होगा. कहा-शिक्षा व संस्कृति का नीचे गिरना राज्य के विकास में बड़ा अवरोधक है. इसे बचाने के लिए विचारों की स्वतंत्रता अनिवार्य है. बिहार के पुराने गौरव को
संस्कृति, शिक्षा व सभ्यता…
हासिल करने के लिए आपसी सामंजस्य बैठा कर सोचने की जरूरत है. जहां न कोई जाति, न कोई धर्म और न ही किसी संप्रदाय की बात हो.
बुद्धिजीवियों ने कहा कि अब की राजनीति विकास के लिए नहीं, बल्कि स्वविकास के लिए होती है. ऐसे में बिहार के गौरव को धरातल पर उतारना संभव नहीं है. साहित्यकार धनंजय जयपुरी ने कहा कि बिहार के विकास के लिए राजनेताओं को आम जनता के साथ मिल कर काम करने की आवश्यकता है. समाजसेवी देवी दयाल सिंह ने कहा कि बिहारवासियों को अपनी सोच में विकास को और मजबूत करना होगा.
शिक्षा के साथ-साथ उद्योगों का हो विस्तार
परिचर्चा में बुद्धिजीवियों ने शिक्षा के साथ-साथ उद्योगों के विस्तार पर अपनी राय रखी और कहा कि आज बिहार को विकास की काफी जरूरत है. बिहार-झारखंड बंटवारे के बाद खनिज संपदा झारखंड के हिस्से में चला गया और बिहार को कुछ हासिल हुआ, तो सिर्फ बालू और लोगों का झुंड.
शिक्षा के साथ-साथ…
पूर्व जिप अध्यक्ष राघवेंद्र प्रताप नारायण सिंह ने शिक्षा की समानता की चर्चा करते हुए कहा कि एक शिक्षित समाज ही राज्य और राष्ट्र को संपन्न कर सकता है.
बिहार के बदलाव पर औरंगाबाद में हुई परिचर्चा
गौरवशाली अतीत को फिर से हासिल करने पर हुई बात
मौजूदा व्यवस्था पर कसा गया तंज
बिहार के गौरवशाली इतिहास को बरकरार रखने के लिए सबसे पहले जरूरी है िक गांवों का विकास हो, तभी शहर और राज्य विकसित हो सकेंगे.
आरक्षण को समाप्त करना होगा. यह व्यवस्था सबसे बड़ा बाधक है.
बिहार में बहुत अंतर आया है और विकसित हो चुका है. लेकिन, बिहार में जो स्थापित हो रहे हैं, वे उतने ही तेजी से विस्थापित भी होते जा रहे हैं.