नयी दिल्ली : करीब डेढ साल की कानूनी लडाई की परिणति बीसीसीआई से एन श्रीनिवासन की विदाई के रुप में हुयी लेकिन उच्चतम न्यायालय के फैसले में उन ’12 खिलाडियों’ की भूमिका पर कोई टिप्पणी नहीं की गयी जिनकी कथित गतिविधियां आईपीएल प्रकरण में न्यायमूर्ति मुद्गल समिति की जांच के दायरे में आयी थीं.
न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्ला की खंडपीठ ने कुछ मुद्दे पूर्व प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढा की अध्यक्षता में गठित तीन न्यायाधीशों की समिति के लिये छोड दिये हैं. न्यायालय ने यह भी नहीं कहा है कि क्या जिन खिलाडियों के नाम मुद्गल समिति की रिर्पोट में सामने आये हैं उनके मामलों में आगे जाचं की जरुरत है. मुद्गत समिति ने 10 फरवरी, 2014 की अपनी अंतरिम रिपोर्ट और तीन नवंबर, 2014 की अंतिम रिपोर्ट में खिलाडियों सहित कुछ अन्य व्यक्तियों के खराब आचरण का जिक्र किया था.
समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में 12 खिलाडियों के नामों का जिक्र करते हुये उनकी सूची सीलबंद लिफाफे में न्यायलय को सौंपी थी. समिति ने कहा था कि इनके खिलाफ जांच की आवश्यकता है और बाद में अंतिम रिपोर्ट में समिति ने स्पष्ट रुप से बीसीसीआई के निर्वासित अध्यक्ष को एक क्रिकेटर के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का दोषी पाया था. रिपोर्ट ने खिलाडियों की आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले इस क्रिकेटर के नाम का उल्लेख नहीं किया था.