एक ट्रेन से बचा, तो दूसरी के आगे कूद कर आत्महत्या
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सुसाइड प्वाइंट बना रफीगंज स्टेशन के पास का क्षेत्र, 14 माह में 20 ने दी जान
एक ट्रेन से बचा, तो दूसरी के आगे कूद कर आत्महत्या रफीगंज स्टेशन के पोल नंबर 508 के समीप 4 मार्च 2018 को एक ऐसा मामला प्रकाश में आया,जिसने सुनने के बाद रोंगटे खड़े कर दिये. एक पुरुष उस जगह पर पहुंचा और ट्रेन को आते देख आत्महत्या के नीयत से दो पटरियों के बीच […]
रफीगंज स्टेशन के पोल नंबर 508 के समीप 4 मार्च 2018 को एक ऐसा मामला प्रकाश में आया,जिसने सुनने के बाद रोंगटे खड़े कर दिये. एक पुरुष उस जगह पर पहुंचा और ट्रेन को आते देख आत्महत्या के नीयत से दो पटरियों के बीच सो गया. ट्रेन उसके ऊपर से गुजर गयी और वह बच निकला. कुछ ही क्षण बाद आ रही एक अन्य ट्रेन के सामने अचानक खड़ा हो गया और फिर उसकी मौत हो गयी. यह घटना प्रत्यक्षदर्शियों के कारण चर्चा में रही. ये अलग बात है कि रेलवे पुलिस इसे हादसा करार दे रही है.
तीन बच्चों के साथ ट्रेन के सामने कूद कर दी जान
रफीगंज रेलवे स्टेशन के समीप वाला इलाके को डेथ जोन के रूप में तब्दील होने का प्रमाण 4 अगस्त 2017 को मिला था. सलैया थाना क्षेत्र के शिवा बिगहा टोले डोमन बिगहा गांव के एक महिला ने अपने सास से विवाद कर तीन मासूम बच्चों के साथ पूर्वी केबिन के समीप ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली थी. उस वक्त उसका पति रंजीत यादव दिल्ली में था.
आत्महत्या का यह मामला कई दिनों तक सुर्खियों में रहा. विवाद कैसे हुई और किस तरह से हुई यह स्पष्ट नहीं हो सका. जीआरपी ने मामले को दर्ज कर अनुसंधान की कार्रवाई पूरी की थी.
आक्रोश मनुष्य को काल का ग्रास बना देता है. आज के दौर में जिस तरह से हिंसक प्रवृत्ति आम लोगों में बढ़ रही है, वह चिंता का विषय है. व्यक्तिगत लड़ाई-झगड़े, रूठना, भटकना, गाली-गलौज या मारपीट तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि हत्या व आत्महत्या तक पहुंच जाते हैं. पुलिस और कोर्ट की हालिया रिपोर्ट के अनुसार विश्व में हिंसा की आग तेजी से बढ़ रही है और मनुष्य लगातार आक्रामक होते जा रहा है. यही कारण है कि थोड़े से आक्रोश में आत्महत्या तक को गले लगा लेता है.
औरंगाबाद : रफीगंज व इस्माइलपुर स्टेशन के बीच का इलाका सुसाइड/डेथ प्वाइंट के रूप में बदलता जा रहा है. पिछले चार दिनों में यानी 28 फरवरी से लेकर 4 मार्च तक इस जगह पर चार लोगों की मौत ट्रेन से कट कर हुई है और इस घटना में दो लोगों की आत्महत्या का मामला प्रकाश में आया है. वैसे, अगर एक जनवरी 2017 से चार मार्च 2018 तक यानी 14 माह देखें, तो 20 महिला व पुरुषों ने सिर्फ पूर्वी केबीन और मई गुमटी के बीच अपनी जान गंवायी है.
इसमें आधे से अधिक लोगों ने घरेलू आक्रोश में आत्महत्या की है. सबसे बड़ी बात यह है कई लोगों की पहचान तक नहीं हुई. कई ऐसे भी मामले सामने आये जब परिवार वाले ट्रेन से कटने के बाद शव लेकर फरार हो गये. आरपीएफ इंस्पेक्टर सत्येंद्र कुमार की माने तो आत्महत्या का मामला सामने आता है, पर लोग कुछ भी कहने से बचते रहते हैं.
जिन जगहों पर ऐसी घटनाएं होती हैं उन जगहों पर जीआरपी गंभीरता से ध्यान देती है. सबसे बड़ी बात यह है कि मौत को गले लगाने के लिए गुस्साए लोगों को रेलवे पटरी बहुत जल्द दिख जाता है. 2017 पांच जनवरी से लेकर 18 जनवरी के बीच एक महिला और दो पुरुष, चार फरवरी से 13 फरवरी के बीच एक महिला और एक पुरुष, दो जून से 27 सितंबर के बीच तीन महिला, तीन बच्चे और एक पुरुष व 28 फरवरी से लेकर 4 मार्च 2018 तक एक महिला व तीन पुरुषों ने अपनी जान गंवायी है.
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