तिरुवनंतपुरम : पिछले तीन वर्षों से लगातार बिना कोच के पसीना बहाने के बाद भारत के लिए राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में पदक जीत कर लाने वाले जिम्नास्ट आशीष कुमार से जब उनसे लगायी जा रही उम्मीदों की बात की जाती है तो वह गुस्सा हो जाते हैं.उनका मानना है कि देश की व्यवस्था ऐसी है जिसमें खेल प्रतिभाओं को कदम -कदम पर विफलता का सामना करना पड़ता है.
यहां 35वें राष्ट्रीय खेलों में भाग ले रहे आशीष को ऑलराउंड व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा था लेकिन उन्हें आखिर में रजत पदक से संतोष करना पड़ा.
आशीष से जब अपेक्षानुरुप प्रदर्शन नहीं कर पाने के बारे में पूछा गया तो यह 24 वर्षीय खिलाड़ी जोर से हंसने लगा और फिर उन्होंने बताया कि इस तरह के सवालों पर उन्हें गुस्सा आता है.
उन्होंने कहा, मैं तीन साल से कोच के बिना अभ्यास कर रहा हूं. मैं राष्ट्रमंडल खेल 2014 सहित महत्वपूर्ण मौकों पर चोटों से परेशान रहा. असल में यहां आने से पहले मेरी एड़ी में चोट लग गयी थी लेकिन मैंने फिर भी भाग लेने का फैसला किया. ऐसी परिस्थितियों में मैंने रजत पदक हासिल किया और लोग अपेक्षाओं की बात कर रहे हैं. क्या मुझे गुस्सा नहीं आयेगा.