औरंगाबाद सदर : औरंगाबाद सदर अस्पताल में शनिवार की दोपहर लगभग आधे दर्जन वार्डों का प्रभात खबर की टीम ने निरीक्षण किया. अस्पताल के मेल वार्ड, फिमेल वार्ड, नशा मुक्ति, इमरजेंसी, एसएनसीयू सहित अन्य वार्डों का निरीक्षण किया गया.
दोपहर के करीब दो बज रहे थे और सभी कर्मी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त थे. इस बीच इन वार्डों में जाकर अचानक से ऑक्सीजन के बारे में पूछताछ शुरू की गयी. लेकिन, जो बातें सामने आयीं, वह बेहद चौंकानेवाली थीं. सदर अस्पताल में ऑक्सीजन रहते उसे ऑपरेट करने की जानकारी बहुत कम स्वास्थ्यकर्मियों में है.
केवल एसएनसीयू में सिलिंडर को ऑपरेट करना जानते हैं कर्मचारी : सदर अस्पताल की पूरी विधि-व्यवस्था को देखने के बाद जब अस्पताल परिसर में बने एसएनसीयू विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाई का निरीक्षण किया गया, तो इसकी व्यवस्था देख आश्चर्य हुआ.
यहां नवजात शिशुओं के लिए ऑक्सीजन की जो व्यवस्था बनायी गयी है, उसे देख कर ऐसा लगा जैसे यह औरंगाबाद सदर अस्पताल का इकाई ही नहीं है. सारे कर्मी मैन्यूअल व ऑटोमैटिक दोनों तरह के ऑक्सीजन के मशीनों को बखूबी चलाना जानती है और यहां कार्यरत नर्सों ने पूरे इकाई की जानकारी बड़ी अच्छे तरीके से उपलब्ध करा दी. अस्पताल के प्रबंधक हेमंत राजन ने बताया कि यहां टू टॉयर की व्यवस्था बनायी गयी है. उन्होंने बताया कि अस्पताल में ऑक्सीजन सिलिंडर उपलब्ध तो है ही, खासकर इस एसएनसीयू वार्ड में ऑक्सीजन कान्सीट्रेटर लगाया गया है, जो ऑक्सीजन नहीं रहने की स्थिति में हवा से ही ऑक्सीजन बनाने के लिए कार्य करता है.
लापरवाह कर्मचारियों पर की जायेगी कार्रवाई
सदर अस्पताल में ऑक्सीजन सिलिंडर पर्याप्त रूप से उपलब्ध है. किसी भी मरीज को ऑक्सीजन के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है. रही बात स्वास्थ्यकर्मियों की जानकारी की तो पुरुष व महिला सभी स्वास्थ्यकर्मियों को ऑक्सीजन खोलने व अन्य उपकरणों के संचालन की जानकारी है, लेकिन उनमें लापरवाही की भावना अस्पताल को बदनाम कर रही है. इस तरह की लापरवाही अगर बरती गयी है, तो वैसे स्वास्थ्यकर्मियों पर कार्रवाई की जायेगी.
डाॅ राज कुमार प्रसाद, उपाधीक्षक, सदर अस्पताल, औरंगाबाद
सिलिंडर खोलने के लिए खोजे जाते हैं ईंट-पत्थर
मेल वार्ड की नर्सों से जब ऑक्सीजन चालू करने की बात कही गयी, तो सबसे पहले कई तरह के बहाने बनाये गये. उसके बाद ऑक्सीजन सिलेंडर खोलनेवाली चाबी व ईंट पत्थर को लेकर तमाशा खड़ा हुआ और जब नर्सों से ऑक्सीजन नहीं खुल सका, तो अस्पताल के पदाधिकारी ने उसे खोल कर बताया. नर्सों ने यह भी बहाना बनाया कि अस्पताल के कोई भी ऑक्सीजन सिलेंडर बिना ईंट,पत्थर के ठोकने से नहीं खुलते. हालांकि इस पर स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारी ने आपत्ति जतायी और तुरंत चाबी लगा कर ऑक्सीजन चालू करते हुए उसके फ्लो को दिखलाया.
ऑक्सीजन चालू करने में लग जाते हैं 20 मिनट
इसके बाद नशामुक्ति केंद्र में रखे सिलेंडर की जांच भी की गयी, लेकिन यहां भी स्वास्थ्यकर्मियों की अजीबोगरीब हरकत चौंकानेवाली थी. नशामुक्ति केंद्र में कार्यरत आरती देवी व युगल किशोर को जब ऑक्सीजन चालू करने की बात कही गयी, तो उन्हें चाबी ढूंढने में लगभग 15 मिनट लग गये. बाद में अस्पताल के पदाधिकारी ने ही चाबी ढूंढी और ऑक्सीजन खोलने को कहा, लेकिन इन दोनों स्वास्थ्यकर्मियों को ऑक्सीजन खोलने तक नहीं आया. इन्हें परेशान होता देख अस्पताल के पदाधिकारी ने ही खोल कर ऑक्सीजन के बारे में जानकारी दी. इस तरह एक ऑक्सीजन सिलिंडर को खोलने में करीब 20 मिनट लग गये.
इमरजेंसी वार्ड का भी है बुरा हाल
सदर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड की स्थिति भी कुछ इन्हीं वार्डों जैसी है. ऑक्सीजन करीब हर जगह उपलब्ध पाये गये. उसके रखरखाव की स्थिति भी ठीकठाक मिली, लेकिन एक बात हर जगह सामान्य रूप से दिखी. वह यह कि सदर अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मियों में असावधानी और उपेक्षा व्याप्त है. जान कर भी लोग इमरजेंसी को नहीं समझते.
सदर अस्पताल के चिकित्सकों ने बताया कि अगर एक मरीज को तीन मिनट के अंदर ऑक्सीजन नहीं लगाया जाता है, तो उसकी मृत्यु हो सकती है. ऐसे में 20 मिनट तो बहुत ज्यादा है. इन सारे स्थितियों को देख कर यह तय है कि सदर अस्पताल में ऑक्सीजन के रहते मरीजों की मौत पक्की है, जहां एक साथ इतने लोग लापरवाह हैं, वहां मरीजों का जीवन बचना कैसे संभव हो सकता है.