Navratri 2024 : नवरात्र की पूजा में अनेक गृहस्थजन कुमारी कन्या का पूजन करते हैं. हमारे शास्त्रों में भी कन्या पूजन का माहात्म्य बताया गया है. श्रीमद्देवीभागवत के अनुसार, इस अवधि में कुमारी कन्या के पूजन से मातारानी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर असीम कृपा बरसाती हैं.
सलिल पांडेय, मिर्जापुर
कुमारी कन्या के पूजन में 2 वर्ष से लेकर 9 वर्ष तक की कन्या के पूजन का विधान बताया गया है. प्रतिदिन एक ही कन्या की पूजा की जा सकती है या सामर्थ्य के अनुसार तिथिवार संख्या के अनुसार कन्या की पूजा भी की जा सकती है. यानी जैसे-जैसे तिथि बढ़े, वैसे-वैसे कन्या की संख्या बढ़ाते रहना चाहिए. इसके अलावा ज्यादा सामर्थ्य है, तो प्रतिदिन दोगुनी या तिगुनी संख्या भी की जा सकती है. शास्त्रों में कहा गया है कि जितने अधिक लोगों के हितार्थ पूजा की जाती है, उसी के अनुसार दैवीय कृपा प्राप्त होती है. पूजा के दौरान भक्त को कदापि संकुचित दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए.
कुमारी पूजन के क्रम में श्रीमद्देवीभागवत के प्रथम खंड के तृतीय स्कंध में उल्लेखित है- 2 वर्ष की कन्या ‘कुमारी’ कही गयी है, जिसके पूजन से दुख-दरिद्रता का नाश, शत्रुओं का क्षय और धन, आयु, एवं बल की वृद्धि होती है. इसी प्रकार 3 वर्ष की कन्या ‘त्रिमूर्ति’ कही गयी है, जिसकी पूजा से धर्म,अर्थ, काम की पूर्ति, धन-धान्य का आगमन और पुत्र-पौत्र की वृद्धि होती है. जबकि 4 वर्ष की कन्या ‘कल्याणी’ होती है, जिसकी पूजा से विद्या, विजय, राज्य तथा सुख की प्राप्ति होती है. राज्य पद पर आसीन उपासक को ‘कल्याणी’ की ही पूजा करनी चाहिए. इसी तरह 5 वर्ष की कन्या ‘कालिका’ मानी गयी है, जिसकी पूजा से शत्रुओं का नाश होता है तथा 6 वर्ष की कन्या ‘चंडिका’ कहलाती है, जिसकी पूजा से धन तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. 7 वर्ष की कन्या ‘शाम्भवी माता’ है, जिसकी पूजा से दुख-दारिद्रय का नाश, संग्राम एवं विविध विवादों में विजय मिलता है. वहीं 8 वर्ष की कन्या ‘दुर्गा’ के पूजन से इहलोक के ऐश्वर्य के साथ परलोक में उत्तम गति मिलती है और कठोर साधना करने में सफलता मिलती है. इसी क्रम में सभी मनोरथों के लिए 9 वर्ष की कन्या को ‘सुभद्रा’ की पूजा करनी चाहिए और जटिल रोग के नाश के लिए 10 वर्ष की कन्या को ‘रोहिणी’ स्वरूप मानकर पूजा करनी चाहिए.
अलग-अलग भोज्य पदार्थ के भोग लगाने की महत्ता
देवी पूजन में भोग लगाना अनिवार्य अंग है. धर्मग्रंथों के अनुसार, देवी को अलग-अलग तिथियों में अलग-अलग भोज्य पदार्थ का भोग लगाने की महत्ता बतायी गयी है. प्रतिपदा को गाय के घी का भोग लगाने से रोग से मुक्ति होती है, द्वितीया को चीनी का भोग लगाने से व्यक्ति दीर्घायु होता है, तृतीया को दूध का भोग लगाने से दुखों से मुक्ति, चतुर्थी को मालपुआ से हर तरह की विपत्तियों से छुटकारा, पंचमी को केला के भोग से बौद्धिक क्षमता में वृद्धि, षष्ठी को मधु (शहद) से सुंदर स्वरूप की प्राप्ति, सप्तमी को गुड़ का भोग लगाने से शोक और तनाव से मुक्ति, अष्टमी को नारियल का भोग लगाने से अवसाद तथा आत्मग्लानि से मुक्ति और नवमी को धान का लावा चढ़ाने से लोक-परलोक सुखकर होता है.
मां की विधि-विधान से पूजा करना जितना आवश्यक है, उतना ही आवश्यक है कि पूरी श्रद्धाभक्ति से पूजन करें. मां पूजा जरूर स्वीकार करेंगी.
आहुति के दौरान महिलाएं रखें ये विशेष ध्यान
- महिलाएं घी से आहुति न दें, बल्कि दशांग से आहुति दें. संस्कृत में मंत्र न याद हो तो किसी देवी-देवता का स्मरण कर अंत में ‘स्वाहा’ बोलें.
- अग्नि का भलीभांति प्रज्वलन तथा लपट का दक्षिण दिशा की ओर उठना शुभ संकेत माना जाता है.
- खुले में हवन की जगह घर के मंदिर के आसपास छत के नीचे ही हवन करना चाहिए, ताकि अग्नि की तरंगें अनंत आकाश में गुरुत्वाकर्षण में जाने के पहले यज्ञकर्त्ता को प्राप्त हो सके.
- अपने घर की परंपरा के अनुसार, कन्या की संख्या रखें एवं पूजन करें. उपहार की वस्तु उत्तम हो, शृंगार-सामग्री जरूर दें.
-वासंतिक नवरात्र में रामनवमी के कारण दशमी तिथि में पारण का विधान है. - कन्यापूजन में जिन वस्तुओं का भोग लगाया गया है, उसे कन्या को खिलाने के बाद कुछ हिस्सा प्रसाद स्वरूप रखना चाहिए.
- दशमी तिथि में व्रत उद्यापन में इसी प्रसाद में अनाज से बनी मीठी वस्तु खाकर व्रत तोड़ना उत्तम है.
- यदि विधि-विधान में कोई कमी रह जाये, तो न पश्चाताप करें, न भयग्रस्त हों. मां कभी नहीं रूठती, ऐसा मानकर हर हाल में आभार व्यक्त करें.
- पूजन के वक्त ध्यान भटके, तो नाभि से लंबी-लंबी सांसें लेनी चाहिए. मन एकाग्रचित्त होता है.