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मोटी कमाई का जरिया बना प्ले स्कूल!

बच्चों की सुरक्षा के लिए मापदंड तय नहीं औरंगाबाद सदर : शहर में प्ले स्कूल खुलने की रफ्तार देख कर कहा जा सकता है कि इससे ज्यादा मुनाफे वाला धंधा कोई दूसरा नहीं. इन स्कूलों के लिए कोई अलग नियम कानून न होने के कारण इन पर किसी का नियंत्रण नहीं दिखता. इसलिए शहर में […]

बच्चों की सुरक्षा के लिए मापदंड तय नहीं

औरंगाबाद सदर : शहर में प्ले स्कूल खुलने की रफ्तार देख कर कहा जा सकता है कि इससे ज्यादा मुनाफे वाला धंधा कोई दूसरा नहीं. इन स्कूलों के लिए कोई अलग नियम कानून न होने के कारण इन पर किसी का नियंत्रण नहीं दिखता. इसलिए शहर में मनमर्जी से प्ले स्कूल चल रहा है. इसी मुद्दे पर सोमवार को शहर के कुछ बुद्धिजीवियों के साथ प्रभात खबर ने संगोष्ठी आयोजित कर बात की. इसमें बुद्धिजीवी व अभिभावकों ने कहा कि बड़े निजी स्कूल शिक्षा के नाम पर अभिभावकों का दोहन तो कर ही रहे थे,
अब इस कड़ी में प्ले स्कूल भी जुड़ गया है. अभिभावकों ने यह भी कहा कि अब प्ले स्कूलों में बच्चे कम उम्र में ही बैठने उठने का सलीका सीखते हैं. खेल व मनोरंजन में पढ़ाई की आदत डाली जाती है. उन्हें स्कूल के तौर-तरीके व कायदे सिखाए जाते हैं. लेकिन शायद ही शहर के किसी प्ले स्कूल में यह होता हो. यही नहीं सुरक्षा की बात की जाए तो इन स्कूलों के गार्ड और शिक्षक भी अनट्रेंड होते है. ज्यादातर प्ले स्कूल में बच्चे 3 से 4 घंटे दिन काटने के लिए जाते हैं.
और इसके एवज में अभिभावकों को चुकाने पड़ते हैं प्ले स्कूलों के तय किये गए मुंहमांगी फीस. बच्चों की सुरक्षा व शिक्षा व्यवस्था को लेकर अभिभावकों ने गुरुग्राम की घटना का भी जिक्र किया और शहर के कुछ खास स्कूलों पर चर्चा भी की. साथ ही बच्चों की सुरक्षा के लिए अभिभावक संघ के निर्माण की नींव रखने की बात भी कही गयी. संगोष्ठी में करीब एक दर्जन से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया.
बुद्धिजीवियों ने रखी अपनी राय
औरंगाबाद शहर में ऐसे करीब एक दर्जन प्ले स्कूल हैं, जो बच्चों के मनोरंजन सुरक्षा और संस्कार के नाम पर अभिभावकों को लूट रहे हैं. इन स्कूलों में वार्षिक फीस 20 से 25 हजार रुपये तक है,और इसके अलावे 15 से 20 हजार रुपये नामांकन के समय लिये जाते हें. लेकिन बच्चों की सुरक्षा को लेकर इन स्कूलों में कोई खयाल नहीं रखा जाता. निजी स्कूलों पर लगाम लगाने के लिए बच्चों के भविष्य के लिए औरंगाबाद जिले में एक अभिभावक संगठन का होना बहुत जरूरी है. जिसकी नींव रखने का प्रयास किया जा रहा है.
ओमप्रकाश सिंह, पूर्व एमएलसी प्रत्याशी सह शिक्षक
प्ले स्कूल इतनी कमाई कर रहे हैं लेकिन यहां कोई नियम नहीं है. अधिकतर स्कूल रिहायशी इलाके में चल रहे हैं. इनमें छोटे-छोटे कमरे, उनमें बेहद घटिया क्वालिटी का फर्नीचर और खिलौनों के नाम पर कुछ खास नहीं होता. छोटे बच्चों की सुरक्षा सबसे जरूरी होती है. लेकिन यहां सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम नहीं हैं. अगर कोई हादसा होता है तो प्रशासन ही इसके लिए जिम्मेदार होगा. क्योंकि स्कूल मालिक पर तो कोई नियम-कानून लागू ही नहीं होता है. यही नहीं प्री प्ले स्कूल के नाम पर ये स्टैंडर्ड वन व टू तक की शिक्षा विद्यालय में उपलब्ध करा रहे है.
अशोक कुमार पांडेय, शिक्षक सह अभिभावक
स्कूल खोलने के लिए नियम हैं पर छोटे बच्चों के स्कूल के लिए कोई नियम नहीं है. जगह कितनी हो, कमरे कैसे हों, माहौल कैसा हो, ट्रेंड स्टाफ हो या नहीं, खिलौने कैसे हों, बच्चों की देखभाल के लिए आया है या नहीं. इस तरह का कोई नियम इन पर लागू नहीं होता है. क्योंकि प्रदेश सरकार के पास प्ले स्कूल के लिए कोई नियम-कायदा नहीं है. प्ले स्कूल के नाम पर लोग मनमानी करते हैं और मनचाही फीस वसूलते हैं. इतना ही नहीं, इसके लिए फीस क्या होगी, बच्चों को सुविधा कैसी मिले, छोटे बच्चों की सुरक्षा को लेकर क्या उपाय हों, इसकी कोई बंदिश नहीं है.
जहांगीर आलम, व्यवसायी सह अभिभावक
बच्चों की सुरक्षा की जवाबदेही स्कूल प्रशासन की होनी चाहिए. आम तौर पर शहर में चल रहे दर्जनों स्कूल अपने दायित्व से पीछे भागते है. अभिभावकों को ऐसे स्कूल कस्टमर समझते हैं. निजी स्कूलों की तरह प्ले स्कूल के लिए भी नियम होने चाहिए और इसकी सुरक्षा व व्यवस्था पर जिला प्रशासन को सुधि लेनी चाहिए.
अमित भास्कर,अभिभावक सह शिक्षक
प्ले स्कूल नया काॅन्सेप्ट है और इसमें इनडोर सुविधाएं बच्चों को दी जाती है, लेकिन इस पूरे सिस्टम में सुरक्षा की कहीं कोई व्यवस्था नहीं दिखती. ट्रांसपोर्टिंग की सुविधा भी बेहद कमजोर है और बच्चों को स्कूल में चार से पांच घंटे रख कर भी कोई इम्प्रूवमेंट नहीं दिखता. शहर के प्ले स्कूल से अभिभावक संतुष्ट नहीं हैं.
सुनील कुमार, व्यवसायी सह अभिभावक
अभिभावक अपने बच्चों को जब स्कूल भेजते हैं तो यह सोचते हैं कि उनका बच्चा कुछ पढ़ने व सीखने जा रहा है और यह मानकर चलते हैं कि उनका बच्चा सुरक्षित होगा पर असल में ऐसा होता नहीं है. सवाल बच्चों की सुरक्षा का है. गुरुग्राम व दिल्ली की घटना ने पहले ही अभिभावकों में डर पैदा कर चुकी है. इसके बावजूद भी निजी स्कूलों में सुरक्षा को लेकर बरती जा रही लापरवाही से अभिभावक परेशान हैं. स्थानीय निजी स्कूलों में भी कई तरह की घटनाएं घट चुकीं हैं.
अमरेश कुमार, युवा नेता भाजपा सह अभिभावक

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