उन्होंने कहा कि प्राणियों के प्रति अहिंसा की भावना अभय दान है. साधु को दान देना संपत्ति दान है. गृहस्थ साधु को दान देते हैं. वहीं साधु भी साधु को दान देते हैं. उन्होंने कहा कि आदमी का हाथ दान से शोभित होता है कंगन से नहीं. कंगन से हाथ की बाध्य शोभा बढ़ती है, गुणात्मक शोभा तो दान से बढ़ती है.
दान करना हर व्यक्ति से संभव नहीं होता बल्कि जिसमें परोपकार, कर्तव्य, सेवा, उदारता इत्यादि की भावना होती है, वहीं व्यक्ति दान कर सकता है. दान का आध्यात्मिक और लौकिक दोनों महत्व होता है. दान केवल पदार्थ का ही नहीं ज्ञान का भी होता है. हमारे यहां वाच कर सीखने की परंपरा रही है. ज्ञान के साथ विनय भाव अपेक्षित होता है और ज्ञान दाता के प्रति विनय रखना चाहिए. छोटे-छोटे बाल साधु साध्वियों का जिक्र करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि वे कोमल होते हैं. उनकी पूरी देखभाल होनी चाहिए. बाल पीढ़ी का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि वे भविष्य में संघ की सेवा व प्रचार प्रसार करेंगे.
बाल साधु साध्वी संघ की संपदा है, जिनकी सुरक्षा करना संरक्षकों का दायित्व है. वहीं प्रवचन को संबोधित करते हुए संघमहा निर्देशिका साध्वी प्रमुखा महाश्रमणी कनक प्रभा जी ने कहा कि नैतिकता और अध्यात्म धर्म का आधार होता है. प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के साथ प्रामाणिक रहते हुए नैतिक मूल्यों के प्रति आस्थावान रहना चाहिए. प्रवचन के पश्चात आचार्य प्रवर ने हाजरी का वाचन कराया. बता दें कि हाजरी तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य द्वारा करायी जाने वाली एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो प्रत्येक चतुर्दशी के अवसर पर वॉची जाती है. हाजरी के समय आचार्य प्रवर के पास सभी साधु-साध्वियों की उपस्थिति अनिवार्य रहती है. हाजरी में आचार्य प्रवर द्वारा धर्मसंघ की मर्यादाओं का वॉचन करते हुए सभी साधु साध्वियों समणियों के साथ श्रवक श्रविकाओं को भी धर्मसंघ की मर्यादा के अनुरूप मर्यादित व अनुशासित रहने की प्रेरणा दी जाती है. हाजरी के पश्चात साध्वी विशाल प्रभा जी व साध्वी प्रफुल्ल प्रभा जी ने लेख पत्र का समुच्चरण किया. कार्यक्रम का समापन आचार्य प्रवर के मंगल पाठ से हुआ. उपरोक्त जानकारी प्रवास व्यवस्था समिति के मीडिया प्रभारी जयप्रकाश घोड़ावत ने दी है.