अररिया : कमोबेश तीन दशक तक लालटेन युग में जीने को विवश जिले के पुरंदाहा गांव वासी अब एक बार फिर राहत की सांस ले रहे हैं. क्योंकि अब दिन डूबते ही गांव में अंधेरे का साम्राज्य नहीं कायम हो जाता है. दिन ढलते ही लोग लालटेन व चिराग नहीं ढूंढने लगते. केरोसिन तेल की मारा मारी भी वैसी नहीं रहती.
बल्कि शाम होते ही लोग स्विच दबा कर बिजली का बल्ब जला लेते हैं. अब गांव में बिजली आ गयी है. पर इस बिजली के लिए गांव वासियों को तीन दशक तक इंतजार करना पड़ा. इस दौरान विद्युत आपूर्ति बहाली के लिए आंदोलन भी हुए. लोगों का कहना है कि 1987 में गयी बिजली अब दोबारा आयी है.गांव की विद्युत समस्या की जानकारी देते हुए पूर्व जिला पार्षद इश्तियाक आलम, पंचायत समिति सदस्य मो मोईन, पूर्व मुखिया मो मुन्ना के अलावा डॉ सरवर आलम सहित अन्य ग्रामीणों ने बताया कि वर्ष 1987 की बाढ़ में गांव की विद्युत व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गयी थी.
उसके बाद दर्जनों बार प्रयास हुए. आंदोलन किया गया. सड़क जाम किया गया. विभागीय अधिकारियों को कई आवेदन दिये गये. समाचार पत्रों ने भी बार-बार गांव की इस समस्या को प्रमुखता से छापा. तब जाकर सरकार व प्रशासन ने सुधि ली. वहीं गौर तलब है कि जिला मुख्यालय से महज 10 से 12 किलोमीटर दूर फारबिसगंज के डोरिया सोनापुर पंचायत के पुरंदाहा गांव की विद्युत समस्या को प्रभात खबर ने कई बार प्रमुखता से छापा था. अन्य समाचार पत्रों ने भी इसे जगह दी थी.
बताया गया कि चुनाव के समय अक्तूबर माह के अंतिम सप्ताह में आखिरकार गांव वालों ने अपने सपने को साकार होते देखा. विद्युत आपूर्ति शुरू होने के बाद लोग काफी राहत महसूस कर रहे हैं. लोग कनेक्शन ले रहे हैं.
घरों में बल्ब जलने शुरू हो गये हैं. टीवी भी लग रहे हैं.बताया गया कि सबसे बड़ी बात ये कि बच्चों को शाम की पढ़ाई में सहूलत हो गयी है. गांव की सड़कों के खंभों पर भी बल्ब जलने से रास्तों पर रोशनी रहती है. कहीं आने जाने में आसानी होती है. बताया गया कि हाल ही में गांव में एक शादी थी. लेकिन बिजली रहने के कारण जेनेरेटर का खर्च बच गया.