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गांधी की रोजगारपरक शिक्षा पर लगा ग्रहण

विश्वनाथ पांडेय कुटुंबा : प्रखंड के रामपुर में स्थापित बेसिक स्कूल भी अब शिक्षा का सामान्य केंद्र बना कर रह गया है. इस स्कूल में अब पहले की तरह बच्चों को कृषि और अन्य तकनीकों की शिक्षा नहीं दी जाती है. चरखे और तकली स्कूल के कबाड़खाने की शोभा बढ़ा रही है. पहले इस स्कूल […]

विश्वनाथ पांडेय

कुटुंबा : प्रखंड के रामपुर में स्थापित बेसिक स्कूल भी अब शिक्षा का सामान्य केंद्र बना कर रह गया है. इस स्कूल में अब पहले की तरह बच्चों को कृषि और अन्य तकनीकों की शिक्षा नहीं दी जाती है. चरखे और तकली स्कूल के कबाड़खाने की शोभा बढ़ा रही है. पहले इस स्कूल में कृषक के साथ-साथ अन्य तकनीकों की शिक्षा दी जाती थी.

यहां मिलने वाली शिक्षा की बात ही कुछ और होती थी.महात्मा गांधी की परिकल्पना पर आधारित इस स्कूल में पढ़ने वाले छात्र एक ओर जहां रोजगारपरक शिक्षा ग्रहण कर व्यावहारिक जीवन में इसका उपयोग करते थे. वहीं दूसरी ओर इनमें संस्कार भी कुट-कुट कर भरा होता था जिससे उनका सामाजिक जीवन सुखमय होता था. आज बेसिक स्कूल में ये सारी गतिविधियां मर गयी है.

जरूरी है रोजगारपरक शिक्षा : रोजगारपरक शिक्षा छात्रों के लिए कितनी जरूरी है ये तो वे ही जानते हैं जिन्हें सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी रोजगार नहीं मिलता और वह मारे-मारे फिरते है. वह न घर के रह जाते है और न घाट के. नौकरी न मिलने की स्थिति में समान्य शिक्षा से प्राप्त डिग्रियां किसी काम की नहीं रह जाती. आज के छात्रों को भी यदि इन छात्रों को भी चरखा चलाने, सूत काटने व खेती करने समेत अन्य कुटीर उद्योगों की शिक्षा दी जाती तो ये छात्र भी सड़क पर मारे नहीं फिरते, तभी तो महात्मा गांधी ने रोजगारपरक शिक्षा की कल्पना की थी और स्कूलों में इसकी व्यवस्था की बात कही थी.

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