भारत-चीन के बीच 1947 से पहले नहीं था कोई सीमा विवाद, तिब्बत पर चीन के कब्जे से शुरू हुआ संघर्ष
India China Border Dispute : भारत-चीन के संबंधों के इतिहास में 31 अगस्त का दिन बहुत खास है. इसकी वजह यह है कि इसी तारीख को दो ऐसे देश, जो आपस में विश्वास का भाव नहीं रखते वे एक नई शुरुआत करने के इरादे से एक मंच पर आए और दोस्ती का हाथ एक दूसरे की ओर बढ़ाया. बेशक यह बहुत छोटी पहल है, क्योंकि दोनों देशों के संबंधों के बीच चीन की दीवार है. आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि प्राचीन काल में भारत और चीन की सीमा एक दूसरे से नहीं लगती थी इसलिए इनके बीच सीमा विवाद भी नहीं था, लेकिन 1951 में तिब्बत की वजह से दोनों देश आमने-सामने आ गए और शुरू हुआ सीमा विवाद.
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India China Border Dispute : भारत और चीन दो ऐसे देश हैं, जिनके संबंध प्राचीन काल में तो बड़े अच्छे रहे, लेकिन 19वीं-20वीं शताब्दी में यह संबंध बिगड़ गए. भारत और चीन के बीच जो सीमा विवाद आज प्रमुखता से उजागर होता रहता है, उसका प्राचीन काल में कोई वजूद नहीं था. आप जानते हैं कि ऐसा क्यों था? अगर नहीं जानते हैं तो यह आलेख पढ़ें. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद की वजह है तिब्बत.
प्राचीन काल में चीन की सीमा भारत से नहीं लगती थी
प्राचीन काल में चीन की सीमा भारत से नहीं लगती थी, तो क्योंकि तब तिब्बत एक स्वतंत्र देश था. ब्रिटिश भारत में अंग्रेजों को यह डर सताता था कि रूस और चीन तिब्बत के रास्ते भारत में प्रवेश कर सकते हैं, इसी वजह से ब्रिटिश भारत के समय एक सीमा रेखा भारत और तिब्बत के बीच खिंची गई जिसे मैकमोहन लाइन कहा जाता था. यह मैकमोहन लाइन तिब्बत और भारत के बीच एक सीमारेखा थी, जिसे 1914 में खिंचा गया था. 1949-50 में जब चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार आई, तो उसने तिब्बत पर हमला कर दिया और वहां कब्जा कर लिया. 1951 में तिब्बत के औपचारिक रूप से चीन का हिस्सा घोषित कर दिया गया. उसके बाद चीन की सीमा भारत से लगी, चूंकि चीन ने मैकमोहन लाइन को सीमा मानने से इनकार कर दिया और यह कहा कि यह लाइन गलत तरीके से खिंची गई है, तब भारत और चीन के बीच सीमा विवाद शुरू हुआ. भारत और तिब्बत ने मैकमोहन लाइन को अपनी स्वीकृति दी थी, जबकि चीन इसे अस्वीकार करता रहा और भारतीय भूमि पर गलत नजर रखता रहा, उसी समय से भारत और चीन के बीच सीमा विवाद शुरू हुआ.
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क्या है तिब्बत का इतिहास और भारत के साथ इसके संबंध
प्राचीन काल में तिब्बर एक स्वतंत्र क्षेत्र था, जहां तिब्बती सभ्यता और बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव था. सोंगत्सेन गम्पो तिब्बत के सबसे प्रमुख शासकों में से एक था, जिसने यहां एक सशक्त और एकीकृत तिब्बत राज्य की स्थापना की थी. 7वीं से 9वीं शताब्दी तक तिब्बत एक शक्तिशाली साम्राज्य था, लेकिन उसके बाद यह क्षेत्र मंगोलों के अधीन आ गया. क्रूर मंगोल शासन चंगेज खान ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था. मंगोल शासकों की वजह से चीन और तिब्बत का संपर्क बढ़ा, लेकिन तिब्बत ने अपनी स्वतंत्रता बनाकर रखी. ब्रिटिश शासकों को यह शंका थी कि तिब्बत के रास्ते चीन या रूस भारत की सीमा तक आ सकते हैं, इसलिए उसने तिब्बत में अभियान चलाया. चीन ने ब्रिटेन के साथ समझौता कर तिब्बत को चीन का हिस्सा बता दिया, लेकिन उस वक्त यह शर्त रखी कि ब्रिटेन भारत के हित देखेगा. ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के बीच 1914 में समझौता हुआ, इसमें भारत-तिब्बत सीमा (मैकमोहन रेखा) खिंची गई. भारत की आजादी के बाद तक तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र था, उसपर चीन का कब्जा नहीं था, लेकिन 1950 में चीन की सेना तिब्बत में घुसी और 1951 में तिब्बत को चीन का हिस्सा घोषित कर दिया गया. तिब्बत में विद्रोह हुआ, जिसे चीन ने कुचल दिया, उसी वक्त 1959 में तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा भागकर भारत आ गए और यहां शरण ली. भारत ने दलाई लामा को शरण दिया, इससे भारत और चीन के रिश्ते बिगड़े और उसका असर अभी भी दिखता है.
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