हम तत्व और आत्मा दोनों से बने हैं. आत्मा को आध्यात्मिकता की आवश्यकता है! शरीर (तत्व) की कुछ भौतिक चीजों की आवश्यकता होती है और हमारी आत्मा का पोषण अध्यात्म से होता है. आप जीवन को आध्यात्मिकता के बिना जी नहीं सकते. क्या आप शांति चाहते हैं?
क्या आप खुशी चाहते हैं? क्या आप सुख चाहते हैं? हमें लगता है कि आध्यात्मिकता का अर्थ केवल मंदिर, गिरजाघर या मसजिद जाना है. आध्यात्मिकता मानवीय मूल्यों का जीवन में समावेश है. मानवीय मूल्यों के बिना जीवन व्यर्थ है. यदि कोई प्रश्न करता है कि आपको मानवीय मूल्यों की आवश्यकता क्यों है, तो आप कहेंगे, यह एक मूर्खतापूर्ण सवाल है! जब आप मनुष्य हैं, तो जानवरों जैसा जीवन जीने का कोई अर्थ नहीं हैं.
मानवीय मूल्यों के साथ रहना मनुष्यता है. मनुष्य की कुछ जरूरतें होती है और वह जिम्मेवारियां लेता है. जब जरूरतें कम और जिम्मेवारियां अधिक हों, तो जीवन अच्छा होता है. जब जरूरतें अधिक और जिम्मेवारियां कम हों, तो फिर जीवन इतना अच्छा नहीं होता. जब आपकी जरूरतें अधिक हों और आप बहुत ही कम जिम्मेवारी लेते हैं, तो आप दुखी हो जाते हैं.
यह आध्यात्मिक जीवन नहीं हैं. भरथियार, कामराज और गांधीजी ने पूरे राष्ट्र की जिम्मेवारी ली और उन्होंने कैसा जीवन व्यतीत किया- उनकी जरूरतें बहुत कम थीं. इसलिए अधिक से अधिक जिम्मेवारी लेनी चाहिए. यदि पिता अपने बच्चों और उनकी जरूरतों की जिम्मेवारी नहीं लेगा, तो क्या बच्चे उसकी सुनेंगे? जो लोग जिम्मेवारी लेते हैं, उन्हें ही अधिकार प्राप्त होते हैं.
जो लोग राजनीति में हैं, उन्हें तो पूरे राष्ट्र की जिम्मेवारी लेनी होगी. परंतु यदि वे भ्रष्ट तरीकों से सत्ता में आये हैं, तो पतन निश्चित है. जब हम और अधिक जिम्मेवारी लेते हैं, तो उसका प्रबंधन कैसे करें? हमारी क्षमता से परे जिम्मेवारी लेना और उसका प्रबंधन करना अध्यात्म से आता है. हम अपनी बुद्धि का इस्तेमाल सिर्फ भ्रष्टाचार के लिए करते हैं, ना कि एक अच्छे इनसान बनने के लिए. हम सोचते हैं कि हम अच्छे हैं और दूसरे बुरे हैं. कुछ अच्छाई हर किसी में होती है और अध्यात्म से उसमें बढावा होता है.
-श्री श्री रविशंकर