प्रभात खबर टोली
बिहार के प्राथमिक विद्यालयों की असली तसवीर क्या है? इस सवाल पर अब तक धारणाओं के आधार पर ही सारी बाती कही जाती रही हैं. वहां पढ़ाई नहीं होती, शिक्षक नहीं पहुंचते, बच्चे खेलते रहते हैं. मिड-डे मील ठीक से नहीं मिलता.
मगर अब आपको इस बारे में धारणाओं के आधार पर बातें करने की जरूरत नहीं, क्योंकि हम पहली दफा राज्य के प्राथमिक विद्यालयों की असली तसवीर पेश कर रहे हैं. हमारी टीम शुक्रवार, 21 नवंबर को एक साथ राज्य के 34 जिलों के 376 प्रखंडों के 376 अलग-अलग स्कूलों में पहुंची और वहां का जायजा लिया.
इस लाइव रिपोर्ट के जरिये हमने स्कूल की हालात को आंकड़ों में भी पेश करने की कोशिश की है और जो जिस रूप में देखा उसे उस रूप में पेश कर दिया है. इस रिपोर्ट में हमने स्कूलों में शिक्षकों की हाजिरी, छात्रों की उपस्थिति, संसाधन के हालात, मिड-डे मील की गुणवत्ता, शौचालय की सुविधाएं, खेल के मैदान आदि तमाम पहलुओं का जायजा लिया है.
केस-1
स्कूल कैंपस में धान की बोरियां
प्राथमिक विद्यालय, मियां बेरो (हाजीपुर)
एक कमरे में पहले वर्ग, दूसरे में दूसरे और तीसरे वर्ग में तीन, चार और पांच के छात्र एक साथ शोर-गुल कर रहे थे. उपस्थिति पंजी बता रही थी कि स्कूल में 85 बच्चे हाजिर हैं, लेकिन हमें 28 मिले. चापाकल के पास कीचड़ था. शौचालय में ताला बंद था. परिसर में ही ग्रामीणों ने धान का बोझा रख दिया था. चखना पंजी का कहीं अता-पता नहीं था. पकी चावल और चने की सब्जी थी, सब्जी में चना ढूंढे नहीं मिल रहा था. किचेन शेड तो था, लेकिन वहां गंदगी का अंबार है. बच्चे बिना ड्रेस के मैले कुचैले कपड़ों में ही उपस्थित थे.
केस-2
शौचालय को बना दिया किचेन
प्राथमिक विद्यालय, भागीचक (मुंगेर)
एक ही कमरे में कक्षा तीन, चार और पांच के छात्रों को दो शिक्षक एक ही साथ पढ़ा रहे थे. किचेन शेड नहीं होने की हालत में वहां अनोखी व्यवस्था ईजाद की गयी. शौचालय के लिए बने कमरों में से एक को ही किचेन बना दिया गया था. वहीं मिड-डे मील पक रहा था.
सरकार का दावा
कुल प्राथमिक विद्यालय- 1,16,293
नियोजित शिक्षक- 3.28 लाख
स्थायी शिक्षक- 1 लाख
शिक्षकों की कमी- तकरीबन 2 लाख
शौचालय विहीन स्कूल- 17,500
भवन विहीन स्कूल- 8,000
किचेन शेड विहीन स्कूल- करीब 12,000
बिजली विहीन स्कूल- करीब 33,000
चापाकल- 90 फीसदी स्कूलों में
फर्नीचर- सिर्फ 8 फीसदी स्कूलों में पूरी
छात्र-शिक्षक अनुपात- 54:1