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नहीं रहे कथाकार मधुकर सिंह

आरा : जाने-माने कथाकार मधुकर सिंह का निधन मंगलवार को 3:45 बजे अपराह्न् उनके पैतृक आवास पर हो गया. वह 80 वर्षीय के थे और सात सालों से बीमार चल रहे थे. उनके निधन की खबर से जहां पूरे जिले में शोक की लहर फैल गयी, वहीं सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर भी उन्हें श्रद्धांजलि […]

आरा : जाने-माने कथाकार मधुकर सिंह का निधन मंगलवार को 3:45 बजे अपराह्न् उनके पैतृक आवास पर हो गया. वह 80 वर्षीय के थे और सात सालों से बीमार चल रहे थे. उनके निधन की खबर से जहां पूरे जिले में शोक की लहर फैल गयी, वहीं सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर भी उन्हें श्रद्धांजलि देने का सिलसिला शुरू हो गया.

धरहरा स्थित उनके पैतृक आवास में साहित्यकारों के पहुंचने का सिलसिला देर शाम तक जारी रहा. उनका अंतिम संस्कार बुधवार को सिन्हा घाट पर होगा. बड़े पुत्र ज्योति कलश मुखाग्नि देंगे. मधुकर सिंह का जन्म दो जनवरी, 1934 को प बंगाल के मिदनापुर में हुआ था और लगभग 10 वर्ष की उम्र में वह भोजपुर जिले में अपने गांव धरहरा आ गये. उन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई के दौरान ही लिखना शुरू कर दिया. उनके भोजपुरी गीतों का एक संग्रह ‘रु क जा बदरा’ के नाम से 1963 में आया. उसी वक्त उन्होंने कहानियां लिखनी शुरू की और बाद में फिर कई उपन्यास भी लिखे. वह आरा की चर्चित नाट्य संस्था ‘युवानीति’ के संस्थापकों में से रहे हैं.

उन्हीं की कहानी ‘दुश्मन’ के मंचन से युवानीति ने जननाटय़ आंदोलन के सफर की शुरु आत की थी. उनकी रचनाओं के अनुवाद तमिल, मलयालम, कन्नड़, तेलुगु, मराठी, पंजाबी, ओड़िया, बांग्ला, चीनी, जापानी, रूसी और अंग्रेजी भाषा में भी हुए हैं. ‘इस बार’ पत्रिका के अलावा उन्होंने कई दूसरी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया है और पत्रकारिता भी की. मधुकर सिंह का जुड़ाव सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों और साहित्यिक-सांस्कृतिक संगठनों से भी रहा. बिहार के सोशलिस्ट और वामपंथी आंदोलन का उनकी रचनाओं पर गहरा असर रहा.

समांतर कथा आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई और हर दौर में दलित-उत्पीड़ित, शोषित-वंचित लोगों के दुख-दर्द, उनकी आकांक्षाओं और संघर्षों की अभिव्यक्ति को अपने लेखन का मकसद बनाए रखा. पहले प्रगतिशील लेखक संघ और बाद में जन संस्कृति मंच के निर्माण के समय से उसके साथ रहे मधुकर सिंह का सभी प्रगतिशील-जनवादी संगठनों और उनसे जुड़े लेखक-संस्कृतिकर्मियों से बेहद आत्मीय जुड़ाव रहा है. वह अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ कर गये हैं.

तीन बेटों में ज्योति कलश, अमिताभ सिंह व अजिताभ सिंह और तीन बेटियों में शैल, रचना और पूनम हैं. उनकी पत्नी का निधन वर्ष 2004 में हो गया था. हाल ही में वह मॉरीशस जानेवाले थे. मगर स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण यात्रा स्थगित हो गयी थी. वह 2007 में ही लकवाग्रस्त हो गये थे. इस बीच जिले के कई साहित्यकारों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है. जिले के चर्चित साहित्यकार अनंत कुमार सिंह, श्री राम तिवारी, जितेंद्र कुमार, प्रो नीरज सिंह आदि ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनके निधन से साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है. साहित्य जगत को इनकी भरपाई करने में एक युग तक का इंतजार करना पड़ेगा.

मधुकर सिंह का रचना संसार

उपन्यास : ‘सोनभद्र की राधा’, ‘सबसे बड़ा छल’, सीताराम नमस्कार’, ‘सहदेव राम का इस्तीफा’, ‘जंगली सुअर’, ‘मेरे गाँव के लोग’, ‘समकाल’, ‘कथा कहो कुंती माई’, ‘अगिन देवी’, ‘अर्जुन जिंदा है’, ‘बाजत अनहद ढोल’, ‘बेनीमाधो तिवारी की पतोह’, ‘जगदीश कभी नहीं मरते’उन्नीस उपन्यास.

कथा संग्रह : ‘पूरा सन्नाटा’, ‘भाई का जख्म’, ‘अगनु कापड़’, ‘पहला पाठ’, ‘असाढ़ का पहला दिन’, ‘पाठशाला’, ‘माई’, ‘पहली मुक्ति’, ‘माइकल जैक्सन की टोपी’ समेत दस कहानी संग्रह. उन्होंने कई कहानी संकलनों का संपादन भी किया था.

नाटक : ‘लाखो’, ‘सुबह के लिए’, ‘बाबूजी का पासबुक’ व ‘कुतुब बाजार’.

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