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रात के समय में बढ़ जाता है पावर कट

विद्युत उपभोक्ताओं को नियमित बिजली आपूर्ति कराने के मामले जिला विद्युत विभाग सिरे से नाकाम साबित हो रहा है. गलत बिजली बिल, मीटर रीडिंग की खामियां व उपभोक्ताओं की अन्य शिकायतों के साथ-साथ जिले भर में कम वोल्टेज और अनियमित बिजली आपूर्ति की समस्या हर दिन गहराती जा रही है. एक तो बिजली लोगों को […]

विद्युत उपभोक्ताओं को नियमित बिजली आपूर्ति कराने के मामले जिला विद्युत विभाग सिरे से नाकाम साबित हो रहा है. गलत बिजली बिल, मीटर रीडिंग की खामियां व उपभोक्ताओं की अन्य शिकायतों के साथ-साथ जिले भर में कम वोल्टेज और अनियमित बिजली आपूर्ति की समस्या हर दिन गहराती जा रही है. एक तो बिजली लोगों को कम समय के लिए मिल रहा है. इस पर वोल्टेज कम रहने से इसकी उपयोगिता बेहद कम हो जाती है. इतना ही नहीं बार-बार होने वाले पावर कट से भी लोग परेशान हैं. बिजली संबंधी लोगों की समस्या रात में और भी ज्यादा हो जाती है. अमूमन पावर कट होने के बाद कई घंटों तक लोग बिजली के लिये तरस जाते हैं.
जरूरत के मुताबिक जिले को नहीं मिलती बिजली
हाल के दिनों जिले में विद्युत उपभोक्ताओं की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है. इससे विभागीय राजस्व में तो इजाफा हुआ ही है. साथ में बिजली की मांग और उपयोगिता भी काफी बढ़ गयी है. जिला विद्युत राजस्व पदाधिकारी तपश कुमार के मुताबिक जिले में कुल एक लाख 87 हजार बिजली उपभोक्ताओं हैं. इससे करीब चार करोड़ का राजस्व विभाग को प्रति माह प्राप्त होता है. खास बात ये कि इतनी बड़ी रकम राजस्व के रूप में अदा करने के बाद भी जिले के विद्युत उपभोक्ता को नियमित बिजली की आपूर्ति नहीं हो पाती है.
विभागीय सूत्रों की मानें तो उपयोगिता के लिहाज से जिला विद्युत विभाग को काफी कम मात्रा में बिजली प्राप्त होती है.
ऐसे में नियमित बिजली की आपूर्ति विभाग के लिये किसी चुनौती से कम नहीं है. जानकारी मुताबिक जिले को प्रति माह करीब 50 मेगावाट बिजली की जरूरत है. इसमें विभाग को महज 20 से 25 मेगावाट बिजली ही मिल पाती है. खास कर पिक आवर यानि रात के समय जरूरत के हिसाब से काफी कम बिजली ही विभाग को मिल पाता है. विभाग को प्राप्त बिजली उपभोक्ताओं की संख्या के आधार पर फारबिसगंज और अररिया अनुमंडल में बांटा जाता है. इसमें अररिया अनुमंडल को 10 से 12 मेगावाट और फारबिसगंज को 14 मेगावाट बिजली मिलती है.
पावर स्टेशन भी झेलते हैं बिजली की किल्लत
पर्याप्त मात्रा में बिजली उपलब्ध नहीं होने की वजह से लोड सेडिंग के जरिये अलग अलग फीडर को बिजली आपूर्ति की जाती है. यही वजह है कि एक इलाके के घरों में अगर बिजली रहती है तो इससे सटे दूसरे इलाके के लोग अंधेरे में रहने को बाध्य होते हैं. पावर सब स्टेशन को भी बिजली की भारी कमी झेलनी पड़ती है. जानकारी मुताबिक कुर्साकांटा पावर सब स्टेशन को पिक आवर में साढ़े तीन मेगावाट बिजली की जरूरत होती है. इसमें उसे महज डेढ़ मेगावाट बिजली ही मिल पाती है. इससे क्षेत्र के अधिकांश इलाकों में बिजली की किल्लत हमेशा बनी रहती है. यही हाल जोकीहाट का भी है. जोकीहाट फीडर के अंतर्गत चार पावर सब स्टेशन हैं. इसी सीरिज की लाइन से कुसियारगांव, टेड़गाछ, जोकीहाट, बैरगाछी सहित अन्य इलाकों में बिजली की सप्लाई की जाती है. इतने बड़े क्षेत्र में बिजली की सप्लाई के लिए छह से आठ मेगावाट बिजली की जरूरत है. इसमें मात्र तीन मेगावाट बिजली ही उपलब्ध हो पाता है.
क्षमता से अधिक लोड है कम वोल्टेज की वजह
शहरी सहित ग्रामीण इलाकों में कम वोल्टेज की समस्या के पीछे जानकार एक ट्रांसफर्रमर पर क्षमता से अधिक लोड को वजह मानते हैं. जानकारों की मानें तो कई जगहों पर उपभोक्ताओं की संख्या काफी बढ़ गयी है. जबकि इस लिहाज से ज्यादा क्षमता वाले ट्रांसफारमर वहां नहीं लगाये गये हैं. इस वजह से वहां कम वोल्टेज की समस्या खड़ी हो गयी है. बिजली विभाग के एसडीओ अक्षय कुमार सिन्हा के मुताबिक कम वोल्टेज के लिये थर्मल पावर जहां से बिजली की आपूर्ति की जा रही है में खराबी भी मूल रूप से जिम्मेदार है.
सहायक अभियंता के मुताबिक अगर पांच थर्मल पॉवर यूनिट से जिले को बिजली की आपूर्ति हो रही हो. अचानक एक या अधिक यूनिट में खराबी आ जाये तो इससे कम वोल्टेज की समस्या खड़ी हो जाती है.

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