अस्तित्व का विराट आकाश है धर्म. वहीं तर्क, मनुष्य की एक बहुत छोटी सी दृश्य सत्ता है. धर्म के सिवाय, कोई भी तत्वज्ञान मौलिक परिवर्तन नहीं ला सकता. धर्म, कोई तत्वज्ञान अथवा दर्शनशास्त्र न होकर उसका विरोधी है और धर्म का शुद्धतम रूप है झेन. झेन ही धर्म का प्रामाणिक सारभूत तत्व है. इसीलिए वह अतर्कपूर्ण है. यदि तुम उसे तर्कपूर्ण ढंग से समझने का प्रयास करोगे, तो भटक जाओगे. इसे केवल अतर्कपूर्ण ढंग से बिना बुद्धि के ही समझा जा सकता है.
गहन सहानुभूति और प्रेम में ही उस तक पहुंचा जा सकता है. तुम निरीक्षण और प्रयोगों पर आधारित वैज्ञानिक और वस्तुगत धारणाओं द्वारा झेन तक नहीं पहुंच सकते. यह तो हृदय में घटनेवाली एक घटना है. वस्तुत: विचार करने की अपेक्षा तुम्हें उसका अनुभव करना होगा.
उसे जानने के लिए तुम्हें उसे जीना है. स्वभाव में होना ही उसे जानना है और इस बारे में कोई दूसरा जानना नहीं होता. इसी कारण धर्म को भिन्न तरह की भाषा का चुनाव करना होता है. धर्म को नीति कथाओं में, काव्य में, अलंकारों में और काल्पनिक कथाओं द्वारा अपनी बात कहनी होती है. सत्य तुम तक एक गहन संवाद स्थापित होने के बाद ही आता है.
– आचार्य रजनीश ओशो