किसी चौराहे पर चंद मिनट खड़े होकर वहां से गुजरनेवाले लोगों पर गौर कीजिये. कितने लोगों के चेहरे पर खुशी नाच रही है. सौ जने निकल गये, तो उनमें से केवल चार-पांच चेहरों पर आपने हंसी देखी होगी. क्या कारण है, बाकी लोग उदासी में मुंह लटकाये खोये-खोये नजर आये? बाहर क्या देखना है? पांच साल की उम्र में आप बगीचे में तितली के पीछे भाग रहे थे.
तितली को छूते हुए उसके रंग आपके हाथ पर झिलमिलाते हुए चिपक गये. उस समय आपको यही अनुभव हो रहा था कि दुनिया में इससे अच्छा कोई आनंद है ही नहीं. आप बड़े हुए. खुशी से रहने के लिए कई चीजों को इकठ्ठा किया. ऊंची पढ़ाई, अपना मकान, मोटर बाइक, गाड़ी, क्रेडिट कार्ड, टीवी, एसी, मोबाइल फोन वगैरह-वगैरह… अपनी-अपनी कोशिशों के मुताबिक जाने कितनी सुविधाएं आप लोगों ने एकत्रित कर लीं. लेकिन, खुशियां पाने के लिए जिंदगी में इतना सब कुछ ढूंढने के बावजूद आपने सिर्फ खुशी को गंवा दिया. एक घटना है. एक बार शराब पीकर शंकरन पिल्लै बस स्टॉप पर खड़े थे.
जो बस आयी, खचाखच भरी हुई थी. किसी तरह मुक्का मार कर शंकरन पिल्लै बस में चढ़ गये. दसेक लोगों के पांव रौंदते हुए और चार-पांच को कोहनी से धकेलते हुए अंदर सरकते गये. एक बुढ़िया की पास वाली सीट पर बैठा हुआ एक आदमी खड़ा हो गया. शंकरन पिल्लै उस सीट की ओर लपक पड़े. लोगों ने उन्हें यही सोच कर रास्ता दिया होगा कि शराबी से लफड़ा काहे मोल लें. पिल्लै शान से उस सीट पर धड़ाम से बैठे. इसी वेग के साथ बुढ़िया पर गिर पड़े. गुस्से में आकर बुढ़िया ने पिल्लै को कोसा, ‘अरे तू सीधे नरक में जायेगा.’ शंकरन पिल्लै सकपका कर उठे और चिल्लाने लगे, ‘रोको गाड़ी रोको.
मुझे गांधी नगर जाना है. मैं गलत बस में चढ़ गया.’ आप में से कई लोगों को शंकरन पिल्लै की तरह होश नहीं रहता कि कहां जाना है और किस बस में सवार होना है. आप भी इसी तरह बसों में चढ़ते-उतरते धक्के खाते रहते हैं. इच्छित वस्तु न मिलने पर यदि आप मुंह लटकाये फिरें, वह भी मूर्खता ही है. लेकिन, वांछित वस्तु मिलने के बाद भी खुशी भोगने का गुर जाने बिना किसलिए भटक रहे हैं आप?- सद्गुरु जग्गी वासुदेव