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शिव को यूं पूज करें प्रसन्न

चतुर्दशी तिथि के स्वामी हैं शिव ज्योतिषशास्त्र के अनुसार प्रतिपदा आदि 16 तिथियों के अलग-अलग देवता होते हैं. जिस तिथि को जो देवता स्वामी होता है, उस तिथि को व्रत-पूजन करने से उस देव की विशेष कृपा साधक को मिलती है. शिवजी को चतुर्दशी तिथि का स्वामी बताया गया है. इस तिथि की रात में […]

चतुर्दशी तिथि के स्वामी हैं शिव
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार प्रतिपदा आदि 16 तिथियों के अलग-अलग देवता होते हैं. जिस तिथि को जो देवता स्वामी होता है, उस तिथि को व्रत-पूजन करने से उस देव की विशेष कृपा साधक को मिलती है.
शिवजी को चतुर्दशी तिथि का स्वामी बताया गया है. इस तिथि की रात में व्रत करने से मासिक शिव चतुर्दशी व्रत का नाम शिवरात्रि होना उचित ही है. प्रत्येक मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि व्रत किया जाता है, इसे मासिक-शिवरात्रि व्रत कहते हैं. ईशान संहिता के वचन (शिवलिंगतयोद्भुत: कोटिसूर्यसमप्रभ:) के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को अर्धरात्रि में ज्योतिर्लिग प्रकट हुआ था. इसलिए इस तिथि को महाशिवरात्रि कहते हैं.
धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन सभी को भगवान शंकर के निमित्त महाशिवरात्रि व्रत करना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार योग्य होते हुए भी जो यह व्रत नहीं करता उसे दोष लगता है.
बुधवार को महेश नवमी का पर्व है. मान्यता के अनुसार इस दिन माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी. इसलिए माहेश्वरी समाज द्वारा यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. महेश नवमी के दिन भगवान शिव के निमित्त व्रत व पूजा करने का भी विधान है, जो इस प्रकार है-
महेश नवमी के दिन सुबह जल्दी उठ कर नित्य कर्मो से निवृत्त होकर स्नान करें व शिवमूर्तिके समीप पूर्व या उत्तर में मुख करके बैठ जायें. हाथ में जल, फल, फूल और गंध-चावल लेकर इस मंत्र से सकल्प लें-
मम शिवप्रसाद प्राप्ति कामनया महेशनवमी-निमित्तं शिवपूजन करिष्ये.
यह संकल्प करके माथे पर भस्म का तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करें. उत्तम प्रकार की गंध, फूल और बिल्व-पत्र आदि से भगवान शिव-पार्वती का पूजन करें. किसी कारणवश शिवमूर्ति का सान्निध्य प्राप्त ना हो सके, तो भीगी चिकनी मिट्टी से हराय नम: बनायें. फिर महेश्वराय नम: का स्मरण करते हुए हाथ के अंगूठे के आकार की मूर्ति बनायें. फिर शूलपाणये नम: से प्रतिष्ठा और पिनाकपाणये नम: से आह्वान कर शिवाय नम: से स्नान करायें और पशुपतये नम: से गंध, फूल, धूप, दीप व नैवेद्य अर्पित करें. तत्पश्चात भोलेनाथ से प्रार्थना करें –
जय नाथ कृपासिन्धोजय भक्तार्तिभंजन।
जय दुस्तरसंसार-सागरोत्तारणप्रभो।।
प्रसीदमें महाभाग संसारांतस्यखिद्यत:।
सर्वपापक्षयंकृत्वारक्ष मां परमेश्वर।।
यूं पूजन के बाद उद्यापन कर शिवमूर्ति का विसजर्न कर दें. महेश नवमी को शिवजी के ऐसे पूजन से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है.
माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति : ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की नवमी को महेश नवमी या महेश जयंती का उत्सव मनाया जाता है. यह पर्व मुख्य रूप से भगवान शिव व माता पार्वती की आराधना को समर्पित है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव की कृपा से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई. इसलिए माहेश्वरी समाज में यह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.
इस बार महेश नवमी बुधवार 27 जून को है. जनश्रुति के अनुसार माहेश्वरी समाज के पूर्वज पूर्वकाल में क्षत्रिय वंश के थे. ज्येष्ठ सुदी की नवमी को महेश नवमी भी कहते हैं. इस दिन महेश जयंती का उत्सव मनाया जाता है. धारणा है कि माहेश्वरी समाज के पूर्वज कभी क्षत्रिय वंश के थे. किसी कारणवश उन्हें ¬षियों ने श्रप दे दिया.
तब इसी दिन भगवान शंकर ने उन्हें शाप से मुक्तकिया और अपना नाम भी दिया. यह भी प्रचलित है कि भगवान शंकर की आज्ञा से ही इस समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय-कर्म छोड़ कर वैश्य या व्यापारिक कामकाज को अपनाया. माहेश्वरी समाज के उपनाम व गोत्र का संबंध भी इसी प्रसंग से है. वैसे तो महेश नवमी का पर्व सभी समाज के लोग मनाते हैं, पर माहेश्वरी समाज में इस पर्व के प्रति श्रद्धाभाव देखते ही बनता है. इस उत्सव की तैयारी पहले से ही शुरू हो जाती है.
इस दिन धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम किये जाते हैं. पौराणिक कथा है कि राजस्थान के खंडेला राज्य में राजपूत राजा खंडेलसेन का राज था. वह और उसकी दो रानियों सूर्य कुंवर व इंद्र कुंवर को संतान नहीं थी. इससे दुखी राजा को महर्षि याज्ञवल्क्य ने शिव आराधना करने को कहा. शिवकृपा से राजा को पुत्र प्राप्ति हुई.
उसका नाम सुजनसेन रखा गया. सुजनसेन के बारे में राज-पुरोहितों ने भविष्यवाणी की कि यह बहुत शक्तिशाली व चक्रवर्ती होगा, किंतु इसके जीवन में एक छोटी-सी घटना दुख की वजह बनेगी. पर उस घटना का अंत अति सुखद होगा. एक बार राजा सुजनसेन जंगल में शिकार के दौरान अपने 72 सैनिकों के साथ रास्ता भटक गये और भूख से पीड़ित होने लगे. भटकते हुए वह एक आश्रम के पास पहुंचे. वहां कुछ ऋषि शिवयज्ञ कर रहे थे.
भूख-प्यास से व्याकुल राजा ने आश्रम में जाकर यज्ञ हेतु बने प्रसाद को खा लिया, जल भी पी लिया, यहां तक कि अपने शिकार में उपयोग किये गये गंदे हथियारों को भी उस सरोवर में धो लिया, जिसका जल यज्ञ के निमित्त प्रयोग में लिया जाता था. उनके इस कृत्य से ऋषियों का यज्ञ व तप खंडित हो गया. क्रुद्ध ऋषियों ने राजा सुजनसेन व 72 सैनिकों को पत्थर बन जाने का शाप दे दिया.
उधर, राजा व सैनिकों के घर ना लौटने पर उनकी पत्नियां महर्षि जाबाली के पास गयीं.
महर्षि ने सारी घटना बतायी और शाप से मुक्ति के लिए उसी सरोवर के पास जाकर शिव की आराधना करने का उपाय बताया. रानी व सैनिकों की शिव आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर व पार्वती प्रकट हुए. वे राजा व सैनिकों से बोले : पापकर्मो, शक्ति के दुरुपयोग व देव अपराध के कारण तुम्हारी यह दुर्गति हुई है.
तुम्हारी पत्नियों की उपासना से प्रसन्न होकर हम, तुम सब को शाप मुक्त कर नवजीवन देते हैं, परंतु अब से तुम क्षत्रिय धर्म व हिंसक वृत्ति छोड़ कर वैश्य धर्म व कर्म से जीवन व्यतीत करोगे. तुम सभी अब मेरे नाम यानी माहेश्वरी नाम से पहचाने जाओगे. राजा व सैनिक तो वैश्य बन गये, पर रानी और सैनिक पत्नियां क्षत्रिय ही रहीं. इस धर्म-संकट से मुक्ति का उपाय माता पार्वती ने बताया. वह बोलीं : तुम सब अपनी-अपनी पत्नियों के साथ गंठबंधन कर मेरे चार फेरे लगाओ.
इससे रानी व सैनिक पत्नियां भी वैश्यधर्म के योग्य हो जायेंगी. इसलिए आज भी माहेश्वरी समाज की शादियों में चार फेरे लेने की परंपरा है. इस प्रकार शिव-पार्वती की कृपा से माहेश्वरी समुदाय व उसके 72 उपकुलों की उत्पत्ति हुई. महेश नवमी युधिष्ठिर संवत के नवें वर्ष में ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष के नवें दिन मानी जाती है. हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार शिवकृपा से शापित 72 क्षत्रियों को महेश-नवमी के दिन ही जीवनदान मिला एवं माहेश्वरी समाज के 72 उपकुल, गोत्र या नाम की उत्पत्ति भी हुई.
वे उपनाम, गोत्र या कुल इस प्रकार हैं : आगीवाल, अगसूर, अजमेरा, असावा, अटल, बाहेती, बिरला, बजाज, बदली, बागरी, बलदेवा, बांदर, बंग, बांगड़, भैया, भंडारी, भंसाली, भट्टड़, भट्टानी, भूतरा, भूतड़ा, भूतारिया, बिदाड़ा, बिहानी, बियानी, चांडक, चौखारा, चेचानी, छप्परवाल, चितलंगिया, दाल्या, दलिया, दाद, डागा, दम्मानी, डांगरा, दारक, दरगर, देवपूरा, धूपर, धूत, दूधानी, फलोद, गादिया, गट्टानी, गांधी, गिलदा, गोदानी, हेडा, हुरकत, ईनानी, जाजू, जखोतिया, झंवर, काबरा, कचौलिया, काहल्या, कालानी, कलंत्री, कंकानी, करमानी, करवा, कसत, खटोड़, कोठारी, लड्ढ़ा, लाहोटी, लखोटिया, लोहिया, मालानी, माल, मालपानी, मालू, मंधाना, मंडोवर, मनियान, मंत्री, मरदा, मारु, मारू, मीमानी, मोडानी, मोहला, मोहता, मूंधड़ा, नागरानी, ननवाधर, नाथानी, नवलखाम, नवल या नुवल, नोवल, न्याती, पचीसिया, परतानी, पलोड़, पटवा, पनपालिया, पेड़ीवाल, परमाल, फूमरा, राठी, साबू, सनवाल, सारडा, शाह, सिकाची, सिंघई, सोडानी, सोमानी, सोनी, तपरिया, ताओरी, तेला, तेनानी, थिरानी, तोशनीवाल, तोतला, तुवानी, जवर.वैसे तो महेश नवमी का पर्व सभी समाज के लोग मनाते हैं, पर माहेश्वरी समाज में इसकी भव्यता देखने लायक होती है.

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