Donald Trump : अब क्या करेंगे डोनाल्ड ट्रंप, कोर्ट ने टैरिफ को बताया अवैध; 5 प्वाइंट्स में समझें
Donald Trump : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ को नाक की लड़ाई बना लिया है, अपीलीय कोर्ट द्वारा टैरिफ को अमान्य करार दिए जाने के बाद वे सुप्रीम कोर्ट जाने का ऐलान कर चुके हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि अब अमेरिकी राष्ट्रपति क्या करेंगे. सुप्रीम कोर्ट में जाने का ऐलान तो उन्होंने कर दिया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट भी अगर उनके फैसले को अमान्य कर दे, तो क्या होगा?
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Donald Trump : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को वहां की एक अदालत से जोर का झटका लगा है, जिस टैरिफ के बूते वो दूसरे देशों पर लगाम कसने की कोशिश कर रहे हैं, उसी टैरिफ को वहां की एक अदालत ने गलत और अमान्य बता दिया है. कोर्ट ने कहा है कि ट्रंप ने अधिकारों का गलत इस्तेमाल करते हुए यह टैरिफ लगाया है. कोर्ट ने कहा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति के पास संयुक्त राज्य अमेरिका में आयातित सभी सामानों पर कर लगाने का अधिकार नहीं है, हालांकि अभी टैरिफ जारी रहेगा, क्योंकि टैरिफ को रद्द करने जैसा कोई फैसला कोर्ट ने नहीं सुनाया है. कोर्ट ने अमेरिकी प्रशासन को यह मौका दिया है कि वो इस संबंध में फैसला लें और चाहें तो सुप्रीम कोर्ट का रुख भी कर सकते हैं.
टैरिफ को गलत बताए जाने से बौखलाए ट्रंप
अपीलीय अदालत द्वारा टैरिफ को गलत बताए जाने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बौखला गए हैं और उन्होंने यह कहा है कि वे इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. कोर्ट के फैसले के बाद ट्रंप ने सोशल मीडिया पोस्ट में अपना गुस्सा निकाला और कहा कि अगर टैरिफ हटा दिया गया, तो अमेरिका को भारी नुकसान होगा और आर्थिक अराजकता फैल सकती. उन्होंने टैरिफ की नीति अमेरिका को फिर से समृद्ध बनाने के लिए बनाई है. उन्होंने कहा कि टैरिफ जारी रहेगा.
ट्रंप के टैरिफ को कोर्ट ने क्यों बताया अवैध
अमेरिकी राष्ट्रपति के पास कई ऐसे अधिकार हैं, जिनका उपयोग करके वो टैरिफ लगाते हैं. इनमें ट्रेड एक्सपेंशन एक्ट, 1962 सेक्शन 232 और ट्रेड एक्ट 1974, सेक्शन 301 शामिल है. इन दोनों टैरिफ पर कोर्ट ने कुछ नहीं कहा है और इन्हें वैध माना है, क्योंकि इनका आधार राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा और बौद्धिक संपदा की चोरी से जुड़ा था. लेकिन कोर्ट ने IEEPA (International Emergency Economic Powers Act, 1977) के तहत 2025 में लगाए गए टैरिफ को गलत बताया है और कहा है कि राष्ट्रपति ने अपने अधिकार से बाहर जाकर इसका प्रयोग किया है.इस एक्ट के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति को रिक्त या आपातकालीन परिस्थितियों में विदेशी धन, व्यापार आदि को नियंत्रित करने का व्यापक अधिकार देता है. निर्यात को नियंत्रित (regulate) या प्रतिबंधित (prohibit) करने का अधिकार देता है, हालांकि, IEEPA में टैरिफ लगाने का स्पष्ट उल्लेख नहीं है और इसी वजह से अमेरिकी अदालतों में यह अधिकार विवादित रहा है. इसके तहत टैरिफ लगाने को अदालतें अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन मानती हैं.
| अधिकार (Law Authority) | राष्ट्रपति को क्या अधिकार है? | क्या अदालत रोकती है? |
|---|---|---|
| Section 232 (1962) | विशिष्ट वस्तु (जैसे steel) पर राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर टैरिफ | आमतौर पर नहीं (ठोस प्रक्रिया द्वारा अधिकृत) |
| Section 301 (1974) | अनुचित व्यापार प्रथाओं पर टैरिफ लगाया जा सके | आमतौर पर नहीं (संग्रहित प्रक्रिया) |
| IEEPA (1977) | आपात स्थिति में regulate/import प्रतिबंधित करने का अधिकार | अक्सर अदालतें अवैध ठहराती हैं |
अब ट्रंप के पास क्या हैं रास्ते
अमेरिकी संविधान के अनुसार टैरिफ और टैक्स तय करने का अधिकार कांग्रेस यानी वहां की संसद के पास है, राष्ट्रपति खुद से मनमाने ढंग से टैरिफ नहीं लगा सकता है. लेकिन कुछ परिस्थितियों में कांग्रेस ने राष्ट्रपति को टैरिफ लगाने के अधिकार दिए हैं, जो उसके अधिकारों को एक तरह से असीमित कर देता है. अभी उनके फैसले को अपीलीय कोर्ट ने ही गलत बताया है, इसलिए उनके पास अभी बहुत आसान उपाय है कि वे सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे. अपने फैसले के पक्ष में तर्क देते हुए सरकार यह कहा है कि अगर ट्रंप के टैरिफ हटा दिए जाते हैं, तो वसूले गए आयात कर को वापस करना पड़ेगा, जिससे अमेरिकी राजकोष को भारी नुकसान होगा. जुलाई तक टैरिफ से कुल राजस्व 159 अरब अमेरिकी डॉलर था, जो पिछले साल इसी समय के मुकाबले दोगुने से भी अधिक है. ट्रंप के पास आयात कर लेगाने के लिए वैकल्पिक कानून हैं, जिनके जरिए वे टैरिफ लगा सकते हैं. 1974 के व्यापार अधिनियम के तहत वे टैरिफ लगा सकते हैं, लेकिन इस कानून के तहत शुल्क की सीमा 15% ही होगी और टैरिफ को एक निश्चित अवधि तक ही लगाया जा सकेगा. ट्रंप को इस बात का अंदेशा तो होगा ही कि उनके निर्णयों के खिलाफ कोर्ट में सुनवाई हो सकती है, इसलिए ट्रंप प्रशासन ने प्लान बी रेडी रखा है, ताकि अन्य कानूनों के जरिए टैरिफ को लागू किया जा सके.
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सुप्रीम कोर्ट भी अगर टैरिफ को गलत ठहरा दे तो क्या होगा
अपीलीय अदालत के फैसले के खिलाफ ट्रंप प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है. अगर अमेरिका का सु्पीम कोर्ट भी टैरिफ को अमान्य करार देता है, तो वह तत्काल प्रभाव से रद्द हो जाएगा. सरकार और राष्ट्रपति को उसे लागू करने का अधिकार नहीं रहेगा, साथ ही भविष्य में उसे टैरिफ लगाने के लिए राष्ट्रपति को कांग्रेस से मंजूरी लेनी होगी. अमेरिका में ऐसा पहले भी हो चुका है जब 1952 में राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने अमेरिका में स्टील मिलों को जब्त कर उनका संचालन जारी रखने का आदेश दिया, वजह यह थी कि मजदूर हड़ताल पर चले गए थे. उस वक्त राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में बताकर यह आदेश दिया गया था. मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और कोर्ट ने राष्ट्रपति के फैसले को अमान्य बता दिया और कहा कि उन्हें देश के हर कारखाने के बारे में निर्णय करने का अधिकार नहीं है.
टैरिफ को लेकर अमेरिकी जनता क्या सोचती है?
ट्रंप के टैरिफ पर आम अमेरिकी जनता में असंतोष है. इस बारे में प्यू रिसर्च (Pew Research) ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसके अनुसार, अगस्त 2025 में 61% अमेरिकी नागरिक ट्रंप सरकार द्वारा बढ़ाए गए टैरिफ (शुल्कों) से असहमत थे, जबकि केवल 38% उनसे सहमत थे. वहीं एक अन्य सर्वे में 61% अमेरिकियों और 78% युवा वयस्कों ने टैरिफ को लागू करने के तरीके पर असंतुष्टि व्यक्त की. वहीं सर्वे में 88% अर्थशास्त्रियों ने माना कि टैरिफ से आर्थिक विकास धीमा होगा और महंगाई बढ़ेगी.
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