14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जीवन में सच्ची साधना

मनुष्य विधि-व्यवस्था तोड़ता-छोड़ता रहता है, पर ईश्वर के लिए यह संभव नहीं कि अपनी बनायी कर्मफल व्यवस्था का उल्लंघन करे या दूसरों को ऐसा करने के लिए उत्साहित करे. तथाकथित भक्त लोग ऐसी ही आशा किया करते हैं. अंतत: उन्हें निराश होना पड़ता है. इस निराशा की खीझ और थकान से वे या तो साधना-विधान […]

मनुष्य विधि-व्यवस्था तोड़ता-छोड़ता रहता है, पर ईश्वर के लिए यह संभव नहीं कि अपनी बनायी कर्मफल व्यवस्था का उल्लंघन करे या दूसरों को ऐसा करने के लिए उत्साहित करे. तथाकथित भक्त लोग ऐसी ही आशा किया करते हैं. अंतत: उन्हें निराश होना पड़ता है.

इस निराशा की खीझ और थकान से वे या तो साधना-विधान को मिथ्या बताते हैं या ईश्वर के निष्ठुर होने की मान्यता बताते हैं. सच्चे संतों और भक्तों का इतिहास देखने से पता चलता है कि पूजा-पाठ भले ही उनका न्यूनाधिक रहा है, पर साधना के क्षेत्र में उन्होंने परिपूर्ण जागरूकता बरती है. इसमें उन्होंने आदर्श की अवज्ञा नहीं की है. भाव संवेदनाओं में श्रद्धा, विचार बुद्धि में प्रज्ञा और लोक व्यवहार में शालीन सद्भावना अपना कर कोई भी सच्चे अर्थों में सच्चा साधक बन सकता है. अध्यात्म के साधकों को अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करना पड़ता है.

उन्हें सोचना होता है कि मानव जीवन की बहुमूल्य धरोहर का इस प्रकार उपभोग करना है, जिसमें शरीर निर्वाह और लोक व्यवहार दोनों चलता रहे, साथ ही आत्मिक अपूर्णता पूरा करने का लक्ष्य भी प्राप्त हो सके. यही सोच और साथ में नैष्ठिक पुरुषार्थ सफलता दिलाता है.

– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें